माहिष्मती की गाथा -3 : उस वीर प्रतापी राजा के साम्राज्य का प्रमाण देता शिवलिंग

mahishmati maheshwar shivling vipul rege making india

बाहुबली फिल्म के अमरेंद्र बाहुबली यानि गौतमी पुत्र शतकर्णी ने अपने शासनकाल में दो बार अश्वमेध यज्ञ किये. उसका साम्राज्य दक्षिण में कृष्णा नदी से लेकर उत्तर में मालवा से सौराष्ट्र तक और पूरब में विदर्भ से लेकर पश्चिम में कोंकण तक फैला हुआ था.

दस बड़े पर्वत छवत (नर्मदा के उत्तर में विंध्य का मध्य भाग), पारियात (अरावली पर्वत शृंखला), सह्म (पश्चिमी घाट), कृष्णगिरि (कन्हेरी), मच्च, सिरिटन, मलय, महेन्द्रगिरि, सेतगिरि और चकोर उसके अधीन थे. नर्मदा तट पर स्थित उसका माहिष्मती प्रदेश की सीमाएं आज के निमाड़ के बरार तक लगती थी.

महाराष्ट्र के नासिक में एक अभिलेख प्राप्त हुआ था. सम्भवतः इस विशाल साम्राज्य की सत्यता दिखाता ये पहला और अंतिम प्रमाण है.  इसी अभिलेख का अध्ययन कर पुराविदों ने जाना कि आखिर गौतमी शतकर्णी कैसा शासक था.

अभिलेख में लिखा गया है कि गौतमीपुत्र का व्यक्तित्व बहुत आकर्षक था. चालुक्य अभिलेख प्रशस्ति श्लोक 35 में लिखा गया है ‘उसकी चाल मंथर थी. वह चन्द्रमा की तरह प्रकाशमान वस्त्र पहनता था. उसकी भुजाएं किसी पुष्ट नाग की तरह मांसल और चमकीली थी. अपनी माँ गौतमी के लिए उसके मन में विशेष आदर था. राज्य की प्रजा के लिए वह समर्पित था. वह उन विदेशी आक्रांताओं के विरुद्ध लड़ा, जो दक्षिणपंथ को समाप्त कर नया पंथ शुरू करना चाहते थे. ‘ गौतमी पुत्र की चारित्रिक विशेषताएं पढ़कर आप जान ही गए होंगे कि अमरेंद्र बाहुबली और कोई नहीं दूसरी सदी का चक्रवर्ती सम्राट गौतमी पुत्र ही था.

गौतमीपुत्र प्रजा पर ज्यादा कर नहीं लगाता था. वह इतना दयालु था कि क्षत्रु पर भी प्राणघातक वार नहीं करता था. इस बाहुबली का ध्वज कोई भी विदेशी हमलावर नष्ट नहीं कर पाया था. उसकी राजधानी इतनी कड़ी सुरक्षा में रहती थी क़ि उसके शासनकाल में कोई क्षत्रु वहां आक्रमण नहीं कर पाया था. हाथी उसका प्रिय वाहन था.  युद्ध में वह अपने क्षत्रुओं पर हाथी से छलांग मारकर टूट पड़ता था. उसके युद्ध कौशल की ख्याति भारत से बाहर विदेशी राज्यों में भी फ़ैल गई थी.

सोचिये जिसकी शक्ति और सामर्थ्य बताने के लिए प्राचीन इतिहासकारों ने मेरु और हिमालय की संज्ञा दी हो. जिस शासक ने दो अश्वमेध किये हो उसका आज कोई नाम क्यों नहीं लेता. महेश्वर में आने वाले पर्यटकों को क्यों नहीं बताया जाता कि माहिष्मती का सबसे पहला शासक कौन था. दूसरी सदी में नर्मदा क्षेत्र को अनूप क्यों कहा जाता था. कई सवाल है जो आने वाले समय में इतिहासकारों को देने होंगे.

ये चित्र उसी शिवलिंग का है जिसे गौतमीपुत्र ने स्वयं स्थापित करवाया था. इस मंदिर को बने 2000 साल पूरे होने जा रहे हैं. ये शिवलिंग खुद में उस वीर प्रतापी राजा का प्रमाण देते हैं. विडंबना ये है कि महेश्वर में घूमने आने वाले पर्यटक ये नहीं जानते कि नदी के उस पार एक ऐसा मंदिर है जिसका शिवलिंग महेश्वर में सबसे प्राचीन है. उस जमाने में मंदिर बनवाना यानी अपने साम्राज्य की अंतिम सीमा की घोषणा करना होता था. सातवाहन साम्राज्य का आखिरी छोर ये मंदिर ही था.

जारी रहेगा…..

माहिष्मती गाथा-1 : ऐश्वर्यशाली और कला सरंक्षक माहिष्मती साम्राज्य के सबूत

माहिष्मती गाथा-2 : भारत का समृद्ध इतिहास और वामपंथी इतिहासकारों का षडयंत्र

Comments

comments

LEAVE A REPLY