तीन तरफ से घिरा पाकिस्तान, जल्द आ सकती है कश्मीर से अच्छी खबर

मैंने 1990 से 1994 तक बेअंत सिंह और केपीएस गिल को पंजाब में शांति बहाल करते देखा है. उस रणनीति को बहुत नजदीक से देखा समझा.

कोई भी आंदोलन तब तक दबाया, कुचला, tackle नहीं किया जा सकता जब तक उसे व्यापक जन समर्थन हासिल है. आंदोलन को अगर दबाना, कुचलना, खत्म करना है तो पहले जनसमर्थन खत्म करो.

इसके लिए योजनाबद्ध तरीके से आंदोलन को बदनाम किया जाता है और आंदोलन के नेतृत्व में फूट डाल के उन्हें आपस मे लड़ा दिया जाता है. फिर वो एक दूसरे की मुखबिरी करने लगते हैं. एक दूसरे के पते ठिकाने, वास्तविक लोकेशन पुलिस और सुरक्षा बलों को बताने लगते हैं. सुरक्षा बल कुत्ते की तरह दौड़ा के मारने लगती हैं.

ऐसे में गिरोह में भगदड़ मच जाती है. उधर जो जनता कल तक समर्थन दे रही थी, घर मे छुपा के बिरयानी खिला रही थी वो या तो दरवाज़े बंद कर लेती है या फिर घर मे घुसा के पुलिस बुला लेती है.

पुलिस पहुंच के एनकाउंटर कर देती है… फिर पुलिस दो अलग-अलग खबरें परोसती है… एक ये कि गृहस्वामी ने मुखबिरी की… दूसरी ये कि गैंग. गिरोह, लश्कर के ही किसी आदमी ने मुखबिरी की… या फिर विरोधी गुट ने मुखबिरी की…

इसे कहते हैं भगदड़ की स्थिति… सब आपस मे संदिग्ध… अब गिरोह उस गृह स्वामी की हत्या कर देता है, गिरोह का हर आदमी एक दूसरे को शक़ की निगाह से देखता है… छिपने की जगह मिलना मुश्किल हो जाती है… गिरोह खुद आपस मे ही एक दूसरे की हत्या करने लगते हैं… अचानक लड़ाई तेज़ हो जाती है.

गिरोह में परस्पर लड़ाई की शुरुआत सबसे पहले पद और पैसे की बंदरबाँट में विवाद पैदा कर शुरू की जाती है.

जनता का समर्थन, पनाह देने वालों को ये समझा के खत्म किया जाता है कि आतंकी तुम्हारी बिरयानी खा के तुम्हारी ही बहू-बेटी भोग रहे हैं. जनता और आतंकियों में धीरे-धीरे परस्पर अविश्वास, असंतोष पैदा होता है.

तभी किसी मुखबिरी के शक़ में किसी एक शरणदाता गृहस्वामी की हत्या करा दी जाती है. Chain Reaction शुरू हो जाता है. दो साल तक सब आपस में लड़ते-मरते हैं, एक दूसरे की मुखबिरी / हत्या का दौर चलता है. जब सब आपस में लड़ के कमजोर हो जाते हैं तो बचे खुचे को सुरक्षा बल निपटा देते हैं.

कश्मीर में यही कहानी दोहराई जा रही है.

मोदी ने पाकिस्तान को तीन तरफ से घेर लिया है. उधर से अफगानिस्तान ने मारना शुरू किया है. इधर ईरान ने पाकिस्तान बॉर्डर पर मिसाइल और जंगी बेड़ा तैनात कर दिया है. बलोचिस्तान पहले ही उबल रहा है.

पाकिस्तान अगर तीन मोर्चों पर उलझा है तो कश्मीर में उसकी उलझने की ताकत कम हो जाती है.

कश्मीरी अलगाववादियों को पाकिस्तानी फंडिंग काफी हद तक रोकने में मोदी कामयाब हो गए हैं, NIA हुर्रियत के दरवाजे खटखटा रही है.

बुरहान वानी के एनकाउंटर के बाद उसके गिरोह में नेतृत्व हथियाने की लड़ाई शुरू कर दी गयी है.

इस कड़ी में सबसे बड़ी सफलता कल मिली जब हिज़्बुल ने कश्मीर पुलिस पर हमला कर उनके 6 आदमी मार दिए. वो 6 मुसलमान थे और कश्मीरी थे. ये वो लोग थे जो कल तक इनके आंदोलन के समर्थक थे (अंदर-अंदर)…

खालिस्तान आन्दोलन की शुरुआत में भी सिख पुलिसिये खालिस्तान समर्थक थे पर बाद में उन्हीं पुलिस वालों ने खालिस्तानी आतंकियों को चुन-चुन के घसीट-घसीट के मारा…

जम्मू-कश्मीर पुलिस (JKP) पर हमला करके कल हिज़्बुल ने अपना एक समर्थक खो दिया. कल तक कश्मीरी आतंकियों को सेना और CRPF मार रही थी, अब एक और आ गया JKP.

कश्मीर में समस्या सिर्फ साढ़े तीन जिलों के कुछ pockets तक सिमट चुकी है. जुनैद मट्टू को मार दिया गया है. अब इसी तरह रोज़ाना मारे जायेंगे. Army, CRPF कम, और JKP ज्यादा मारेगी. सब ठीक चला तो जल्दी ही यानी दो-तीन साल में कश्मीर से अच्छी खबर आ सकती है.

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