कायस्थ कुल में जन्म लिया तो बचपन से ही सामिष भोजन का सेवन करता रहा. कभी ख्याल ही ना किया कि इस भोजन में शामिल मांस अस्थि चर्बी किसी निरीह जानवर को यातनायुक्त मृत्यु देकर हासिल हुआ है. थोड़ा समझदार हुआ तो भी सब कुछ जानते हुये भी जिव्हा के स्वाद पर भावनायें भारी ना पड़ सकीं.
निरामिष मित्रों को तमाम तर्क दे चुप कराता रहा कि अगर हम बकरा मुर्गा ना खायें तो इनकी इतनी आबादी हो जायेगी कि सड़क पर चलना मुश्किल होगा.हमें पाप क्यों लगेगा पाप तो कसाई को लगेगा जो काटता है.
राम जी भी तो शिकार करते थे उस शिकार को ड्राइंग रूम में सजाते थे क्या अरे भाई वह भी खाते ही थे.ऐसे तमाम वेवकूफाने तर्कों से हम अपने मांसाहार को उचित ठहराने की कोशिश करते थे.जिव्हा ही एक ऐसी इंद्रिय है जिस पर या तो इंद्र विजयी हुये या हमारे मनीषी.हमारी तो सारी आदर्शवादिता कुकर की तीसरी सीटी में ही तिरोहित हो जाती थी.
हां एक बात तो बताना जरूरी है मुझे मीट लाने की अक्ल कभी ना रही जब भी लाया उल्टे सीधे अंगो का ही लाया क्योंकि कितना भी दिल कड़ा कर लूं कसाई की दुकान पर छिला कटा उल्टा लटका बकरा देख नजर फेर लेता था और फिर दुकानदार जाने कहां कहां का बाहियाद गोश्त पैक कर देता था. घर आ लानते लमानते मिलती थीं ले आये फिर सड़ा गला बेकार अब घंटो ना गलेगा.अरे इसमें एक भी गुर्दे सीने कलेजी का पीस नहीं फिर वेवकूफ बना दिया दुकानदार ने सारे पैसे ठग लिये.
एक मांसाहारी भाई जो संयोग से उसी दिन घर पर आये थे और इतने बेकार मीट के पीस खा कर समझाते हुये मुझसे बोले भाई तू अल सुबह लाया कर एक दम ताजा कटा मिलेगा देर से जाओगे तो ऐसा ही छटा छटाया बेकार मिलेगा.
अगली बार जब लेने जाना हुआ रात को ही टेबल क्लाक में सुबह पांच बजे का अलार्म लगा कर सोया.सुबह उसके बजते ही उठा कपड़े बदले थैला उठाया और चल दिया.दुकान के ताले ही खुल रहे थे.मुझे देखते ही कसाई ने अभिवादन किया और शटर उठा दिया तब तक एक बुजुर्ग और आ गये.
कसाई का बेटा तीन बकरे रस्सी से बांधे बाहर खड़ा था तीनो जोर जोर से मिमिया रहे थे. हम और वह बुजुर्ग अंदर बैंच पर बैठ गये. कसाई और उसके बेटे ने तीनो बकरों को पकड़ कर दुकान के अंदर चढ़ा दिया. अब उनके साथ क्या होने वाला है शायद तीनो भांप गये थे और जोर शोर से रस्सी से छूट बाहर निकल भागने की असफल चेष्टा कर रहे थे. अब कसाई ने मेरी ओर प्रश्न उछाला कौन सी रास काटूं बाबू जी?
आज मैं योद्धा की तरह विजयी होने आया था सो झट से एक भूरे बकरे पर हाथ रख बोला ये वाला.
अचानक टोकते हुये बुजुर्ग बोले जनाब आप गलत हैं यह तो बूढ़ा बकरा है इसका मांस तो रबर जैसा खिंचेगा और दांतो में भी फंसेगा साथ ही गलेगा भी देर से. वह उठ कर दूसरे छोटे बाले बकरे के पास गये उसके कान टटोले, पेट में उंगली घुसाई, पुठ्ठे थपथपाये और बोले ये बच्चा है इसको काटो फिर मेरी ओर मुखातिब हो कर बोले हमेशा बच्चे का ही लिया करें इसका मांस मुलायम और स्वादिष्ट होता है हड्डियां भी मुलायम होती हैं बड़े बकरे की तो कितना भी गला लो हड्डियां पत्थर जैसी रहती हैं.
मैंने भी उस छोटे बकरे पर हाथ रख कर कह दिया हां इसी को काटो .एक क्षण को इतना बोलते मेरी नजर उस कम उम्र बकरे की आखों पर पड़ी मुझे अहसास हुआ मानो वह आखों ही आखों से कह रहा हो अंकल प्लीज अभी तो मैंने भर पेट घास तक ना खा पाई है, अच्छी तरह कुलांचे ले दौड़ना ना सीख पाया हूं और ना ही पहली बारिश की अठखेलियां करी हैं.
मैंने थैला वहीं पटका और तेजी से दुकान से बाहर आ गया.क्या हुआ बाबू जी ले ना जायेंगे,अभी दस मिनट में तय्यार करता हूं जैसी आवाजें भी ना मुझे रोक पाईं.
थोड़ा आगे जाकर ख्याल आया वह छोटा बकरा तो बुजुर्ग कटवा ही देगा.मैं फिर वापस लौटा.उसके कटने की तय्यारी हो चुकी थी.मैं जाते ही बोला मुझे पांच किलो चाहिये पर इसका नहीं भूरे बाले का.चूंकि मुझे ज्यादा लेना था उन बुजुर्ग को एक किलो ही तो कसाई ने मेरी मांग को बरीयता दी और उस छोटे बकरे को हटा दिया.बुजुर्ग भुनभुनाते गुस्साते रहे मुझ पर पर मैं उस छोटू से बात करने में मगन था. मैं छोटू की आखों में झांक कर बोला देख मेरे बस में इतना ही है तुझे एक दिन का जीवन और मिल गया आज जा कर भर पेट घास खा ले कुलांचे भर ले अगर बारिश हो तो जम कर भीग ले.
वह पांच किलो मीट से बाहर बैठे कुत्तों की दावत कर दी. घर खाली हाथ लौटा. और मांसाहार को तौबा कर ली.
आपमें बहुत से लोग मांसाहार कर छोड़ चुके होंगे. उन लोगों से गुजारिश है कि अपनी फेसबुक वाल पर छोड़ने का कारण लिख कर पोस्ट करें. हो सकता है कोई मांसाहारी उन तथ्यों से सहमत हो मांसाहार छोड़ दे. एक निरीह पशु को जीवन दान मिल जाये. और समाज को एक सात्विक शाकाहारी.
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