‘जल्द ही मानव सभ्यता समाप्त हो जाएगी’… एक प्रमुख समाचार पत्र में एक लेख छपा था जिसमें वैज्ञानिक ये चेतावनी दे रहे थे.
आधुनिक भौतिक शास्त्री स्टीफन हॉकिंग भी आजकल अमूमन यह कहते सुने जा सकते हैं कि इस सदी के अंत तक हमें किसी दूसरे ग्रह पर अपना घर बसा लेना होगा क्योंकि धरती तब तक रहने लायक नहीं रह जाएगी.
ऐसा अनुमान है कि इसके पहले भी दो-तीन बार पृथ्वी से मानव विलुप्त हो चुका है. यह कितना सच है और इसके क्या कारण रहे होंगे यह कह पाना संभव नहीं मगर इस बार यह दावे से कहा जा सकता है कि अबकी बार इस विनाश के लिए ये वैज्ञानिक और इनका विज्ञान ही दोषी है.
इस कटु सच को ये वैज्ञानिक नहीं मानेंगे लेकिन क्या इस तथ्य को झुठला सकते हैं कि इनके विज्ञान ने ही मानव को उपभोगी बनाया.
वरना जो ये वैज्ञानिक प्रकृति के कई रहस्यों को जानकार उसका दुरूपयोग करना बतलाते हैं, यही ज्ञान हमारे पूर्वज सदियों पहले जानते थे.
लेकिन साथ ही वे यह भी जानते थे कि मनुष्य कितना लोभी है, उसकी इन्द्रियों पर उसका वश नहीं. इसलिए जीवन संस्कार कुछ यूं बना दिए गए थे कि प्रकृति का दोहन ना हो.
यही सनातन संस्कृति का मूल रहा है. जिसे कोई और धर्म या सभ्यता समझने को तैयार ही नहीं. परिणामस्वरूप स्थिति अत्यंत विकट बन चुकी है.
ऐसे में आप पेरिस में बैठ लो या अमेरिका में सेमिनार कर लो, इस समस्या का कोई समाधान नहीं निकलने वाला.
ट्रम्प से तो वैसे भी कोई उम्मीद नहीं करनी चाहिए, वे राजनेता से पहले व्यापारी हैं और व्यापार प्रकृति के विनाश का प्रमुख कारण बना हुआ है.
मगर अन्य प्रजातान्त्रिक देशों के प्रमुखों से भी अधिक उम्मीद नहीं की जा सकती, क्योंकि उन्हें भी वोट चाहिए और जनता वोट किसे देती है, हम सब को मालूम है.
दूसरी तरफ तानाशाही या वामपंथी देशों से भी कोई उम्मीद नहीं करनी चाहिए क्योंकि वे अपनी शक्ति बढ़ाने के चक्कर में हथियारों की होड़ में आगे रहते हैं.
बहरहाल कुल मिला कर, हमारे आधुनिक विकास का मतलब ही प्रकृति का विनाश है. ऐसे में जिस रफ़्तार से हम दौड़ रहे हैं इस पृथ्वी का उजड़ना तय है. संदेह है कि इस सदी का अंत भी शायद मानव ना देख पाए.
मुझे तो दुःख इस बात का है कि, हम मानव, पृथ्वी के अन्य जीव जंतु के सर्वनाश का भी कारण बनेगे. कितने मूर्ख और अज्ञानी हैं हम और अपनी ही धरती माता के हत्यारे भी.