यह पत्रकारिता की चिंता करने वाले लोग नहीं थे, यह वाक्-स्वातंत्र्य के लिए लड़ने वाले लोगों का जुटान नहीं था. यह कुछ व्यक्ति-विशेष के बचाव में जुटे लोगों का गिरोह (समूह या सम्मेलन नहीं) था, जिस व्यक्ति-विशेष के आने वाले कल पर कई सारे लोगों का कल टिका है, भविष्य टिका है.
…और, इसीलिए… केवल इसी वजह से आपको यहां नही होना चाहिए था, श्रीमान शौरी. नरेंद्र मोदी से टक्कर लेने की ज़िद में आप यह भी भूल गए कि आप किन लोगों के साथ जाकर खडे हो गए हैं.
कल को जब निर्मम इतिहास अपना बांट-बखरा करेगा, तो आप किनके पाले में नज़र आएंगे. आपको यह भी ध्यान नहीं रहा कि उसी मंच से राजदीप सरदेसाई भी बोल रहे हैं, जिनकी व्यक्तिगत शुचिता और पत्रकारीय मूल्य दोनों ही…
….आइए, हम और आप टाइमिंग के झंझट में नहीं पड़ते हैं. क्या आप अपने सीने पर हाथ रखकर कहेंगे कि प्रणय रॉय और उनका गिरोह पाक-साफ है, एनडीटीवी में किसी तरह की जालसाजी (आर्थिक, सामाजिक या देशीय) नहीं हुई है?
आप नहीं कह पाएंगे, मिस्टर शौरी, क्योंकि आप तथ्यों पर बात करने वाले पत्रकार हैं, आप ब्लॉगजीवी समय के गूगलबाज़ नहीं हैं और तथ्य़… तथ्य तो पूरी तरह से उन सभी को कोलतार में घोलने लायक कालिमा रखते हैं, जिनके साथ आप कंधे से कंधा मिलाकर खड़े थे.
विडंबना भी तब विडंबित होती है, जब राजदीप या बरखा ‘राडिया’ दत्त पत्रकारीय शुचिता और मूल्य पर भाषण देते हैं. आश्चर्य भी आश्चर्य से तब मर जाता है, जब ओम थानवी जैसे लोग ‘निष्पक्षता’ की दुहाई देते हैं और शर्म को भी तब शर्म आ जाती है, जब प्रणय रॉय जैसे लोग कहते हैं कि वे पाक-साफ हैं.
…..यह जहाज के डूबने का वक्त है और सारे चूहे एक साथ इकट्ठे हैं. इसमें शामिल होकर आपने अपनी जीवन भर की पूंजी उन चूहों को सौंप दी है.
…मैं काफी लंबे अरसे से कहता आ रहा हूं कि पत्रकारिता की मौत हो चुकी है, भारत में. भ्रूण हत्या हुई है टीवी जर्नलिज्म की. अब जो ठसके से ईमानदार हैं, वे एक क्लर्क से अधिक कुछ नहीं औऱ बाक़ी सभी दलाल हैं. आप इसको सार्वजनिक तौर पर नकार सकते हैं, तथ्यगत रोशनी में नहीं.
…ज़रा आज की प्रेस कांफ्रेंस या गिरोह का मिलन याद तो कीजिए. आप जब बोल रहे थे, तो मुझे लगा कि आखिर आपने भी दक्षिणपंथियों की वही ग़लती की, जो हम बचपन से देखते आ रहे हैं. आपने ‘सेल्फ-गोल’ कर दिया, आपने ढाई लोगों की सरकार बतायी, जिसे लपककर अब ये कौमी-कांग्रेसी फिर से सरकार पर असहिष्णुता का आरोप लगाएंगे.
…आपने ध्यान नहीं दिया, पर हमने देखा. मनोरंजन भारती किसी यादव-लठैत की तरह बालों से भरी छाती दिखाते हुए किस तरह प्रणय रॉय के आगे-पीछे कर रहे थे, उनका माइक ठीक कर रहे थे. कसम से मुझे किसी घटिया हिंदी फिल्म के गुंडे का अड्डा याद आ रहा था.
….आपने देखा कि मुंह में चांदी का चम्मच लेकर चावल खाने वाले प्रणय रॉय की शर्ट बगल में पसीने से भीग गयी थी. कसम से अगर मोदी का डर नहीं होता, तो शायद ही तमाम ज़िंदगी एसी में गुज़ार देने वाले प्रणय प्रेस-क्लब की सड़ी हुई गर्मी में सबको धन्यवाद देते.
….क्या आपने ध्यान दिया कि जब वो अपनी खास ऑक्सब्रिज एक्सेंट वाली अंग्रेजी में दावा कर रहे थे कि सरकार उनके पीछे पड़ी है, तो जिस लम्हे वह किसी को भी एक पैसे, मने एक पैसे भी घूस नहीं देने का दावा कर रहे थे, तो उनको पसीना पोंछना पड़ा था. (वैसे, प्रणय दा शायद रूमाल नहीं रखते, वह कुछ पेपर टाइप की चीज थी न). अपनी आवाज़ की लरज़िश पर शायद काबू न रहा था, उनका.
….मिस्टर शौरी. क्या आपने ध्यान दिया कि जब ओम थानवी बोल रहे थे तो करीब 250 शब्द प्रति मिनट की रफ्तार से बोल रहे थे, मानो बस खत्म हो और कुफ्र टूटे/ छूटे.
आप इस गिरोह के नहीं थे, नहीं हैं श्रीमन्. आपने जब आज ऐसी ग़लती की है, तो संजीव सिन्हा जैसे लोग तो आपके सामने बच्चे ही होंगे न. भारत में शायद दक्खिनी टोले को मैच्योर होने में और भी अधिक समय की दरकार है.