ऊकाल » कु कू कु३
ऊकालोज्झ्रस्वदीर्घप्लुत:.
मुर्गे की बाँग को “ऊकाल” कहते हैं.
ऊकाल की सहायता से स्वर के तीन रूपों “ह्रस्व, दीर्घ व प्लुत” का बोध होता है क्योंकि ऊकाल में “क्” व्यञ्जन के साथ “उ” स्वर के तीनों रूपों का प्रकटन प्रतीत होता है.
स्वरों के ह्रस्व (लघु) व दीर्घ (गुरु) रूप तो प्रसिद्ध ही हैं. स्वर के दीर्घ रूप के उच्चारण में ह्रस्व की तुलना में अधिक समय लगता है तथा मुखविवार (मुखखुलाव) भी अधिक होता है.
इसी प्रकार स्वर का प्लुत रूप भी होता है जिसके उच्चारण में दीर्घ रूप की तुलना में भी अधिक समय व अधिक मुखविवार होता है.
किसी स्वर के प्लुत रूप के प्रकटनार्थ उसके ह्रस्व रूप के पीछे “३” लिख दिया जाता है. यथा अ३, इ३, उ३ आदि. ओ३म् में “ओ” स्वर का प्लुत रूप प्रयुक्त है.
प्लुत का प्रयोग प्राय: दूरस्थ व्यक्ति के सम्बोधन में होता है. यथा रमेश३. यहाँ “श्” में “अ” का प्लुत रूप लगा है.
प्लुत का आत्यन्तिक रूप “लाप” कहलाता है जिसमें दीर्घकालिक सतत उच्चारण होता है. यथा “आलाप” में “अ” स्वर के प्लुत रूप का अतिशय है.
लाप किसी स्वर की कसौटी होती है. यदि आप किसी स्वर का लाप करें तो जान सकते हैं कि आपका उच्चारण शुद्ध है अथवा नहीं.
यथा “ऋ” का उच्चारण उत्तर भारतीय जन “रि” करते हैं तथा दक्षिण भारतीय जन “रु” करते हैं. दोनों का लाप करने पर क्रमश: “इ३” व “उ३” प्राप्त होते हैं न कि “ऋ३”.
अर्थात् “रि” व “रु” दोनों ही उच्चारण अशुद्ध हैं!
ह्रस्व (लघु) दीर्घ (गुरु) प्लुत
अ आ अ३
इ ई इ३
उ ऊ उ३
ऋ ऋृ ऋ३
लृ — लृ३
ए ए३
ऐ ऐ३
ओ ओ३
औ औ३
– प्रचंड प्रद्योत