मेनचेस्टर मे गायिका “एरियाना ग्रांडे” के म्युजिक कार्यक्रम में हुए आंतकी हमले की जांच कर रही ब्रिटिश पुलिस ने पता लगाया है कि इस हमले का आत्मघाती हमलावर ‘सलमान आबेदिन’ का जन्म मेनचेस्टर में ही हुआ था… पर उसके माता पिता लीबिया से 1993 में शरणार्थी बनकर ब्रिटेन आए थे.
ब्रिटेन ने उन्हे मानवीय आधार पर अपने देश मे शरण दी… रहने के लिये घर, कमाने के लिये रोजगार, ब्रिटेन की नागरिकता सब कुछ दिया गया… सेक्युलेरिज्म के चलते उनको उनके ही मत और परम्पराओं के अनुसार शिक्षा लेने की भी पूरी आजादी दी गयी.
इसी सेक्युलेरिज्म की आड़ लेकर ब्रिटेन में कट्टरपंथियों ने अपनी जड़ें गहरे तक जमा ली है. अनेक कट्टरपंथी संगठन और संस्थान आज ब्रिटेन में जगह जगह पैर पसारकर बैठ गये हैं. जहां पर कि ब्रेनवाश करने का काम जमकर किया जा रहा है…
सलमान आबेदिन भी इन्हीं संस्थानों के प्रभाव में आ गया था… और किशोरवय से ही लम्बी दाढ़ी, परम्परागत कपड़े और दूसरे रूढ़िवादी चिह्न धारण करने लगा था… उसने अपने घर पर भी धार्मिक झंडा लहरा दिया था.
परिणाम वही हुआ जो होना था… गायिका एरियाना ग्रांडे के म्युजिक कार्यक्रम में 22 लोग मारे गये 64 घायल हो गये… जिस ब्रिटेन ने मानवीय आधार पर उसके परिवार को अपने यहां शरण दी थी… उस ब्रिटेन ने कभी सपने में भी यह नहीं सोचा होगा कि उसकी मानवीयता का यह परिणाम आयेगा…
सलमान आबेदिन के साथ कोई भेदभाव नहीं किया गया था… न उसके परिवार पर किसी तरह के अत्याचार किये गये. उसे अपना मत और धार्मिक आस्था मानने की भी पूरी आजादी दी गयी थी. बावजूद इसके आबेदिन ने शरण देने वाले देश मे ही आतंकवादी हमला कर 22 निर्दोषो की जान ले ली.
पूरा यूरोप आज शरणार्थियों की समस्या से जूझ रहा है… उदारवादी और घाघ लिबरल/ सेकुलर उनको मानवीय आधार पर अपने देश में बसा रहे हैं. जर्मनी, स्वीडन, फ्रांस, बेल्जियम सब जगह यह प्रक्रिया जारी है. पर जैसे जैसे शरणार्थियों की संख्या बढ़ती जा रही है यूरोप में रोज आंतकी हमले, बम विस्फोट, हत्या, बलात्कार की खबरें पूरी दुनिया में रोज देखी-सुनी जा रही है.
1789 की फ्रांसीसी क्रांति से निकले मानवीयता, स्वतंत्रता, समानता, बंधुता, धर्मनिरपेक्षता के जो मूल्य पूरे यूरोपीय समाज की सबसे बड़ी विशेषता होते थे वे ही मूल्य आज उस पर सबसे भारी पड़ रहे हैं.
भारत में भी लगभग 5 करोड़ बांग्लादेशी और म्यांमार के रोहिंग्या घुसपैठिये शरण लिये हुए हैं. सेक्युलेरिज्म और वोटबैंक के चलते मोमताबानो जैसे राजनेता उनको हर तरह का प्रश्रय दे रहे हैं. बंगाल, असम, पूर्वोत्तर में ये बड़े भूभाग पर कब्जा जमा चुके हैं.
इन शरणार्थियों ने स्थानीय नागरिकों को वहां से खदेड़ना भी शुरू कर दिया है. मुम्बई के आजाद मैदान में उपद्रव और दिल्ली में डॉ नारंग की हत्या में इन शरणार्थियों का ही हाथ था. देश की अनेक आंतकी वारदातों और विस्फोटों में ये शामिल रहे हैं.
शरणार्थियों को एक समय पीड़ित, शोषित और सताये हुए नागरिकों के रूप में देखा जाता था और उन्हें मानवीय आधार पर शरण दी जाती थी. पर हाल के कुछ वर्षो में शरणार्थियों ने जिस तरह की वारदाते अपने ही शरणदाता देशो में की है उससे “शरणार्थी” आज वे नागरिक हो गये हैं जो शरण देने वाले देश के नागरिकों की ही अर्थी निकाल देते हैं.
बावजूद इसके पूरे यूरोप और भारत में आज भी शरणार्थियों की लगातार घुसपैठ और उनको राजनीतिक प्रश्रय जारी है… जो भविष्य में स्थानीय नागरिक समाज के लिये एक बड़े खतरे और देश की अखडंता के लिये घातक सिद्ध हो सकता है.