इस्लामी क़ानून के अनुसार निकाह से पहले लड़की की ज़िम्मेदारी उसके पिता, पिता न हो तो भाई और निकाह के बाद शौहर की होती है. किसी कारण से तलाक़ हो जाये तो यह ज़िम्मेदारी वापस पिता या उसकी अनुपस्थिति में भाई की हो जाती है.
ज़िम्मेदारी से तात्पर्य अभिभावक होना होता है अर्थात उस महिला को अपने जीवन के सामान्य कार्यों के लिए इन अभिभावकों की अनुमति लेनी होती है.
इस्लामी क़ानूनविदों की समझ में औरत की ज़िम्मेदारी हर स्थिति में पुरुष को उठानी चाहिये.
एक सामान्य बुद्धि वाले व्यक्ति के मस्तिष्क में भी यह प्रश्न आ सकता है कि इस्लामी क़ानूनविदों की दृष्टि में कोई मुसलमान औरत अपनी ज़िम्मेदारी उठाने के लायक़ क्यों नहीं है? क्या औरत बुद्धि नहीं रखती?
आइये इस दक़ियानूसी चिंतन के परिणामों का अवलोकन किया जाये.
उर्दू के प्रमुख अख़बारों में से एक नई दुनिया के 16 अप्रैल के अंक का समाचार है कि सऊदी अरब से जवान लड़कियां भारी संख्या में फ़रार हो रही हैं.
बताया जाता है कि यह लड़कियां विदेशों में उच्च शिक्षा प्राप्त करने, और वहां पर नौकरी करने के लक्ष्य से अपने देश से भाग रही हैं. जो लड़कियां उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए विदेश जाती हैं वो वापस नहीं आतीं.
ज्ञातव्य है कि सऊदी अरब में कोई महिला पुरुष के बिना घर से नहीं निकल सकती. उन्हें कार चलाने और पर्दा किये बिना घर से निकलने का अधिकार नहीं है. विदेश गई सऊदी महिलाएं वहाँ अपने लिये वर तलाश कर रही हैं ताकि वह वहाँ पर बस सकें.
जानना उपयुक्त होगा कि सऊदी अरब की एक तलाक़शुदा औरत ने बताया कि मैं 45 वर्ष की हूँ मेरा अभिभावक 17 वर्ष का मेरा भाई है. मैं एक अस्पताल में काम कर रही हूँ. मेरा भाई मुझे अपनी निगरानी में अस्पताल लाता है और वापस ले जाता है. मुझे जो वेतन मिलता है वो छीन लेता है और उससे अय्याशी करता है, उससे नशीले मादक पदार्थों का सेवन करता है.
सऊदी अरब के एक विश्वविद्यालय के एक उपकुलपति ने नाम न छपने की शर्त पर बताया कि प्रतिवर्ष डेढ़ लाख सऊदी लड़कियां उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए विदेश जाती हैं और वापस नहीं आतीं.
1400 वर्ष पहले मुकम्मल दीन भेजने का दावा करने वाले अल्लाह को मानवता और इस्लामियों का भविष्य नज़र नहीं आया? इसी तरह से इस्लामी देशों में औरतों की कमी होती रही तो सरकार की उम्मत (प्रजा) क्या करेगी या क्या-क्या न करेगी… अंदाज़ा लगाइये?