पिछले हफ्ते सिनेमा देखने का प्लान बना. सोचा हिंदी मीडियम देख ली जाए. Paytm खोला. शाम 7 बजे के बाद का शो था. तय नहीं कर पाए कि देखा जाए या टाल दें.
दोपहर के दो बजे थे. अब 5 घंटा बाद का क्या भरोसा? सो तय किया कि अगर शाम तक मूड रहा तो वहीं टिकट-खिड़की से ही ले लेंगे टिकट.
अभी सिनेमा हॉल के बाहर, बॉक्स ऑफिस पर टिकट खरीदने का विकल्प उपलब्ध है. पर कल शायद न रहे.
विंडो पर बुकिंग क्लर्क बैठाना नियोक्ता को महंगा पड़ता है. ऑनलाइन टिकट बेचना नियोक्ता को सस्ता पड़ता है.
कुछ साल पहले तक रेलवे के रिजर्वेशन काउंटर पर य्य्ये लंबी-लंबी लाइनें हुआ करती थीं. अब खाली पड़े रहते हैं काउंटर.
पहले जहां 10 काउंटर चलते थे, अब बमुश्किल 2 या 3… आंकड़े बताते हैं कि 60% से ज़्यादा रेल रिजर्वेशन आजकल ऑनलाइन होता है.
जनरल का टिकट रेलवे अभी भी काउंटर से ही बेचती है. पर जल्दी ही, मने 2017 में ही जनरल टिकट भी ऑनलाइन ही बिकने लगेंगे.
यानि कि रेलवे में लाखों बुकिंग क्लर्क्स की नौकरी ये स्मार्ट फोन खा जाएगा. कल को रोडवेज भी, और ऐसी ही हज़ारों सेवाएं…
वो जिन्हें आज कोई आदमी किसी विंडो या केबिन में बैठा कर रहा है, बहुत जल्दी… जल्दी मने सिर्फ कुछ महीनों या साल-दो साल के भीतर मशीन करने लगेगी.
अपने इर्द गिर्द नज़र दौड़ाइये. आपको हज़ारों ऐसे लोग काम करते मिलेंगे जिनकी नौकरी अगले साल-दो साल में खत्म होने वाली है.
कहीं आप भी उन्हीं में से एक तो नहीं?
आपकी नौकरी कोई नहीं बचा सकता.
और आपके लिए कोई नौकरी नहीं बना सकता.
मोदी भी नहीं.
नौकरी की आस छोड़िये… अभी भी मौका है… कोई skill (हुनर) सीख लीजिये…