पवित्र परिवार की संध्या के आख़िरी क्षण थे. गाँधी और नेहरू की आँखों से दुनिया को रौशन करता आया कभी परमशक्तिशाली रहा तिरंगा सूरज गुजरात के पश्चिमी तट पर फिसलता हुआ कच्छ की खाड़ी में डूब कर बुझने की कगार पर था. अर्जुन सिंह, बाबा जीतेन्द्र प्रसाद, राजेश पायलट, माधवराव सिंधिया जैसे महारथियों की धू-धू जलती चिताओं और नारायण दत्त तिवारी तथा कांतिलाल भूरिया जैसे अर्धमृत वीरों की अधजली चिताओं से उठ रहे जले हुए माँस, अस्थियों और मज्जा के धुएँ तथा दुर्गन्ध से पूरी रणभूमि महाश्मशान में बदल चुकी थी. ठीक महारणभूमि के मध्य में कांग्रेस पार्टी का भीमकाय अतिविशाल शरीर क्षत-विक्षत पड़ा आख़िरी साँसें ले रहा था.
प्रचंड महापराक्रमी युवराज राहुल के कुशल नेतृत्त्व में कपिल सिब्बल, ए. राजा, पी. चिदंबरम जैसे प्रचंड वीरों के तीक्ष्ण व सधे हुए बाणों, तथा सबसे बढ़ कर युवराज के निजी राजगुरु दिग्विजय सिंह की खड्ग के मारक प्रहारों से उस पर्वतरूपी शरीर का एक-एक हिस्सा लहू का फ़व्वारा बन कर ज़मीन के एक-एक ज़र्रे पर सुर्ख रंग की चादर चढ़ा रहा था. पितामह मनमोहन सिंह पूरे युद्ध काल की ही तरह अब भी वैसे ही निस्पृह और निश्चेष्ट थे.
युवराज राहुल कांग्रेस पार्टी के उस धूल-धूसरित शरीर पर नज़र गड़ाए हुए अपने महामिशन की सफलता और अपनी अंतिम विजय से निश्चिन्त हो कर मालिबू के बीच डेस्टिनेशंस पर गोपनीय प्रवास हेतु अपने ख़ुफ़िया ट्रेवल एजेंट से संपर्क करने के लिए प्रयास कर ही रहे थे, कि अचानक उस दानवाकार शरीर के बाएँ हाथ की छोटी उंगली में हल्की सी हरकत हुई.
“जतिन, ज्योतिरादित्य, मुरली, कहाँ हो सब!!?? आपदकाल!!” युवराज ने पूरी ताक़त लगा कर पुकारा. लेकिन कहीं से कोई आवाज़ नहीं आई. ‘मिशन ऐकम्पलिश्ड, ओवर एंड आउट’ का वायरलैस संदेश सुन कर लंबे और थकाऊ युद्ध से हलकान सभी युवा योद्धानायक रिफ्रेश होने के लिए रणक्षेत्र के बाहर बनी डिफेंस बार में जा चुके थे. युवराज का गला सूखने को हुआ, कहीं कोई सैनिक नज़र नहीं आ रहा था.
तभी घोर अँधेरे में दूर कहीं टिमटिमाते दिए की लौ की तरह संदीप दीक्षित नज़र आए. हालाँकि पूरे युद्ध के दौरान रणभूमि में उनका कोई ख़ास योगदान नहीं था, सिर्फ़ दिल्ली वाले कोने में कॉमनवेल्थ गेम्स के अग्रिम मोर्चे पर खड़ी होकर अद्भुत वीरता से कांग्रेस पार्टी के शरीर पर विषैले प्राणघातक बाण छोड़ती अपनी माँ शीला दीक्षित की टुकड़ी को रसद पहुँचाने का छोटा सा काम ज़रूर करते आए थे संदीप. लेकिन अब आपदकाल था, मने इमरजेंसी 2.0!!
जैसे ही संदीप के कानों में युवराज राहुल के प्रखर शब्द पड़े, क्षण भर में वे सब कुछ समझ गए. ‘बाहुबली 2’ में अमरेन्द्र बाहुबली द्वारा कुमार वर्मा को कहे गए ओजपूर्ण प्रेरणादायक शब्द उन्हें सहसा याद हो आए, और संदीप समझ गए कि अपना पराक्रम साबित करने का वह दुर्लभ क्षण उनके जीवन में आ चुका है. अपने रोम-रोम में से सारी ऊर्जा और शौर्य की बूंदों को निचोड़ कर संदीप दीक्षित ने समीप पड़े विशालकाय हथौड़े को उठाया जिस पर बड़े-बड़े शब्दों में ‘जनरल बिपिन रावत ठग है’ लिखा था, और उसे गदा की तरह अपने कंधे पर टिका लिया.
आँखें बंद कर संदीप ने अपनी माँ को कॉमनवेल्थ गेम्स के मोर्चे पर वीरता से लड़ते हुए देखने के दृश्य फिर से स्मरण किए, और फिर दिल्ली कांग्रेस कमेटी के सूख चुके पेड़ की आख़िरी हरी डाल को कमान की तरह मोड़ एक लंबी छलांग लगा कर ठीक कांग्रेस पार्टी के लहूलुहान शरीर की छाती पर जा पहुँचे.
घड़ी की सुइयां थम चुकी थीं. धड़कते दिल और धमनियों में दौड़ते अग्निद्रवप्राय रक्त के साथ संदीप ने ठीक युवराज राहुल की आँखों में झाँक कर देखा.
“प्रतिघात, संदीप!! अंतिम प्रतिघात!!” – अपनी आँखों से चिंगारियाँ बरसाते युवराज गगनभेदी स्वर में चीख़े. उनकी चीख़ की गूँज के बीच ही संदीप ने पूरी ताक़त से वह हथौड़ा हवा में उठाया, और आसमान चीरते स्वर में ‘जय मोदिष्मतीssssss!!!!’ का नारा बुलंद करते हुए कांग्रेस पार्टी के उस कभी महापराक्रमी रहे मृतप्राय वृद्ध शरीर के कंधे पर प्रचंडता से वज्रवार किया!! उसकी बाईं बाँह कट कर दूर जा गिरी, और ‘हे सेक्युलरिज़्म’ की धीमी सी आवाज़ करते हुए वह शरीर शांत हो गया.
संदीप ने एक बार फिर से युवराज राहुल की ओर देखा. किसी सूफ़ी फ़कीर की तरह शांत, सहज और मृदुल चेहरे पर खेलती स्मित मुस्कान से युवराज ने संदीप की तरफ़ अंगूठे का इशारा कर उन्हें इस अद्भुत शौर्य के लिए मुबारकबाद दी, और संदीप के होंठों पर एक उल्लासपूर्ण हंसी खेल गई. आज वे रसद ढोने वाले अर्दली से योद्धा बन चुके थे, युवराज राहुल के ‘महामिशन मोदिष्मती’ की सफलता के इतिहास के पन्नों पर उनका नाम भी हमेशा-हमेशा के लिए दर्ज हो गया था!!!
– अरविन्द कुमार
(नोट : इस व्यंग्य को व्यंग्य की तरह ही पढ़ा जाए, किसी व्यक्ति या दल विशेष की भावना आहत करने के उद्देश्य से नहीं)