राजा सगर के पुत्रों को जीवन देने के लिए तीन पीढ़ियों का तप और त्याग लगा. भगीरथ तीसरी पीढ़ी के थे जिनके तप से गंगा का अवतरण हुआ और उस स्पर्श से 60000 योद्धाओं को पुनर्जीवन मिला.
कथन का उद्देश्य है कि महत लक्ष्य हेतु निरंतरता, अध्यवसाय और एकरूपता आवश्यक है. एक दृष्टि लेकर निरंतर लगे रहना, विपरीत दशा में भी हार नहीं मानना, पीढ़ियों तक अपने संचित लक्ष्य को पाने की शिक्षा पहुँचाना. यह सब सरल नहीं है, हर कोई भगीरथ नहीं हो सकता, हर कोई गंगा को पृथ्वी पर उतार नहीं सकता.
महर्षि अगस्त्य के सुखाए समुद्र से जब गंगा का प्रवाह होगा तो उथल पुथल मचेगी, असुरों के नगर भी डूबेंगे और ऋषियों के आश्रम भी क्षतिग्रस्त हो सकते हैं. इन सभी दशाओं में भी लक्ष्य का अनुशासन भंग न हो, सज्जनों में भेद हो गया तो गंगा जह्नु ऋषि के आश्रम में रुक जाएगी. अवरोध मृत्यु है, प्रवाह रुक गया तो राष्ट्रजीवन अवरुद्ध हो जाएगा.
उत्तरदायित्व का आभास होने पर गम्भीरता आती है, विपरीत विचार करने वाले के लिए भी हमारा दृष्टिकोण सकारात्मक हो यदि हम जानते हैं कि वह भी राष्ट्र कल्याण के लिए व्यग्र है. जैसा मुसलमानों में होता है कि जो कह दिया वो नियम है, उसके विरुद्ध बोला तो तुम काफिर हो, तुम्हे जीवन का हक नहीं है, ठीक ऐसा ही अब हिंदुओं में होने लगा है.
कोई सरकार के विरुद्ध लिखता है तो अन्य उस पर टूट पड़ते हैं, कोई समर्थन में लिखता है तो सभी उसे अंधभक्त घोषित करने लग जाते. सनातनी का विरोध आर्य समाज वाले करने लगते, शाकाहारी मांसाहारी एक दूसरे के टुकड़े टुकड़े करने को तैयार हैं. यह हो क्या गया है हिंदुओं?
क्या हम विचारों में भिन्नता के लिए तैयार नहीं हैं? क्या हम स्वयं मात्र को सही मानते? क्या कोई अपने घर में सभी को बाध्य कर दे कि जो मैं चाहूं वही खाओ, उसी रंग के वस्त्र पहनो?
धैर्य का इतना अभाव क्यों? यह सरकार जन समर्थन की है, नेताओं की यह पीढ़ी जन समर्थन से है, लोगों के परस्पर सहयोग से यह जागरण आया है. यह प्रारंभ है, हिन्दू समाज के उत्थान का शंख बजा नहीं कि सब अपने अपने महल बनाकर खड़े हो गए?
फेसबुक से बाहर निकलो और समाज में कुछ प्रत्यक्ष योगदान करो, दस दिन अपना समय दो राष्ट्र के लिए, ताकि देश को समझ सको. भेद में अभेद के लिए स्वयं को तैयार करो क्योंकि राष्ट्र निर्माण भगीरथ प्रयत्न है, एक दो पीढियां पूरी शक्ति से लगेगी तब देश करवट लेगा. मुसलमानों की तरह अपनों के खून पीने उतावले हिदुओं की आवश्यकता नही.
– विष्णु कुमार