भारत में हर सामाजिक संबंध और नैतिकता के मानदंड के रूप में कोई ना कोई अमर प्रतीक हैं.
मातृसुलभ वात्सल्य – यशोदा
आदर्श पुत्र – राम
आदर्श भाई – लक्ष्मण, भरत
पति – राम
प्रेम – राधा , मीरा
सत्यवादिता – महाराज हरिश्चन्द्र
वीरता – अभिमन्यु
दानशीलता – कर्ण
प्रतिज्ञा और वचनपालन – भीष्म
संकल्प – विश्वामित्र
कूटनीति – चाणक्य
धर्म – कृष्ण
और इसी कड़ी में है — गुरुभक्ति – एकलव्य
लेकिन दुःख की बात है कि इस महापुरुष के गुरुभक्ति के चरम उदाहरण को कुछ जातिवादी लोग अपने अपने तरीके से व्याख्यायित कर रहे हैं, तथाकथित दलितवादी भी और नवब्राह्मणवादी भी.
इनके कुतर्कों पर निगाह डालने से पूर्व एकलव्य के जीवन के कुछ बिंदुओं और तत्कालीन भूराजनैतिक स्थिति को देख लिया जाये.
# एकलव्य वास्तव में यदुवंशी और कृष्ण का चचेरा भाई था जिसे मूल नक्षत्रों में जन्मे होने के कारण त्याग दिया गया.
# एकलव्य का पुत्र के रूप में पालन पोषण निषादराज हिरण्यधनु ने किया.
# निषादों की उत्पत्ति महाराज पृथु के पिता महाराज वेन से हुई थी जिन्हें ब्राह्मणों ने राजवंश से बहिष्कृत कर दिया था. ( हरिवंश और भागवत पुराण )
# हिरण्यधनु संभवतः निषादराज गुह की शाखा से संबंधित थे जो अयोध्या के राजवंश के प्रति वफादार थे.
# तत्कालीन समय में कुरु, पांचाल और मगध तीन शक्तियां थीं और बाद में कृष्ण के नेतृत्व में यादवों ने शक्ति संतुलन उलट दिया. इनमें से कुरुओं के पांचालों के साथ और मगध का यादवों के साथ शत्रुतापूर्ण संबंध थे.
# अपने त्यागे जाने की घटना के कारण एकलव्य के मन में यादवों के प्रति एक स्वाभाविक कटुता थी, इसलिये एकलव्य ने राजा बनने पर जरासंध को अपनी सेवाएँ दीं.
# कालांतर में एकलव्य अपने कुछ वफादार साथियों के साथ राजस्थान में आ गया जहां उसने स्थानीय वन्य जातियों को धनुर्विद्या का प्रशिक्षण दिया.ये जाति #भीलों के रूप में प्रसिद्ध हुई. फिर यादवों द्वारा पीछा किये जाने पर उसने अपना अड्डा किसी अज्ञात द्वीप पर बनाया. संभवतः द्वारका पर छापा मारने हेतु सौराष्ट्र क्षेत्र के किसी द्वीप पर.
# उसकी मृत्यु कब हुई ये एकदम निश्चित नहीं परंतु ये निश्चित है कि वह महाभारत प्रारम्भ होने से पूर्व जीवित था क्योंकि उसे भी दोनों पक्षों से आमंत्रित किया गया था परंतु वह कुरुक्षेत्र तक पहुंच नहीं सका और संभवतः मार्ग में ही कृष्ण ने उसका वध कर दिया. (महाभारत )
ऐसे अनोखे व्यक्तित्व के बारे में दोंनों पक्षों के (कु)तर्क —
#दलितवादी : —
एकलव्य #अनार्य था जिसका अंगूठा #यूरेशियन #ब्राह्मण द्रोण ने षडयंत्रपूर्वक कटवा दिया.
#फरसावादीनवब्राह्मण :–
1– एकलव्य चोर था, कुरुओं के दुश्मन मगध और विदेशी कालयवन का नौकर था और बेचारे भले ब्राह्मण द्रोणाचार्य जो सिर्फ राजपुत्रों को ही शिक्षा देने को प्रतिज्ञाबद्ध थे, ने उसका अंगूठा लेकर उसपर दया दिखाई थी.
2– चूँकि अंगूठे का बाण चलाने में कोई योगदान नहीं होता इसलिये ये कथा झूठी है.
# चलिये अब वास्तविक तथ्यों पर निगाह डालते हैं.
1- एकलव्य यदुवंशी था, कृष्ण का चचेरा भाई इसलिये वह भी उतना ही आर्य था जितने कृष्ण बलराम.
2- एकलव्य ने गुरु बदलने के स्थान पर गुरु की मूर्ति को अपनी तपस्या का केंद्र बनाया और जो सीखा वो अपने पुरुषार्थ व तपस्या के दम पर.
( महाभारत या पुराण में कहां लिखा है कि उसने छुप छुपकर द्रोण की विद्या सीखी. )
शायद ये पूरे पौराणिक इतिहास का एकमात्र उदाहरण है जब एक ‘ भक्त ‘ के ‘ भगवान ‘ ने उसकी तपस्या का ऐसा क्रूर और बर्बर प्रतिफल दिया.
3- एकलव्य का घराना अयोध्या के राजवंश की अधीनता में था पर बाद में अयोध्या राजवंश द्वारा जरासंध की अधीनता स्वीकार करने पर और यादव परिवार द्वारा त्यागे जाने से यादवों के प्रति कटुता के कारण स्वाभाविक तौर पर उसने जरासंध को अपनी सेवाएं दीं.
4- कालयवन विदेशी नहीं बल्कि यादवों के ब्राह्मण पुरोहित आचार्य गर्ग और एक अप्सरा गोपाली के अवैध रिश्ते का परिणाम था जिसे यवनराज ने पाला पोसा. इसलिये जरासंध को तथाकथित विदेशी आक्रमण से मत जोड़िए और ना एकलव्य को देशद्रोही सिद्ध करने का भौंडा प्रयास करें.
5- द्रोण मूलतः तपस्वी आत्मा ही थे परंतु अतिशय पुत्रमोह, प्रतिशोध और महत्वाकांक्षा ने उन्हें पापपंक में गिरा दिया और अपनी भूलों का भान उन्हें मृत्युकाल में हुआ.
6- द्रोण ने केवल ब्राह्मण और शिक्षक के कर्तव्यों को ही कलंकित नहीं किया बल्कि एक व्यक्ति के तौर पर गिर गये थे. अर्जुन से छिपाकर अपने पुत्र अश्वत्थामा को अतिरिक्त शिक्षा देने की कोशिश उनके जीवन के निकृष्टतम भागों में से एक थी. ऐसे व्यक्ति ने अगर एकलव्य का अंगूठा ले लिया तो आश्चर्य कैसा?
7- एकलव्य को दो उंगलियों से बाण चलाने का रहस्यमय संकेत उनकी आत्मग्लानि का परिचायक है जो बताता है कि उनकी आत्मा एकदम नहीं मर गयी थी.
8- अगर द्रोण ने एकलव्य को कुरुओं के दुश्मन मगध ( जिसका कोई जिक्र नहीं है ) के सेवक होने के नाते दंडित किया तो खुद द्रोण ने कुरुओं के घोषित शत्रु पांचालों के यज्ञ में पुनर्जन्म लिये पुत्र #धृष्टद्युम्न को शिक्षा क्यों दी ? ( महाभारत )
9- जिन लोगों को अंगूठे का कोई रोल बाण संचालन में नहीं दिखता वे जरा तूणीर से बाण निकालकर धनुष पर रखकर दिखाएं. जितनी देर में एकलव्य एक बाण चलाएगा, प्रतिपक्षी दो नहीं चला देगा क्या ?
अगर ये मान लें कि एकलव्य दांयें हाथ से धनुष पकड़ता था तब भी अंगूठे के बिना क्या धनुष पकड़ा जा सकता है?
अब मुझे कोई बता दे कि एकलव्य क्यों गुरुभक्ति का आदर्श नहीं है और क्यों द्रोणाचार्य एक ‘ पतित शिक्षक ‘ नहीं थे?