चरित्र के छिद्रान्वेषण की बजाय हिन्दू जागरण में हो महापुरुषों का उपयोग

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आर्य समाज के एक प्रचारक हुए थे पंडित रुचिराम आर्योपदेशक. अपने गुरु स्वतंत्रतानन्द जी महाराज की आज्ञा से वो 1925-26 में अरब देशों में धर्म प्रचार करने गये थे. वहां 7 साल धर्मप्रचार करने के बाद जब वो लौटे तो लौटकर ‘अरब में सात साल’ नाम से एक किताब लिखी.

इस किताब में कई रोचक तथ्य हैं, जिनमें एक ये है कि अपनी यात्राओं में उन्हें अरब प्रायद्वीप के कई बद्दू और जनजातीय लोगों से मिलने के दौरान ये पता चला था कि भारत से सिर्फ एक नाम है जो उन लोगों को पता है और वो नाम है महात्मा गांधी का.

पंडित रुचिराम जी से वो लोग कहते थे कि तुम गैन्धी (गांधी) के देश से आया है, उसके बारे में हमको बताओ. गांधी की ये वैश्विक पहचान तबसे थी जब उनका भारतीय राजनीति के पटल पर उद्भव ही हुआ था. उसके बाद तो गांधी महामानव बनके उभरे.

ये तो निर्विवाद है कि आज गांधी भारत और अहिंसा के शाश्वत प्रचारक के रूप में विश्व क्षितिज पर स्थापित हैं. आइन्स्टीन से लेकर नेल्सन मंडेला तक ने गांधी को महामानव माना है.

गांधी के नाम से विदेशों में सड़कों के नाम हैं, कॉलेज के हॉल उनके नाम पर हैं, उनकी प्रतिमाएँ स्थापित हैं, उनके ऊपर पढ़ाई की जाती है और इधर वो जाति जिसने गांधी को जन्म दिया उसके अपने लोग ही गांधी का मजाक उडाते हैं, उनको अपनाना नहीं चाहते, उनके चरित्र पर टीका-टिप्पणी करते हैं.

ये सब देख- सुनकर दुनिया हमारे ऊपर हंसती है कि ये हिन्दू कैसे लोग हैं जो गांधी जैसे महामानव को स्वीकार नहीं कर पा रहे. आप-हम जब गांधी का मजाक बना रहे होते हैं तो कभी सोचते हैं कि इससे दुनिया हमारे बारे में क्या धारणा बना लेती है?

और अपने ही लोगों पर टीका-टिप्पणी करना, उनका छिद्रान्वेषण करना, उनके चरित्र को दागदार साबित करना इन सब कामों में हमें महारत हासिल है. पहले ये नहीं था, सर्वसमावेशी उदार हिंदुत्व के अंदर सबकी स्वीकार्यता था.

हमारे यहाँ जो छः दर्शन पनपे, उनमें सब एक-दूसरे से भिन्न पर कहीं किसी के अंदर किसी दूसरे दर्शन वाले के चरित्र-हनन का बोध नहीं था. आज हमारे अंदर ये है, आर्यसमाजियों का एकमेव लक्ष्य है विवेकानंद और आदि शंकराचार्य की आलोचना तो वहीँ दूसरे पक्ष का भी यही हाल है.

हमने छोड़ा आखिर किसको है? गांधी, राजा राममोहन राय, विपिन चन्द्र पाल, नेहरु, सुभाष, सावरकर, गांधी, पटेल यहाँ तक कि बुद्ध तक हमारे आलोचना के रडार पर रहते हैं.

गांधी ने ऐसा किया इसलिए वो स्वीकार्य नहीं, पटेल डबल गेम खेलने वाले थे, तिलक तुष्टिकरण के जनक थे, आंबेडकर अंग्रेजों के चमचे थे, राममोहन राय हिंदुत्व और भारतीय संस्कृति के विरोधी थे, बौद्धों ने भारतीय पराक्रम को क्षीण कर दिया…

सिख खालिस्तानी हैं, यादव को हमने माई (MY) समीकरण वाला कहकर खारिज कर दिया, दलितों को भीमटा कहकर उन्हें अपने से अलग किया, कबीरपंथियों को शूद्र कहकर उनको अपने से अलग बैठा दिया…

बचे जैन, तो उनको भी हम रौंदने में लगे हैं. यहाँ तक कि हमने संघ को नहीं छोड़ा. संघियों में हमने आधे को नवसंघी तो किसी को कुछ और कहना आरम्भ कर दिया. हिन्दू महासभा वालों के लिये संघ बिका हुआ संगठन है.

प पू गुरुजी माधव सदाशिव गोलवल्कर संघ के राजनीति में उतरने के खिलाफ इसीलिये थे क्योंकि राजनीति हमारी दृष्टि संकुचित करती है. भाजपा के मोह के चलते हमने हिन्दुओं के एक बड़े वर्ग को हिंदुत्व की परिधि से ही निकाल दिया.

कमलेश्वर ने अपनी किताब ‘कितने पाकिस्तान’ में यही प्रश्न किसी पाकिस्तानी के मुंह से निकलवाया था कि आपके हिन्दुओं ने कभी सोचा है कि जैन, बौद्ध, सिख, मुसलमान, ईसाई सब आपके अंदर से ही क्यों बनते हैं?

ये करोड़ों मुसलमान, ईसाई ये सब कहीं बाहर से तो नहीं आये हैं, ये सब हमारे अंदर से ही तो निकले हैं ये कड़वा सच है. आज संकुचित होते-होते हम इतने कम रह गये हैं पर सुधरने को तैयार नहीं हैं.

यहूदी, जो दुनिया भर में लांछित रहे तो जरूर ही इसके पीछे उनके कुछ पूर्वजों की अयोग्यता रही होगी पर किसी यहूदी को आपने सुना है अपने पूर्व-पुरुषों का चरित्र हनन करते हुये?

हमें सीखना होगा कि शक्ति संचय का महत्व क्या है, अपने लोगों के उज्जवल पक्ष का सदुपयोग अपने पक्ष में कैसे करना है और कैसे उनके चरित्र के विवादास्पद या अस्वीकार्य पहलुओं की ओर से आँखें मूँद लेनी है.

उदाहरण के लिये राजा राममोहन राय का नाम सामने आते ही हमारे आँखों के सामने ये दृश्य उभरने लगता है कि एक क्षेत्र विशेष में व्याप्त सती प्रथा रूपी कुरीति को हिन्दू द्वेष के चलते उन्होंने पूरे हिन्दू धर्म का भाग बता दिया. जबकि वास्तव में ऐसा बिलकुल भी नहीं है.

राजा राममोहन राय हिन्दू धर्म में शामिल हो चुकी इन कुरीतियों से आहत थे क्योंकि इन कुरीतियों को आधार बनाकर अंग्रेज भारत में ईसाइयत फैला रहे थे. हिन्दू धर्म से उनके आंशिक विरोध का उनका आधार केवल कुछ कुरीतियां थी, जबकि ईसाइयत के तो मूल सिद्धातों से ही उनका विरोध था.

हिन्दू धर्मशास्त्रों की उन्होंने कभी भी आलोचना नहीं कि जबकि बाईबिल और चर्च के मूल सिद्धांतों की उन्होंने धज्जियाँ उड़ा कर रख दी.

‘ब्राह्मणीकल’ मैगज़ीन में लिखे उनके आलेख न सिर्फ हिन्दू धर्म पर मिशनरियों द्वारा किये गए आक्षेपों का जोरदार उत्तर देती है बल्कि ईसाई सिद्धांतों (यथा, ईसा का सदेह स्वर्गारोहण, पापमुक्ति का सिद्धांत, त्रितत्व की अवधारणा) पर भी गहरी और तार्किक चोट करती है.

अपने आलेखों में उन्होंने चर्च के द्वारा छल-बल से चलाये जा रहे मतांतरण की भी सख्त निंदा की और हिन्दू समाज को उनके कुचक्रों से सचेत किया.

राजा राममोहन संभवतः उन प्रथम पीढ़ी के महापुरुषों में से थे जिन्होंने प्रेमदूतों की सच्चाई से अपने समाज को आगाह करने का काम किया था और शुद्ध और शास्त्रसम्मत हिन्दू धर्म को ईसाइयत के सामने रखते हुए चर्च को चुनौती दी थी कि अगर हिम्मत है तो अब हिन्दू धर्म को लांछित करने वाली दलीलें पेश कर दिखाओ.

हिन्दू समाज में जितने महापुरुष हुए हैं उनके चरित्र का छिद्रान्वेषण करने की बजाय उनका महत्तम उपयोग हिन्दू जागरण में कैसे किया जाये इसकी कोशिश करिये.

बाबा साहेब के ‘थॉट्स ऑन पाकिस्तान’ का उपयोग कैसे हो, गांधी के हिन्दू धर्म की श्रेष्ठता पर व्यक्त विचारों को लेकर आगे कैसे जाया जाये, राममोहन राय के ईसाईयत की जड़ उखाड़ देने वाली साम्रग्री अपने हक़ में कैसे उपयोग की जाये, लोहिया के राम-सीता पर विचारों का प्रसार कैसे हो, बस ऐसे ही कामों तक हम खुद को सीमित रखें वही बेहतर है…

वर्ना आप आंबेडकर को नंगा कीजिये वो सावरकर को गाली देंगे और दूसरे खेमे वाले आपकी इस मूढ़ता को आधार बनाकर हमारे हथियार से ही हमारी हत्या करेंगे. तय करिये कि हमको करना क्या है.

इस लेख को बहुत पसंद किया जाएगा, ऐसा कोई भ्रम मुझे नहीं,, इसे केवल वही लोग पसंद करेंगे और आगे बढ़ाएंगे जिनको वास्तव में लगता है कि अब बात सिर्फ जोड़ने और चीजों को सहेजने की होनी चाहिये, अलगाव और विखंडन अब नहीं चाहिये.

जिनका उद्देश्य अपने ही पूर्वजों और महापुरुषों का चरित्र-हनन हैं वो इस लेख से दूर रहें और मुझे अज्ञानी समझ कर इसकी उपेक्षा कर आगे निकल जायें.

हाँ, कोई मुझे किसी महापुरुष का चरित्र-हनन करने वाली बात बताकर ज्ञान न दे क्योंकि मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ना क्योंकि सबका हरेक पक्ष पढ़ने और समझने के बाद ही ये लिख रहा हूँ.

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