दरिद्र बन कर सो जाईए, सरकार और सिस्टम को यही रास आता है

जीएसटी के चक्कर में मेरी कई किताबें फ्लिपकार्ट पर आने से रह गई हैं. कुछ समय पहले बड़ी मुश्किल से प्रकाशक को समझा-बुझा कर किताबों को ऑनलाइन करवाया था.

प्रकाशक ने आज बताया कि हो सकता है जो कुछ किताबें फ्लिपकार्ट पर हैं, वह भी कुछ दिन में हट जाएं. इस लिए कि फ्लिपकार्ट वाले सभी प्रकाशकों से जी एस टी नंबर मांग रहे हैं. लेकिन किसी प्रकाशक के पास जी एस टी नंबर नहीं है. न कोई प्रकाशक जी एस टी नंबर लेना चाहता है. इस लिए भी कि किताबें जी एस टी के फ्रेम में कहीं हैं ही नहीं अभी तक. लेकिन फ्लिपकार्ट की अपनी बाध्यताएं होंगी.

जो हो नुकसान लेखकों-पाठकों का है. इस लिए कि सरकारी खरीद के गुलाम बन कर प्रकाशक पहले ही किताबों की दुकानों से कुट्टी कर चुके हैं. किताबें दुकान पर नहीं रखते. अब ऑनलाइन का तार भी कट जाएगा तो कौन किस किताब को कहां पाएगा और क्यों पढ़ेगा.

वैसे भी प्रकाशकों की रूचि ऑनलाइन किताब बेचने में कभी नहीं रही. क्यों कि यह फुटकर खरीद है. और प्रकाशक फुटकर खरीद में नहीं, बल्क परचेज़िंग में दिलचस्पी रखते हैं. जहां मोटी रिश्वत दे कर, मोटी कमाई होती है. एक साथ हज़ारों किताबों का आर्डर मिलता है. जब कि फ्लिपकार्ट पर तीस परसेंट छूट दे कर, फ्लिपकार्ट को कमीशन दे कर कोरियर खर्च, पैकेजिंग आदि का खर्च भी उठाना पड़ता है. प्रकाशक कहता है कि हमारे पास फिर बचता क्या है. काहे बेचें एक-एक, दो-दो किताब फुटकर में हम.

यह हिंदी के प्रकाशक हैं. न लेखक को रॉयल्टी देते हैं, न किताब का प्रचार करते हैं, न समीक्षा के लिए कहीं किताब भेजते हैं, न किताब किसी दुकान में रखते हैं. और चाहते हैं कि अंगरेजी की तरह लाखों किताबें चुटकी बजाते ही बिक जाएं.

अभी तो वह रिश्वत दे कर सरकारी खरीद में किताब बेच कर सरकारी लाइब्रेरियों में कैद करना जानते हैं. भाड़ में जाएं लेखक, भाड़ में जाएं पाठक. उन का क्या, उन की कमाई तो जारी है. लाखों, करोड़ों में.

सभी सरकारें भी चाहती हैं कि कोई कुछ पढ़े नहीं. जब कोई कुछ पढ़ेगा तो सोचेगा. सोचेगा तो सिस्टम के खिलाफ सोचेगा. सो हर साल करोड़ो-अरबों रुपए की किताबें खरीद कर लाइब्रेरियों में सड़ा देते हैं.

आप भी नकली सिनेमा देखिए, टी वी देखिए, चाहे फर्जी सीरियल हो, चाहे फर्जी न्यूज और डिस्कशन के नाम पर चीख चिल्लाहट या फिर अश्लील कामेडी शो, यह शो, वह शो आदि-इत्यादि. दिल-दिमाग भ्रष्ट कर, दरिद्र बन कर सो जाईए. सरकार और सिस्टम को यही रास आता है. आप को भी.

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