ये अमित शाह है, जितना चिढ़ोगे उतना ही चिढ़ायेगा

Shah Babab

एक बार एक गांव में एक महात्मा का प्रवचन चल रहा था. महात्मा जी राम चरित मानस को आधार मानकर प्रभु श्री राम की जीवन लीलाओं को बड़े सरल शब्दों में बयान करते और श्रोता उसे मंत्रमुग्ध होकर सुनते.

उन श्रोताओं में एक महिला भी थी जो महात्मा जी के प्रवचन को बड़े गौर से सुनती और घर आकर अपने पति को भी सुनाती. घर आकर सुनाती, और साथ में यह भी कहती कि आप भी चलिये, महात्मा जी के मुंह से इन कथाओं को सुनने का एक अलग ही आनंद है.

उसके हर आग्रह को उसका पति यह कहकर टाल देता कि मुझे नहीं सुनना. चूंकि उसके पति की सिर्फ एक ही आंख थी मतलब वह काना था, लिहाजा उसके पास यह भी बहाना रहता कि महात्मा जी शाम को कथा कहते हैं और अंधेरे में मुझे ठीक से दिखाई नहीं देता.

बार-बार आग्रह करने पर वह एक दिन पत्नी के साथ कथा सुनने जाने को तैयार हो गया. अब जबकि पति पत्नी दोनों साथ में कथा सुनने के लिये निकले इसलिये थोड़ी देर हो गयी.

कथास्थल तक पंहुचते-पंहुचते महात्मा जी कथा शुरू कर चुके थे. रामजन्म का प्रसंग चल रहा था. अभी इधर दोनों पति-पत्नी कथा में बैठने ही वाले थे कि महात्मा जी ने चौपाई का गायन शुरू कर दिया…..”दशरथ पुत्र जन्म सुनी काना”.

इतना सुनते ही पति, जो कि काना था, को लगा कि महात्मा उसी को टारगेट कर रहे हैं. वह तुनककर खड़ा हुआ और पत्नी को वहीं छोड़कर लौट आया.

पूरी कथा सुनकर पत्नी जब घर लौटी और पति से बीच कथा में ही लौटने का कारण पूछा तो पति ने बताया कि महात्मा उसे काना कहकर चिढ़ा रहा था.

किसी तरह से पत्नी ने उसे समझाया कि महात्मा चिढ़ा नहीं रहे थे और अगले दिन भी साथ चलने को राजी किया.

अगले दिन भी वह दोनों कथा शुरू होने के बाद ही पंहुचे. संयोग से उस दिन महात्मा भगवान के गुणों का वर्णन कर रहे थे. ज्यों ही इधर दोनों बैठने वाले थे तभी महात्मा जी का चौपाई गान शुरू हुआ कि ….”बिनु पद चलइ सुनइ बिनु काना”

इसके बाद तो वह एक पल भी वहां नहीं रूका और भागकर सीधे घर चला आया. बाद में घर आकर पत्नी ने उसे फिर से समझाया और बहुत मान-मनौव्वल करके इस शर्त पर चलने को राजी किया कि तीसरे दिन ऐसा कुछ नहीं होगा.

बहरहाल दूध का जला छाछ भी फूंक-फूंक कर पीता है, लिहाजा तीसरे दिन दोनों कथा शुरू होने के एक घंटे बाद सुनने पंहुचे.

उस दिन महात्मा जी भानुप्रताप राजा की कहानी बता रहे थे. इधर पति चुपके से कथास्थल पर सबसे पीछे की ओर जाकर बैठने लगा और उधर महात्मा जी चौपाई गाने लगे…..”सरल बचन नृप के सुनि काना”

इतना सुनते ही वह अपना आपा खो बैठा. वहीं खड़ा होकर महात्मा को गाली देने लगा और बोलने लगा कि इन सैकड़ों लोगों में और तुम्हें कोई दूसरा नहीं दिखता कि तीन दिनों से मुझे काना-काना बोलकर चिढ़ा रहे हो.

महात्मा जी अवाक रह गये. आगे उनसे कथा कहते नहीं बना. महात्मा जी और अन्य लोगों ने बहुत समझाने की कोशिश की और बताया कि यह सब तो रामचरित मानस में लिखा है. फिर भी वह मानने को तैयार नहीं हुआ और गाली बकना जारी रखा.

अंत में महात्मा जी “सियावर राम चन्द्र की जय” बोलकर व्यासपीठ से उतर गये और अगले दिन गांव से भी प्रस्थान कर गये.

आज इसी तरह से कुछ कांग्रेसी श्रोताओं ने अमित शाह के मुंह से “चतुर बनिया” सुन लिया. फिर इससे कोई मतलब नहीं कि यह शब्द किस संदर्भ में और क्यों बोला गया, सारे कांग्रेसी बस “चतुर बनिया” शब्द को लेकर फटे पड़े हैं.

वैसे वह महात्मा जी थे जो काने की गाली सुनकर व्यासपीठ से उतर कर चले गये, यह अमित शाह है……. न व्यास पीठ छोड़ेगा न ही कहीं जायेगा.

तुम जितना चिढ़ोगे उतना ही तुम्हें चिढ़ायेगा. अच्छा यही रहेगा कि शब्दों को लेकर मत चलो. कथा को पूरे संदर्भ के साथ सुनने की कोशिश करो. नहीं तो रामचरित मानस में शब्दों की कमी नहीं है.

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