जातीय आरक्षण की आग से अगर देश को बचाना है तो तमाम चीज़ों का निजीकरण ही एकमात्र रास्ता शेष रह गया है. वह चाहे रेल हो, रोडवेज़ हो या बिजली. या कोई और उपक्रम.
सरकारी उपक्रमों के निजीकरण से कई फ़ायदे होंगे. एक तो चीजें पटरी पर आ जाएंगी, भ्रष्टाचार खत्म होगा, सेवाएं सुधर जाएंगी.
उदाहरण के लिए आप कुछ निजीकरण पर नज़र डालें. एयरलाईंस और मोबाईल सेवाएं न सिर्फ़ सस्ती हुई हैं, इन की सेवाएं भी बहुत सुधरी हैं.
मेरा तो मानना है कि देश के सारे सरकारी प्राइमरी स्कूल भी निजी क्षेत्र में दे दिए जाने चाहिए. वैसे भी इन सरकारी स्कूलों में लोग अपने बच्चे पढ़ने के लिए नहीं भेजते.
कुछ गरीब अपने बच्चे सिर्फ़ मध्यान्ह भोजन के लिए भेजते हैं. सारा जोर भोजन पर है. तो सिर्फ़ रसोइया रखिए. इतने सारे अध्यापक रखने कई क्या ज़रुरत है.
मिसाल के लिए आप बिहार को देखिए. बिहार बोर्ड क्या पैदा करता है, गणेश और रूबी राय जैसे फर्जी टापर. लेकिन उसी बिहार में आनंद का कोचिंग आई आई टी में अपने सारे बच्चे भेज देता है.
बिहार के एक गांव के बच्चे भी आगे आए हैं. तो क्या सरकारी स्कूलों के भरोसे? देश के सारे प्राइमरी स्कूल हाथी के दांत बन कर सिर्फ़ हमारे टैक्स का पैसा चबा रहे हैं, प्रोडक्टिविटी शून्य है.
यही हाल देश के सारे सरकारी प्राइमरी हेल्थ सेंटरों का भी है. यहां डाक्टर सिर्फ़ वेतन लेते हैं, इलाज नहीं देते. अगर पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिर्फ़ सरकार के भरोसे रहे तो क्या कहीं कोई आ जा पाएगा?
जातीय आरक्षण ने सिर्फ़ समाज में ही आग नहीं लगाई है, देश के विकास को भी भाड़ में डाल दिया है. आप चले जाईए किसी सरकारी आफिस में. और किसी आरक्षित वर्ग के किसी अधिकारी, कर्मचारी से करवा लीजिए कोई काम. नानी याद आ जाएगी, काम लेकिन नहीं होगा. बिना रिश्वत के नहीं होगा.
या पूछ लीजिए किसी सवर्ण अधिकारी या कर्मचारी से कि क्या वह आरक्षण समुदाय के लोगों से काम ले पाता है? या यह लोग काम जानते भी हैं? जानते भी हैं तो क्या करते भी हैं? बहुत सारे सवाल हैं. जो हर सरकार में अनुत्तरित हैं, रहेंगे.
आप सोचिए कि बीएसएनएल की सेवाओं का क्या आलम है. अगर बीएसएनएल की सेवाओं के बूते देश में इंटरनेट और मोबाईल सेवाएं होतीं तो देश का क्या होता.
यही हाल सभी सरकारी उपक्रमों का है. और इन के खस्ताहाल होने का दो ही कारण है सरकारी होना और इस में भी आरक्षण होना.
आप मत मानिए और मुझे लाख गालियां दीजिए, यह कहने के लिए, लेकिन कृपया मुझे कहने दीजिए कि जातीय आरक्षण ने देश में विकास के पहिए में जंग लगा दिया है.
बस सेवाओं का निजीकरण करते समय नियामक संस्थाओं को कड़ा बनाए रखना बहुत ज़रुरी है. आप सोचिए कि स्कूल अस्पताल आदि प्राइवेट सेक्टर में न होते तो क्या होता. इन सभी सरकारी सेवाओं, स्कूलों में दुर्गति का बड़ा कारण आरक्षण है.
सोचिए यह भी कि अगर प्राईवेट सेक्टर नहीं होता तो सवर्णों के बच्चे कहां पढ़ते और कहां नौकरी करते. तो क्या यह देश अब सिर्फ़ आरक्षण वर्ग के लोगों के लिए ही है.
यह देश सभी समाज, सभी वर्ग के लिए है. पर दुनिया का इकलौता देश भारत है जहां पचास प्रतिशत से अधिक आरक्षण है और अब सर्वदा के लिए है.
सरकारी नौकरियों, उपक्रमों से यह जातीय आरक्षण हटाने की हिम्मत अब किसी भी सरकार में नहीं है. सो आरक्षण खत्म करने का सिर्फ़ एक ही रास्ता है सभी उपक्रमों और सेवाओं का निजीकरण.
देखिएगा तब देश के विकास की रफ़्तार चीन से भी तेज हो जाएगी. लिख कर रख लीजिए. बस एक ध्यान सर्वदा रखना पड़ेगा कि निजीकरण में संस्थाएं लूट का अड्डा नहीं बनें. उन पर पूरी सख्ती रहे.
यकीन मानिए अगर ऐसा हो गया तो यह जो जातियां आरक्षण के नाम पर, उस की मांग में आए दिन देश जलाती रहती हैं, यहां-वहां आग लगा कर देश की अनमोल संपत्ति नष्ट करती रहती हैं, इन पर भी अपने आप लगाम लग जाएगी.
जब सब जगह प्रतिद्वंद्विता आ जाएगी तो यह लोग आरक्षण मांगना तो दूर, आरक्षण शब्द ही भूल जाएंगे.
अन्यथा, यह लोग आरक्षण के नाम पर ऐसे ही देश को ब्लैकमेल करते रहेंगे, आग मूतते रहेंगे, देश जलाते रहेंगे. और मुफ्त की मलाई काटते रहेंगे.
उठिए और जागिए. देश को तरक्की के रास्ते पर ले चलने का सपना देखिए, देश को जलने से बचाईए. देश को निजीकरण की राह पर लाईए.