जर्मनी में एक गाँव है Seelbach 400 लोगों का, एक क़स्बा है Staufen 2000 लोगों का, एक है Waltheim 500 लोगों का, एक और गाँव है Heitersheim 1000 के आसपास लोग होंगे, एक शहर हैं Reutlingen लगभग 1 लाख लोगों का जितना अपने यहाँ एक कस्बे में होते हैं.
फ्रांस में एक क़स्बा है Dagneux करीब 4000 लोगों का, एक क़स्बा है Marolles-en-Hurepoix जहाँ 4700 लोग रहते हैं… डेनमार्क में एक शहर है, शहर उतना बड़ा जितना अपने कस्बे का मोहल्ला होता है, नाम है Lynge और वहां 4500 आसपास लोग रहते हैं…
ये आंकड़े मैं डेढ़ साल पहले के बता रहा हूँ क्योंकि इधर मेरा इस इलाके में आना-जाना नहीं हुआ है… ऐसे अनेकों गाँव और कसबे हैं…
आज मैं यूरोप इसलिए पहुँच गया क्योंकि पता चलता रहता है कि सरकार लाखों डॉलर खर्च करके सरकारी लोगों को भेजती है यूरोप स्टडी करने के लिए…
पता नहीं क्या स्टडी करके आते रहे हैं और कितना फायदा लाते हैं… रिपोर्ट बनाते हैं या नहीं, पता नहीं… रिपोर्ट कोई पढ़ता है या नहीं…
तो 1997 से लगातार अनेकों बार यूरोप के दौरे करने के बाद सोचा एक रिपोर्ट सरकार को फ्री में यहाँ से दे देता हूँ… कोई पहुंचा देना…
ऊपर बताए गए कस्बों और गावों की ख़ास बात हैं कि इन सब जगहों पर multimillion टर्नओवर की कम्पनी स्थापित हैं. ऐसा ही लगभग जर्मनी, फ्रांस, स्विट्ज़रलैंड, डेनमार्क, नीदरलैंड्स के हर पांचवें-छठे गाँव में है.
इसका बहुत बड़ा फायदा ये है कि इन देशों के शहरों पर लोड नहीं है जैसा कि हमारे यहाँ NCR, मुंबई, बैंगलोर, पुणे, चेन्नई, हैदराबाद के ऊपर है.
क्या आप मानेंगे कि पेरिस, फ्रैंकफर्ट, स्टुटगार्ट, कोपेनहेगेन या एम्स्टर्डम जैसे बड़े शहर आप दो दिन में पैदल ही घूम सकते हैं. पेरिस, लखनऊ-बनारस से भी छोटा है और फ्रैंकफर्ट गोरखपुर से भी छोटा…
ऐसा क्यों हैं? वो इसलिए कि इन देशों में विकास समग्र हुआ है. हर गाँव के आसपास ऐसे बड़े उद्योग हैं कि लोगों को रोजगार उपलब्ध है. जिसकी वजह से दुकानें, बैंक, मॉल आदि की सुविधा हर 8-10 गाँव में ही उपलब्ध है.
उद्योग स्थापित करने से सड़कें, बिजली और पानी की भी सप्लाई भरपूर है. इसका फायदा रहने वालों को मिलता है. लोगों को शहरों की तरफ भागना नहीं पड़ता… शहरों पर लोड नहीं पड़ता…
भारत में पूरा औद्योगिक विकास बड़े शहरों के पास होता रहा जिससे वो सब बढ़ते रहे और लोड कण्ट्रोल के बाहर जाता गया.
निगमों को इतना बड़ा लोड झेलना मुश्किल हो गया. पानी, बिजली, सफाई, सड़क सब की आपूर्ति विकराल समस्या बन के खड़ी हो गयी है.
समाधान
भारत के कस्बों का औद्योगीकरण – जिससे वहां के लोगों को उधर ही काम मिल सके.
भारत के गावों के आस पास food processing इकाईयां लगाने से किसानों की समस्याओं का समाधान.
भारत के कस्बों-गावों के आस पास बिजली सप्लाई के ग्रिड लगाना.
भारत में सोलर तकनीकी से बिजली बनाने के बहुत सारे पार्क बनाना जिससे उद्योग और लोगों को बिजली मिले.
भारत के हर घर में एक सोलर पैनल से बिजली पाने के लिए बाध्य करना.
भारत के हर घर को रेन वाटर हार्वेस्टिंग के लिए बाध्य करना.
भारत के हर कस्बे में स्किल डेवलपमेंट का संस्थान लगाना.
भारत में हर जगह से माल ढुलाई के लिए सड़क की व्यवस्था करना.
भारत के हर 200-250 किलोमीटर पर रेलवे के कंटेनर से माल ढुलाई की व्यवस्था की स्थापना करना.
किसी भी देश के उन्नति का सबसे बड़ा कारण है उत्पादन. जितना उत्पादन बढ़ेगा उतनी उपलब्धता ज्यादा होगी. जितनी उपलब्धता ज्यादा उतने ही सस्ते बाजार.
जितने सस्ते बाजार उतना ही लाइन के अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति को भी सब चीज मिल जाने की आसानी. जितना ही सबको चीज़ें उपलब्ध होती हैं उतना ही सुखी समाज. समाज सुखी तो देश सुखी.
ये सारे काम करने के लिए सरकार को सिर्फ पॉलिसी बनाना और रेगुलेट करने का ही जिम्मा लेना चाहिए. बाकी सब प्राइवेट सेक्टर को करना चाहिए जिससे नए उद्यमी आएंगे.
सरकार को ये सारे काम करने के लिए MSME को बढ़ावा देना चाहिए. बैंक से आसान क़र्ज़ कम से कम ब्याज पर उपलब्ध कराना चाहिए. सरकार को क़र्ज़ का दुरूपयोग करने वाले और न लौटाने वाले लोगों पर कड़ी कार्यवाही करना होगा.
सरकार को सिर्फ पॉलिसी बनाने और नियमन पर ध्यान देना होगा… सिविल सर्विसेज को ख़त्म करके कॉन्ट्रैक्ट व्यवस्था लानी होगी – perform or get lost…
देशहित में मैं अपने लगभग 15 वर्ष के 18 देशों में कई-कई बार आने-जाने और समझने के अनुभव सरकार से बांटने और रिपोर्ट देने को तैयार हूँ वो भी फ़ोकट में… सरकार को बाबुओं पर ज्यादा खर्च करने की जरूरत नहीं है.
अच्छा सुझाव है लेकिन बाबुओं की जेब नही भरी तो प्रयोग होना नामुमकिन है। भर्ष्टाचार तो हिंदुस्तान के खून में है जी ।