स्कूल में जब भूगोल पढ़ते थे और जगहों के नाम आते थे – दामोदर घाटी, झरिया कोयला खान, गोदावरी, राजस्थान के मरुस्थल, साँची के स्तूप, केरल का कोचीन बंदरगाह… वगैरह वगैरह…
तो अक्सर सोचते थे काश ये सब देख पाते. एक बार माँ से कहा कि इस सब जगहों को देखना चाहता हूँ – उन्होंने कहा बाबू पढ़-लिख के कमा लो तो घूम लेना.
ऐसे ही मास्टर साहब से कहा तो पहले पांच-सात छड़ी पाए – इस हिदायत के साथ कि पढ़ो-लिखो तो घूम पाओगे अभी आवारागर्दी मत सोचो. …
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जब नौकरी लगी और दो साल में ही भारत का एक हिस्सा धांग डाले तो माँ ने याद दिलाया कि जो चाहते थे बचपन से वो ही मिल गया.
रावत मास्टर साहब से कई वर्षों बाद सन्त कबीर स्कूल में मिले तो उन्होंने पूरे स्कूल में मेरा जुलूस निकाल दिया कि ये लड़का बचपन से सब देखना चाहता था और देखो वो पा गया है.
उस समय भी रावत सर ने लाल रंग से रंगी छड़ी घुमाते हुए कहा था सब देख के समझना और ठहर मत जाना वरना बहुत कूटेंगे.
पिछले 23 वर्षों में पूरा भारत और 17 देश घूम चुका हूँ. इसलिए मैं आँखों देखी हाल और अपने अनुभव बता सकता हूँ. फेसबुक से पहले भी जगह-जगह मेरे अनेकों मित्र बन चले थे जिनसे मैं संपर्क करके हाल-चाल ले लेता हूँ.
कई वर्षों के बाद चण्डीगढ़ में जर्मन कंपनी के Country Manager बना तो उसके 2 वर्षों के बाद कंपनी के Technical Adviser Asia और Coordinator – SAARC ने अपनी केरल यात्रा के बाद तय कर लिया कि कंपनी चंडीगढ़ से केरल शिफ्ट करेंगे.
हमने पहले काफी विरोध किया लेकिन केरल के बीफ और अरब सागर के अठखेलियों के सम्मोहन को तोड़ नहीं पाए. कंपनी अगले 6 माह में कोचीन के KINFRA Industrial Park में शिफ्ट हो गयी.
हम अकेले गए क्योंकि घर वगैरह सब इंतज़ाम करना था और कंपनी के लीगल, मशीन इंस्टालेशन आदि काम भी निपटवाने थे. एक महीने होटल में रहे और वहाँ रहकर समझ गए कि यहाँ अगर टिके तो बवाल बड़ा हो जाएगा.
कई और भी कारण इसमें जुड़ चुके थे इसलिए कंपनी से इस्तीफ़ा दे दिए – चूँकि 3 महीने का नोटिस देना था और नए मैनेजर का चुनाव भी करना था तो वहीँ होटल में रुक गए.
अंतिम माह में पत्नी और बेटे को भी बुला लिया जिससे दक्षिणी भारत की सैर करा सकें. कम्पनी से फेयरवेल के बाद हम तीनों लोग वापस लखनऊ आने से पहले केरल के अलावा दक्षिणी भारत के कई हिस्से घूमे.
केरल से मेरे जैसे तेवर और सोच वाले व्यक्ति का हट जाना ही अच्छा था. फिर 2003 में केरल से विदाई के बाद कई बार त्रिवेंद्रम, कोल्लम, कालीकट और त्रिशूर आना-जाना हुआ. सिर्फ केरल ही नहीं तमिलनाडु, आंध्र, तेलंगाना, कर्णाटक भी बहुत गया हूँ. बहुत कुछ जानता हूँ…
केरल में गाय काटने के काण्ड के बाद बहुत कांग्रेसी और वामपन्थी लोग ये साबित करने की कोशिश कर रहे हैं कि दक्षिणी भारत में बीफ खाना उनका कल्चर है. वो ये साबित करने में लगे हैं कि उत्तर भारत के कानून को दक्षिण में थोपा जा रहा है.
सोशल मीडिया पर एक पोस्ट पर कमेन्ट में एक सज्जन, जो झारखण्ड में रहते दिखाई पड़ रहे हैं और शायद दक्षिण भारत के 8-10 जिलों का नाम भी न बता पाएं, उनका मानना है कि कानून दक्षिण भारत के लोगों के साथ अन्याय है और इस कानून से दक्षिण में अलगाव होगा…
मेरी राय पूरी तरह से अलग है.
अगर राजनैतिक रूप से देखें तो इस तरह के विश्लेषण को अगर भाजपाई पढ़ रहे होंगे तो वो खुशी के मारे लहालोट हो रहे होंगे. भाजपा के लिए वरदान हैं ये लोग और इस तरह के बुद्धिजीवी…
मेरी राय में भाजपा को थोड़ा अतिरिक्त प्रयास करके इन विचारकों, चिंतकों और बुद्धिजीवियों को फाइनेंस करना चाहिए जिससे वो अपने विचार और जोर लगा के प्रकट करें. भाजपा का ये निवेश चौगुना रिटर्न देगा – इसकी गारण्टी मैं ले सकता हूँ.