लंदन में किसी मस्जिद के पास कुछ हेट क्राइम हो गया. इस पर एक आर्टिकल पढ़ा जो लगभग हर महीने एक बार आता ही है : मुसलमानों पर होने वाले ‘हेट क्राइम’ लगातार बढ़ क्यों रहे हैं?
इसका सीधा जवाब ये है कि मुसलमान चुप रहना पसंद करते हैं. वो तब चुप रहते हैं जब पूरी दुनिया चाहती है कि वो आगे आकर बोलें कि भाई रेडिकल इस्लामिक टेररिज़्म गलत है. मेरे टाइम लाइन पर ऐसा कहने वाला शायद एक आदमी होगा, या वो भी नहीं.
आतंकी हमले के बाद आप अगर ग़ालिब की शायरी और फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ करने लगते हैं, तो फिर आप ही ज़िम्मेदार हैं कि कोई भी दाढ़ी वाला सबवे ट्रेन के नीचे ढकेल दिया जाता है. अमेरिका में अगर सिक्ख पर भी हमले होते हैं, तो वो ख़ून भी चुप रहने वाले मुसलमानों के ही नाम है. ये आपको लेना होगा.
कम से कम सीखिए उन लोगों से जो गौरक्षकों को ना सिर्फ गरियाते हैं बल्कि उनके विरोध में वो एक मुसलमान डेयरी वाले के साथ खड़े हो जाते हैं.
जब एक पक्ष धर्म छोड़कर मानवता देखता है, और दूसरा धर्म की अंधी कट्टरता में छुप जाता है तो हेट क्राइम क्यों नहीं बढ़ेंगे? ये तो आप ही का किया धरा है, ये आपको ही भोगना होगा.
आप चुप रहिए, मौन स्वीकृति देते रहिए. फिर पता चलेगा कि आपकी चुप्पियों के कारण यूरोप और अमेरिका के किनारे बंद हो गए हैं उन निर्दोष लोगों के लिए भी जिन्हें ज़मीन और छत की ज़रूरत है.
उनका ख़ून भी आपकी चुप्पी के ही नाम है. लंदन में मस्जिद के पास आप पर हमले होंगे, किसी बुरक़ा पहनने वाली के ऊपर उल्टी किया हुआ बैग फेंक दिया जाएगा, किसी को घर में चिट्ठी जाएगी कि तुम यहाँ से चले जाओ. ये अभी बाहर हो रहा है, ये भारत में भी होगा.
ये भारत में इसलिए होगा कि तुम पाकिस्तान की जीत पर पटाखे चलाते हो और कहते हो कि उस दिन लगन बहुत था, हॉकी में इंडिया जीती. और हम मान लेंगे, है कि नहीं? मतलब तुम इतने अच्छे हो गए कि हिन्दुओं के लगन में पटाखे चला रहे हो! इस दिन के इंतज़ार में सैकड़ों निपट गए. इस तरह से तुम चाहते हो कि इस देश की मेजोरिटी तुम्हारा सम्मान करे?
ये सब छोटी-छोटी चीज़ें हैं जो तुम अपने ऊपर फेंक रहे हो. लॉजिकल आदमी वैसे भी कम प्रतिशत में ही होते हैं. जहाँ मेजोरिटी का माथा सनका, फिर तुम अल्पसंख्यक का पत्ता डब्बी में लिए घूमते रहना.
पहले ये तो विश्वास दिलाओ की तुम कट्टरपंथी आतंकियों के साथ हो या मानवता के? चुप रहने वाला ऑप्शन नहीं है. चुनना तो होगा ही. क्योंकि चुप रहोगे तो तटस्थ की जगह आतंकियों के हिमायती कहलाओगे. और क्यों नहीं? क्योंकि कौन ऐसा व्यक्ति होगा जो चाहेगा कि उसके धर्म को ‘गलत ना समझा जाय’ और फिर भी वो आतंकी हमलों में ‘अल्लाहु अकबर’ बोलने वाले के ख़िलाफ़ ना कुछ बोलेगा, ना लिखेगा.
यहाँ धड़ाक से क़ुरान निकाल कर ‘सलाम-सलाम’ खेलने लगते हो कि शांति का धर्म है. वो तो हम मानते हैं, लेकिन क्या तुम शांति के साथ खड़े हो? या तुम उनके साथ हो जो शरीर में बम बाँध कर आते हैं, तुम्हारे ही अल्लाह के पाक नाम को बदनामी के हवाले करते हुए सूअरों की मौत मारे जाते हैं?