दूध में जामन डाला हुआ है, हिला-डुला तो दही नहीं जमेगा

बूढ़े दादा से उनकी पोती कहती है- मैं पढ़-लिख कर डीएम बनूँगी… दादा मुस्कुराते हैं और आशीर्वाद देते हैं.

कुछ वर्ष बाद… वृद्ध दादा उन दिनों पिता की भूमिका में अपनी बेटी के कन्यादान की तैयारियों में व्यस्त रहते हैं.

[दिल्ली-एनसीआर में अपराध हो, तो ही मिलेगा न्याय और मीडिया कवरेज]

उनके दो घर हैं… एक घर में शादी की रस्में चल रही हैं और दूसरे घर में मेहमानों को रखा गया है… दिन भर लोगों का, विशेष कर बच्चों का एक घर से दूसरे घर में आना-जाना लगा रहता है.

दादा की पोती भी हँसती-खेलती घूमती रहती है… बुआ की शादी में मेहंदी लगवाती है… और अचानक गायब हो जाती है.

सब समझते हैं कि दूसरे घर में होगी पर जब बहुत देर तक किसी को भी नज़र नहीं आती है तब पूछताछ शुरू करते हैं.

कुछ लोग बताते हैं कि रास्ते में बच्ची को देखा था… कुछ और पूछताछ होती तो पता चलता है कि बच्ची के पीछे दो ऐसे लड़कों को जाते देखा था जिनसे बच्ची के परिवार की कुछ वर्ष पूर्व लड़ाई हुई थी.

अभी जिस लड़की (बच्ची की बुआ) की शादी होने वाली थी उसको छेड़ने के कारण दोनों परिवारों में कहासुनी हुई थी.

चूंकि वो पड़ोसी थे और उनके घर का रास्ता भी वही था इसलिए जिन लोगों ने नैन्सी झा के पीछे उन लड़कों को जाते देखा था… उन्होंने ज्यादा ध्यान नहीं दिया.

इस क्लू के मिलने पर परिवार वालों ने पुलिस को सूचना दी… पुलिस ने उन दो लड़कों में से एक को गिरफ्तार भी कर लिया.

बिहार में शराबबंदी है उसके बाद भी आरोपी शराब के नशे में धुत्त मिला. पुलिस ने उसको पकड़ तो लिया पर शायद उसका नशा उतरने का इंतज़ार करती रही.

जब कुछ घंटों में नशा नहीं उतरा तो शायद थानेदार साहब को या थाने के सारे स्टाफ को कहीं जाना होगा इसलिए आरोपी को छोड़ दिया.

दो दिन के बाद हँसती-खेलती नैन्सी जली हुई, अकड़ी हुई बेजान शव के रूप में नदी किनारे मिली.

पुलिस और प्रशासन के लिए यह सामान्य घटना थी… औपचारिकता निभा कर पुलिस अपने दिनचर्या में व्यस्त हो गयी.

न जाने कैसे यह समाचार सोशल मीडिया पर आ गया… लोग आक्रोशित हो कर नैन्सी झा के लिए न्याय माँगने लगे.

मधुबनी के डीएम तक भी खबर पहुँची… दोषियों पर क्रोधित होने के स्थान पर उनका क्रोध का निशाना सोशल मीडिया था… क्योंकि सोशल मीडिया इस बात को नहीं उठाता तो किसको पता चलना था.

डीएम साहब की छवि भी ऊपर तक अच्छी ही रहनी थी… अब कुछ तो जवाब देना ही पड़ेगा.

नैन्सी तुम्हारा डीएम बनने का सपना अधूरा ही रह गया… पर आशा है कि तुम यदि डीएम बनती तो मधुबनी के वर्तमान डीएम जैसी संवेदनहीन नहीं होती.

जातिवादियों को भी विचार करने के लिए एक तथ्य इस घटना ने दिया है… दोनों आरोपी स्वजातीय हैं.

अपनी जाति का कोई हजारों किलोमीटर दूर रहता हो पर कोई उपलब्धि पाता है तो उस जाति विशेष के लोगों के मन गर्व से भर जाते हैं.

बहुत से ग्रुप बने हुए हैं जो दिन-रात जाति के गुणगान वाले पोस्ट करते नहीं थकते हैं… जाति जागरण के हवन में थाली भर-भर कर आहुति डालने वाले आज किसको कोसेंगे?

नैन्सी के हत्यारे भी उसकी ही जाति के है… अपहरण करने का कारण नैन्सी की बुआ की शादी नहीं होने देना था पर हत्या का कारण अभी नहीं पता है.

जिसकी शादी रोकना चाहते थे वो भी उसी जाति की है और जिसकी हत्या की वो भी… उस समय जाति कहाँ चली गयी कोई जातिवादी विचारक बताएगा ??

सिर्फ वोट देते समय और उपलब्ध का गर्व करके दूसरों को नीचा दिखाने के काम ही आती है जाति…

नीतीश सरकार का या सत्ताधारी दल का कोई भी नेता स्वजातीय होने के कारण नैन्सी झा को न्याय दिलाने की अगुवाई करता क्यों नहीं दिख रहा है?

नेता ना सही, लोकतंत्र का तथाकथित चौथा स्तंभ ही आगे आ जाता तब भी सरकार त्वरित करवाई करने के लिए मजबूर हो जाती…

पर वहाँ भी दूध में जामन डाला हुआ है… हिलने-डुलने पर दही के नहीं जमने का डर है न… मुँह कैसे खोलें…

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