टोल प्लाज़ा से जरूर गुजरे होंगे, टोल टैक्स भी जरूर भरा होगा. टोल प्लाजा शुरू होने के पहले कौन-कौन से नमूने पैसे नहीं भरेंगे, उसकी लिस्ट लगी होती है बड़े-बड़े बोर्ड पर लिख कर। जबकि वो सारे के सारे (99%) मालदार और बहुत सारे तो मस्त भ्रष्ट लोग हैं। उनको 100 – 200 भरने से कोई नुकसान नहीं होने वाला।
ये बोर्ड उनके सुपीरियर होने को दर्शाता है, उनके सामंत और जनता को हाँक के किनारे लगाने की ताकत को दर्शाता है। उनको 100 – 200 या 300 से फर्क नहीं पड़ता लेकिन ये विशिष्ट दिखने और समाज से ऊपर वाला माने जाने वाला रुतबा है ये एक्सेप्शन। जबकि कोई भी आम करदाता, सभ्य इंसान, गरीब कोई भी इंसान हो टोल जरूर भरेगा। किसी कारण नहीं भरने पर जाने नहीं देंगे टोल वसूली कम्पनी के लगाए हुए गुंडे।
एक दिन लखनऊ-कानपुर रोड पर स्थित नवाबगंज टोल पर हम गलती से बिना पर्स में पैसे डाले पहुँच गए। नगद धन हम कम ही रखते हैं, कुल मिला के 100 रुपये न इकट्ठे हो पाएं…
टोल के पैसे चुकाने के लिए वापस 10 किलोमीटर आना पड़ा ATM से पैसे निकालने क्योंकि तब टोल वालों ने स्वाइप मशीन नहीं लगाईं हुई थी… लेकिन टोल न देने वाले नमूनों और असामाजिक तत्वों के मज़े हैं… उनको कोई फर्क नहीं पड़ता.
इसके विपरीत चीन, कोरिया में सबको टोल देना है। यहाँ टोल के गेट ऑटोमेटिक हैं, पेमेंट कार्ड से होता हैं और टोल वाले केबिन में एक लड़की बैठी रहती है, वो सिर्फ रुकने और जाने के इशारे करती है… कोई गुंडे या लठैतों की टोली नहीं होती.
चाहे कोर्ट का जज हो, कोई नेता, सांसद या फिर अफसर… टोल दो और आगे निकलो. यूरोप और अमेरिका में तो टोल केबिन में कोई बैठा ही नहीं होता… कैमरा लगा होता है. कार्ड से टोल दो, टोल टिकट लो और आगे बढ़ो… कोई फन्ने खां नहीं है…
सरकार को इस सामंती व्यवस्था को खत्म करके सबसे टोल वसूली करना चाहिए… कोई भी एक्सेप्शन नहीं होना चाहिए.. ऑफिशियली किसी को भी बिना टोल दिए जाना समाजवादी और लोकतान्त्रिक ताने-बाने का मज़ाक है… सबसे टोल लो वरना किसी से भी न लो.
लाइन में लगने में असमानता और सामंतशाही
एक दिन बैंगलोर हवाई अड्डे पर (2003 – पुराने वाले) लखनऊ के लिए फ्लाइट लेने को चेक-इन लाइन में लगे थे और तभी हड़कम्प मच गया। CISF के लोग सबको, ‘हटो-हटो.. किनारे-किनारे..’ चिल्लाते और लोगों लगभग धकियाते हुए दो नमूनों को ले आए…
वो सीधे कांउटर पर गए, वहां से पास लिया और सीना ताने सबको मुँह चिढ़ाते हुए से आगे बढ़ गए… कई जमूरे… ‘वाओ कुंबले… वाओ श्रीनाथ…’ करके पागल भी हुए जा रहे थे…
एक दूसरी घटना हुई एक बार म्युनिक हवाई अड्डे पर मई 2010 में… चेक-इन की लाइन में लगे थे… और एक बार पीछे मुड़ के देखा तो बिजली सी कौंध गयी… फिर मुड़ के देखा… चुपचाप लाइन में लगे उस इंसान की भी नज़रें मिलीं… शांत और सौम्य…
एक मुस्कान दोनों ने एक-दूसरे को दे दी… लेकिन हमारे अन्दर के हिंदुस्तानी कीड़े ने खलबली मचाई और हम उससे बात कर ही बैठे…
मैंने कहा – I know you. उसने कहा – Oh really, thank you. But how do you know me.
मैंने कहा – You are an international star, a world champ. उसने पूछा – Which country you belong to?
मैंने कहा – India. वो बोला – Oh wow, some people in India also know me…
मैंने कहा – Everyone in India know Boris Becker – The Great Beaker.
उसके बाद उस आदमी ने जो कहा वो उसकी सोच और बड़प्पन को दर्शाता है… उसने कहा – You have bigger star in India, bigger than many in world…
मैंने अचम्भे से पूछा – Who is that person.. that star? इस सोच के साथ कि अभी ये सचिन तेंदुलकर बोलेगा…
लेकिन नहीं, उसने कहा – Leander Paes is great. He is having all championship shields, many of us do have those but he is having precious Olympic Medal and, many of us don’t have it. I am happy that I never played against him in Davis Cup, ask Goran and Pete… Leander is a giant killer.
खैर नंबर आया, महान बोरिस बेकर ने सारे धातु के सामान जैसे बेल्ट, चिल्लर, घडी और जैकेट ट्रे में डाला… जूते उतार के खुद ही बिना सिक्योरिटी वालों के बोले (eine Metallteile sein – may be one metal parts) दूसरे ट्रे में डाला… सुरक्षा गेट पार किया… सामान बटोरा और बिना किसी तड़क भड़क के, जो भी दिखा सबको Guten Morgan (Good Morning) बोलता हुआ आगे बढ़ता चला गया.