मोदी जी ने एक सपना देखा था… कुछ लोगों के एक हाथ में कुरान और दूसरे हाथ में लैपटॉप का.
कश्मीर में उनके सपने को साकार करते हुए 67 युवाओं ने कुरान के साथ विज्ञान और कम्प्यूटर की शिक्षा ली.
बजाओ ताली….
उसके बाद उन सबने बुरहान बानी को अपना आदर्श मान लिया… उसकी मौत के बाद उसके नक्श-ए-कदम पर चलते हुए आतंकवादी बन गए.
15-16 साल के किशोर से ले कर पीएचडी किए हुए भी… पिछले एक साल में 67 युवा आतँकी बने हैं जिसमें बीई, बी टेक, एम फिल और पीएचडी किए हुए हैं.
अब ठोको माथा….
67 में से 50 दक्षिणी कश्मीर के ही हैं, जहाँ का बुरहान बानी था… आतंकियों की इस नई खेप में 63 की उम्र 30 साल से कम है. इनमें तीन तो ऐसे भी हैं जो जेल से छूट कर आए हैं.
जिन समाजशास्त्रियों को लगता है कि अशिक्षा के कारण लोग आतँकी बनते हैं, उनसे पूछा जाना चाहिए कि इस आँकड़े के बारे में क्या ख्याल है?
अनपढ़ दहशतगर्द की थ्योरी को तो यह झुठला रहा है… बी ई या बी टेक करने के बाद नौकरी नहीं करके आतँकी बनना पसँद क्यों किया होगा उन लोगों ने?
इसका सही उत्तर वही है जो हम और आप देंगे, पर समाजशास्त्री और मोदी जी इसको मानेंगे नहीं…
आसमानी किताब के साथ कोई भी नवीनतम टेक्नोलॉजी पकड़ा दें… वज़न आसमानी किताब का ही ज्यादा होगा.
रोजगार नहीं मिलने का तर्क देना कुतर्क ही होगा क्योंकि कश्मीरियों को देश के बाकी हिस्से में नौकरी नहीं मिलेगी… ऐसा प्रावधान न तो संविधान में है, न धारा 370 में और ना ही किसी कम्पनी की रूल बुक में…
इसलिए ये नौजवान चाहते तो कहीं भी नौकरी कर सकते थे पर इन्होंने स्वयं ही आतँकी बनने के रास्ते को चुना…
कारण निश्चित ही धार्मिक होगा… विषैले पौधे में कितनी भी अच्छी गुणवत्ता वाली खाद-मिट्टी डाली जाए… फल विषैला ही निकलेगा.
कुरान वाले हाथ के साथ पकड़ा हुआ लैपटॉप ISIS के लिए ट्विटर हैंडल ही चलाएगा… बंगलूरू वाला इंजीनियर याद है न?
मोदी जी अपना सपना बदल लें वही उचित होगा… दोनों हाथ से लैपटॉप पकड़ना सिखा दें… क्योंकि समस्या का असली कारण तो एक हाथ वाली किताब है, न कि अशिक्षा या बेरोजगारी.