एक विशेषण, जिसे सेक्यूलर नरपिशाच गाली के तौर पर इस्तेमाल करते हैं, वो है ‘भक्त’. साल 2002 के गोधरा का रेल नरसंहार और उसकी बाद हुई ‘सबक सिखाऊ’ प्रतिक्रिया के बाद से अपन भी भक्त बन गए थे पर हैरत कि बात है कि आज तक अपन को किसी ने ऐसा कह कर इज्ज़त नहीं बख्शी. शायद अपनी भक्ति में कोई कमी होगी.
भक्ति की इस शैशवावस्था में एक नाम सुना- Amit Shah. फिर मीडिया की मेहरबानी से बार-बार सुना. जैसे-जैसे इन पर मामले बनाए जाते गए, बढ़ाए जाते गए, मीडिया ट्रायल होता गया, इनमें दिलचस्पी बढ़ती गई. Narendra Modi जी बारम्बार गुजरात जीतते गए और अमित शाह, जिन्हें मैं अपने निजी वार्तालाप में ‘शाह बाबा’ कहने लगा था, का कद बढ़ता गया.
लोग मोदी जी को मीडिया का सताया हुआ कहते हैं, सही कहते हैं, पर उनसे किसी कदर भी कम नहीं सताए हुए हैं शाह बाबा बल्कि ये कहूं कि कुछ ज़्यादा ही सताए गए हैं. मैं सोचता था कि शाह बाबा कभी मीडिया से बदला लेने की हैसियत में आए तो क्या-क्या करेंगे.
शाह बाबा की वो हैसियत बनी, पार्टी के अन्दर और बाहर से लाख विरोध के बाद बनी, लेकिन जो-जो मैं सोचता था, वैसा उन्होंने कुछ नहीं किया. पर शाह बाबा को शाह बाबा ऐसे ही तो नहीं कहता.
बिना चांटा मारे किसी को चांटा मार देना, वो भी दिल्ली के समूचे तथाकथित elites के सामने, बिना जूते को हाथ लगाए सामने वाले के चेहरे पर अपने जूते के नंबर की छाप उतार देना किस कला का नाम है, ये आज कोई पुण्यप्रसून बाजपेयी से पूछे.
इसका मालिक अरुण पुरी भी सिटपिटाया सा, उतरा हुआ मुंह लेकर देख रहा था अपने जमूरे की पिटाई.
मोदी सरकार के एक साल का लेखाजोखा करने टीवी चैनल आजतक के इस मंथन कार्यक्रम में जब उपस्थित लोगों के सवाल पूछने की बारी आई तो शाह बाबा ने तीर छोड़ा, ‘पहले राजदीप को मौका दो’. सभागार के एक कोने में छिपे से बैठे राजदीप सरदेसाई के चेहरे के भाव इतने दयनीय तब भी नहीं थे जब वो मैडिसन स्क्वायर पर पिटा था.
#presstitutes के साथ आपके व्यवहार के बाद मैं आपका भी भक्त बना शाह बाबा.
और ये भक्ति दिनों-दिन बढ़ती ही जाती है. दिल्ली-बिहार की हार तो शेष भारतवासियों के लिए एक मिसाल बन गई और उन्हें कम से कम ये तो समझ आ गया कि उन्हें क्या नहीं करना चाहिए.
और बाबा का ये ‘चतुर बनिया’ दाँव तो इतना ज़बरदस्त है कि समूचे प्रेस्टीट्यूट्स और विपक्षी दल भांप ही नहीं सके कि कब विमर्श की दिशा बदल गई.
खुद को फ्रंट पर रख, विपक्षियों की गालियाँ झेलते हुए अपने नेता और पार्टी को सुरक्षित करने का जिगरा सिर्फ शाह बाबा का ही हो सकता है.