मऊ पूर्वी उत्तर प्रदेश का एक जनपद है. मऊ की सबसे बड़ी खासियत है कि ये रामायण कालीन तमसा नदी के किनारे बसा है जहाँ वनवास जाते हुए प्रभु राम, माता सीता और लक्ष्मण ने प्रथम रात्रि बिताई थी. कहा जाता है कि इसी तमसा तट पर आदि कवि महर्षि वाल्मिकी का आश्रम था जहाँ लव और कुश की परवरिश हुई थी.
रामायण काल से ये इलाका जंगल था जहाँ वनवासी लोग रहा करते थे. इस इलाके पर विशेषकर नट जाति का प्रभाव था और वही लोग हमेशा से यहाँ के शासक हुआ करते थे.
रामायण काल से ही ये पूरा जनपद उन्हीं नटों के आधिपत्य में था, किसी सवर्ण, किसी ब्राह्मण, किसी ठाकुर ने उनको वहां से नहीं हटाया पर सन् 1028 के आस-पास एक कथित सूफी संत बाबा मलिक ताहिर का वहां आक्रमण हुआ.
आक्रमण इसलिये लिखा क्योंकि वो सूफी अकेले नहीं आये थे बल्कि उनके साथ एक पूरी सैन्य टुकड़ी भी थी जिसका नेतृत्व उनका भाई मलिक कासिम कर रहा था. इस सूफी को सैय्यद सालार मसऊद गाजी ने इस इलाके पर कब्ज़ा करने के लिये भेजा था.
वहां के तत्कालीन शासक ‘मऊ नट’ मलिक बंधुओं से अपने धर्म और अपनी जन्मभूमि को बचाने की कोशिश में अपने लोगों के साथ बलिदान हुए. इस विजय के पश्चात् उन्मादियों ने इस क्षेत्र को ‘मऊ नट भंजन’ कहना शुरू किया गया जो कालान्तर में मऊनाथ भंजन और फिर सिर्फ मऊ हो गया.
उस मऊ राजा के बलिदान को हममें से कितने लोग जानते हैं और इतिहास की कितनी किताबों ने उन्हें याद रखा है ये प्रश्न विचारणीय तो है ही, साथ ही इस बात का प्रमाण भी है कि हिंदुत्व के रक्षण में सभी जातियों का बलिदान एक समान है.
हिंदुत्व की अमृत बेल हर जाति के रक्त से सिंचित हुई है. त्रेता में जब रावण ने बलात माता सीता का हरण किया था तब राम के साथ खड़े होने वाले लोग कथित सवर्ण नहीं थे बल्कि वही थे जिन्हें आज समाज में वंचित और पिछड़ा कहा जाता है.
क्षत्रियत्व एक भाव है जिसे हर काल में हर जाति ने जिया है. अटल जी ने लिखा है –
तब स्वदेश रक्षार्थ देश का सोया क्षत्रियत्व जागा था
रोम-रोम में प्रगट हुई यह ज्वाला जिसने असुर जलाये देश बचाया
वाल्मीकि ने जिसको गाया,
चकाचौंध दुनिया ने देखी, सीता के सतीत्व की ज्वाला,
विश्व चकित रह गया देख कर, नारी की रक्षा निमित्त जब
नर क्या वानर ने भी अपना, महाकाल की बलि वेदी पर,
अगणित हो कर सस्मित हर्षित शीश चढाया
सदियों से जंगलों, गुफाओं और सुदूर इलाकों में रह रहे ऐसे न जाने कितने लोग हैं जिन्होंने संकट काल में हिंदुत्व की ज्योति जलाये रखी. उनका इतिहास भले ही लिखा न गया हो पर वो बलिदान किसी से कमतर तो नहीं ही है.
सीता के सतीत्व की रक्षा और धर्म पक्ष में श्रीराम के साथ खड़े होने वाले वो सब लोग केवल कथित ऊँची जाति के तो नहीं थे.
राम और वाल्मीकि के तमसा क्षेत्र को शत्रुओं के अपवित्र क़दमों से बचाते हुए बलिदान हुए मऊ राजा, महाराणा प्रताप के लिये मुगलों से लड़ने वाले गिरिजन, हिंदुत्व को बचाने के लिये अपने पुत्र का बलिदान देने वाली पन्ना धाय और जूनागढ़ के राजा राव महिपाल सिंह के पुत्र राजकुमार नौघण तथा महारानी महामाया के प्राण रक्षण के लिए अपने पुत्र की बलि देने वाले अहीर रामनाथ और उनकी पत्नी इन सबकी कहानी सिर्फ कहानी नहीं है ये उन सबको जवाब है जो हिंदुत्व रक्षण में सिर्फ और सिर्फ अपनी जाति का ही गौरव-गान करते रहते हैं और इस नाते खुद को हिंदुत्व का ठेकेदार समझते हैं.
राहत इंदौरी के एक शे’र से प्रेरित ये शीर्षक थोड़ी असभ्यता दर्शा सकता है, पर जातिवादी पूर्वाग्रहों से भरे कुंठित लोगों के लिये इससे बेहतर शीर्षक नहीं हो सकता था.