ये पहली सदी की बात है. प्राचीन भारत के महान शक्तिशाली मौर्य साम्राज्य की शक्ति अब क्षीण पड़ने लगी थी. 185 ईसा पूर्व में इस वंश के अंतिम शासक बृहद्रथ मौर्य की उसके सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने हत्या कर डाली.
शक्तिशाली मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद कण्ववंश ने सत्ता संभाली लेकिन सैन्य रूप से कमजोर कण्ववंश ज्यादा टिक नहीं पाया. राजा श्रीमुख ने इसके बाद महान सातवाहन साम्राज्य की नींव रखी. ये समय लगभग 60 ईसा पूर्व का माना जाता है. इसके बाद सातवाहनों ने लगभग 250 साल तक शासन किया.
हालांकि सातवाहन वंश के प्रथम राजा श्रीमुख के बाद उसके पुत्र कान्हा के शासनकाल में सातवाहन साम्राज्य फिर कमज़ोर होने लगा था. इसके बाद गाथा में उस वीर प्रतापी योद्धा का आगमन होता है, जिसने एक के बाद एक युद्ध जीतते हुए भारत को एक सूत्र में बांधने में सफलता प्राप्त की.
कान्हा के पुत्र गौतमीपुत्र शतकर्णी के शासनकाल (106-130 ई.) में ही ‘माहिष्मती (आज का महेश्वर) की स्थापना हुई. उस समय नर्मदा प्रदेश को ‘अनूप’ कहा जाता था. गौतमी पुत्र ने ये क्षेत्र युद्ध में शकों से जीता था.
एक सवाल मन में आता है कि महाराणा प्रताप, शिवाजी, पृथ्वीराज चौहान जैसे वीर योद्धाओं में गौतमीपुत्र का नाम शामिल क्यों नहीं है. क्यों वे बाकी नायकों की तरह कोर्स की किताबों में बच्चों को नहीं पढ़ाए जा रहे हैं.
आपको भी हैरानी हुई होगी कि आठ प्रदेशों पर राज करने वाले योद्धा को वर्तमान पीढ़ी याद क्यों नहीं करती. क्यों कुछ इतिहासकारों ने गौतमी पुत्र की प्रतिष्ठा पर लांछन लगाने का काम किया. क्यों उसकी महान गाथा के बारे में आप कुछ नहीं जानते. जिसके घोड़े तीन समुद्रों का पानी पीते थे, ऐसे योद्धा को क्यों भूला दिया गया है.
ये कैसे सम्भव है कि देश का वामपंथी धड़ा एक काल्पनिक कथा को दिखाए जाने पर इतना शोर मचाए. बात जैसी नज़र आ रही है, वैसी नहीं है. जिन लोगों ने हमारे समृद्ध इतिहास को षड्यंत्रपूर्वक बदला है, वे दरअसल इस बात से भयभीत है कि बाहुबली फिल्म के जरिये प्राचीन भारत के एक विलक्षण नायक का सत्य जान ले.
वे इस बात से भयभीत हैं कि कहीं गौतमी शतकर्णी का नाम उछलते ही इतिहास की किताबे फिर न खोदी जाने लगे. वे इस बात से भयभीत हैं कि कहीं लोग ये न जान जाए कि उनके एक महाप्रतापी पूर्वज को हमने किताबों में एक हत्यारा भी लिख दिया है.
इसे लेख समझने की भूल न करें. ये एक अभियान है, जिसमें दक्षिणपंथी और उन लोगों की मदद की दरकार है, जो हमारे इतिहास पर पड़ी झूठ की परते उठाना चाहते हैं. वो शासक जिसने देश में दक्षिणपंथ को मजबूत किया. समाज को बेहतर जीवन देने के लिए कई सामाजिक कार्य किये. कुओं, नदियों और तालाबों के लिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित किया. आगे हम जानेंगे कि गौतमीपुत्र शतकर्णी उर्फ़ अमरेंद्र बाहुबली की चारित्रिक विशेषताएं क्या-क्या थी. आखिर उसमें ऐसी क्या बात थी कि प्रजा में वह बहुत लोकप्रिय था. उसकी सेना कैसी थी.
चित्र में जो चबूतरा दिखाई दे रहा है, ठीक इसके पीछे माहिष्मती के अवशेष आज भी काँटों के जंगल में दबे पड़े हैं. इस चबूतरे के बारे में कहा जाता है कि यहाँ महेश्वर के तत्कालीन राजा मंडन मिश्र और आदि शंकराचार्य के बीच शास्त्रार्थ हुआ था. सम्भव है ये चबूतरा प्राचीन माहिष्मती के वैभव को वर्षों तक निहारा करता होगा.
जारी रहेगा…..
माहिष्मती गाथा-1 : ऐश्वर्यशाली और कला सरंक्षक माहिष्मती साम्राज्य के सबूत