पटियाला का राजा भूपेंद्र सिंह अपने जमाने के बेहद अभिमानी, अकड़बाज़ आदमी थे. शिमला उन दिनों ग्रीष्मकालीन राजधानी हुआ करती थी.
[भाग-1 : सिर्फ अंग्रेजों के पट्टाधारी ग़ुलाम मुल्क और कौमें ही खेलती-देखती हैं क्रिकेट]
अंग्रेज लाट बहादुर को दिल्ली में गर्मी लगती थी सो गर्मियों में पूरा लाव लश्कर ले के शिमला चले जाते थे. सैकड़ों बैलगाड़ियों का काफिला पूरा बंदोबस्त ले के शिमला पहुंचता. तब तक ये कालका-शिमला रेल लाइन नहीं बनी थी.
इसे दरबार मूव कहा जाता था. ऐसा ही दरबार मूव जम्मू काश्मीर में आज भी होता है जब सर्दियों में पूरी राजधानी श्रीनगर से जम्मू आ जाती है. सरकार की एक-एक फ़ाइल उठा के जम्मू लायी जाती है.
बहरहाल शिमला वापस चलते हैं.
सो हुआ यूं कि गर्मियों के सुहाने मौसम में महाराजा पटियाला भूपेंद्र सिंह शिमला की मॉल रोड पर अपना घोड़ा दौड़ा रहे थे… सरपट… उसी सड़क पर लाट बहादुर गवर्नर साहब की बेटी अपनी सहेलियों के साथ टहल रही थीं.
महाराजाधिराज के घोड़ों की टापों से धूल का गुब्बार जो उठा तो मैडम को नागवार गुजरा. उन्होंने महाराजा को अंग्रेजी में गरिया दिया.
महाराज ने सुन लिया और घोड़े को इमरजंसी ब्रेक मार के लौटा ले आए और ऐसा कहा जाता है कि विशुद्ध पंजाबी में गरिया दिया… ये आधिकारिक version है जो फाइलों में दर्ज है…
अंदर की कहानी जो दीवान जरमनी दास ने लिखी है वो ये है कि महाराज ने पटियाला में बैठने वाले रेज़िडेंट अंग्रेज लाट बहादुर की बिटिया को उठा लिया था और वो गर्भवती हो गयी थी.
महाराज की इस गुस्ताखी से अंग्रेज सरकार बहुत ख़फ़ा थी सो शिमला की घटना को तूल दे दिया गया. कार्यवाही हुई और महाराजा पटियाला को हमेशा के लिए शिमला से निष्कासित बोले तो तड़ी पार कर दिया गया.
महाराज थे ही अभिमानी. उनसे कहा गया कि माफी मांग लो. वे बोले, काहे की माफी बे… अबे हम शिमला लघुशंका निवारण के लिए भी नहीं आएंगे.
उन्होंने हुक्म सुनाया… नया शिमला बनाओ.
आनन फानन में शिमला से 40 km पहले छैल नामक स्थान तय हुआ. वहां एक महल बना. अब समस्या ये कि सिर्फ महल बन जाने से रौनक मेला कैसे हो…
सो महाराज ने आदेश दिया… क्रिकेट का ग्राउंड बनाओ.
सो एक पहाड़ी की चोटी को काट के मैदान बनाया गया और दुनिया का सबसे ऊंचा और सबसे खूबसूरत क्रिकेट का मैदान तैयार हुआ.
मैदान बन गया तो देश भर की क्रिकेट टीमों को न्योते भेजे जाने लगे. देश के राजा महाराजा, उनके परिवार और तमाम अंग्रेजी टीमें वहां क्रिकेट खेलने जुटने लगीं.
छैल उस जमाने मे क्रिकेट का तीर्थ बन गया था. उस ज़माने में, तब से ले के आज तक जितने भी मैच खेले गए छैल में, उन सबका आधिकारिक रिकॉर्ड आज भी मौजूद है.
वो महल आज एक फाइव स्टार होटल में तब्दील हो गया है. वहां एक क्रिकेट म्यूज़ियम भी है. महल / होटल / म्यूज़ियम में आम जनता का प्रवेश पहले वर्जित था.
आज से कोई 20 साल पहले हिमाचल सरकार ने 200 रु प्रति व्यक्ति टिकट लगा के आम आदमी के लिए गेट खोले.