‘बड़ा जानवर’
मेरे कान घोड़े की तरह कनफटे नहीं थे
न ही किसी गाय की तरह त्रिशूल छपा था मेरी पीठ पर
कुत्ते का पट्टा भी नही था मेरे गले में
मैं गुर्रा कर खाना भी नहीं मांगता था
न मैं हाथी की तरह भारी, न पतंगे की तरह हल्का था
जानवरों के सभी पहचानों-चिन्हों से परे
मेरे चेहरे पर एक निर्दोष मुस्कुराहट थी
जिसके पीछे एक धूर्त छिपा था
जो सभी जानवरो में बड़ा जानवर था!
जिसकी दुम, इतिहास ने काट दी थी
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‘मूर्ख से मिलो’
दोस्तो!
कोई मूर्ख मिले, तो उसका चेहरा चूम लो
एक वही है जिसने इतिहास से कुछ नहीं सीखा.
वही है जो भविष्य तक खाली हाथ जाना चाहता है
वह निपट नौसिखिया जहाँ मिले, उसके पीछे हो लो
एक वही है जिसकी जेब में
एक अनछुआ, कुँआरा जीवन है
और, उनसे दूर रहो दोस्तो!
जिनके मुँह से नसीहतें झरती रहती हैं
इतिहास-स्मृति के बोझ से दबी पीठ लेकर,
जो वर्तमान की घास चर रहे हैं
ये बुद्धि-जानवर तुम्हे जीवन का नहीं
उस भविष्य का रास्ता बताएंगे, जिसे किसी ने नही देखा
यह चालाक लोग नहीं जानते
जीवन की ओर ऐसे जाना चाहिए
जैसे एक मूर्ख जाता है भरे बाजार के बीच!
जो हर चीज को यूँ देखता है
जैसे पहली बार देख रहा हो