ज़रा सोचिए आप. कोई एक सफ़ेद कपड़ा लाये, उसे ऊपर गेरुआ, नीचे हरा रंग से रंग दे, बीच में एक चक्र जैसी आकृति बना दे. उसके बाद उस कपड़े के साथ ज़रा बदसलूकी करे… क्या लगता है आपको, वह केवल हमें खिझा रहा होगा या ज्यादा से ज़्यादा हमें ज़रा भावनात्मक चोट पहुंचा रहा होगा?
नहीं भाई… बिल्कुल नही. वह ग़ैर क़ानूनी, ग़ैर संवैधानिक, ग़ैर जमानतीय, संज्ञेय अपराध कर रहा होगा. जी हां… राष्ट्र के जीवन में प्रतीक केवल प्रतीक मात्र नहीं रह जाते हैं, प्रतीक स्वयं भी ‘राष्ट्र’ हो जाता है.
जबसे भारत के कलेजे पर इस्लाम के नाम पर एक राष्ट्र तामीर कर दिया गया, जब ‘टू नेशन थ्योरी’ (कि हिंदू और मुस्लिम दो अलग राष्ट्र हैं, और वह साथ नहीं रह सकते) के आधार पर हमारे कलेजे पर एक अलग मुल्क बना दिया गया हो, और उस असभ्य देश ने अपने होने का एकमात्र अर्थ हमें नष्ट करना बना लिया हो, तो उसे हर क़ीमत पर नेस्तनाबूद कर देना, प्रतीकों तक में उसके हलक से ज़ुबान खींच कर अलग कर देना हमारा दायित्व होना चाहिए.
भलमनसाहत या सहिष्णुता से आप उस इस्लामी नासूर को ख़त्म नहीं कर सकते. हम में से काफ़ी लोग कितने भोले/ बेवक़ूफ़ (या कुटिल) हैं, जो काम ख़ुद गांधी नहीं कर सके, उसे वे कथित गांधीवाद से करने चले हैं.
क्रिकेट की हार तक को पचाने में दिक़्क़त हमें इसीलिए हो रही है क्यूंकि वह भी आज प्रतीक बना दिया गया है, और प्रतीक का क़ानूनी महत्व तक का ज़िक्र ऊपर किया ही गया है.
तो क्रिकेट में हार जाना नहीं, बल्कि पाकिस्तान का हमसे जीत जाना हमें तकलीफ़ दे रहा है. ऐसा नहीं होता तो कोई भला आदमी कैसे आख़िर इस असभ्य खेल को पसंद कर सकता है भला?
मुझे तो खेल शुरू होने के बाद पता चला कि अपना कप्तान धोनी नहीं बल्कि कोहली है. आज सुबह ही एक मित्र को बता रहा था कि क्रिकेट को ‘राष्ट्रवाद’ मत कहिए, यह ‘राष्ट्रकुल’वाद है. ख़ुद के द्वारा ग़ुलाम बनाए देशों के साथ इंग्लैंड यह चूहे-बिल्ली का खेल खेलता है, बस.
निश्चय ही क्रिकेट को नव साम्राज्यवादी बाज़ार ने हम पर थोपा है. कुछ वैसा ही जैसे हथियार निर्माता देशों ने हमारी लड़ाई को हवा देकर अपना ख़ज़ाना भरा रखने की साज़िश की है लगातार, लेकिन यह जानते हुए भी हमें फ़िलहाल अपना रक्षा (मने आक्रमण) बजट तो बढ़ाते रहना ही होगा.
सामूहिक संहार के नए-नए अत्याधुनिक हथियारों से ख़ुद को सुसज्जित करते रहना ही होगा. हर स्तर पर हमें इस्लामी आतंकी देश पाकिस्तान का मुंह तोड़ते रहना ही होगा. ऐसे में क्रिकेट की हार भी ज़ाहिर है हृदय विदारक तो है ही. हालांकि अपने राष्ट्रीय खेल में बिना फ़िक्सिंग की आशंका के उसी लंदन में हमने कुचल कर रख दिया है पाकियों को, यह राहत की बात तो है. बधाई.
फिर कहूंगा, जहां पाइए वहीं कुचलते रहिये पाकिस्तान को. तय मानिये, ये वैसे नहीं सुधरेंगे. फिर दुहरा रहा हूं- जो काम ख़ुद गांधी नहीं कर सके, वह गांधीवाद से तो बिल्कुल नहीं होना है. समझ गए ना?