गोल की तरफ मारा हुआ उनका एक डेस्परेट शॉट है सहारनपुर की घटनाएं

अपना यह पुराना लेख फिर साझा कर रहा हूँ… सहारनपुर की घटनाएँ गोल की तरफ मारा हुआ उनका एक डेस्परेट शॉट है…

प्रश्न यह है कि हमारी चुनी हुई सरकार की भूमिका क्या सिर्फ रेफ़री की है, या वे इन विरोधी विद्रोही शक्तियों को कुचलने के लिए सत्ता की शक्ति का प्रयोग भी करेंगे?

अगर आप फुटबॉल खेलते हों तो खिलाड़ी की मनोदशा समझिए. एक टीम बॉल लेकर विपक्षी गोल की तरफ बढ़ती है.

पास करते हुए, मिडफील्ड को छकाते हुए गोल के सामने पहुँचती है. लेकिन तब एक मजबूत डिफेंस को सामने पाती है, गोलकीपर गोल में तैयार है, कहीं से गोल में शॉट मारने के लिए खुली जगह नहीं है.

तब खिलाड़ी क्या करता है? वह बॉल विपक्ष के हाथ में देकर तो नहीं चला जाता है? किसी तरह एक फ्री-किक या कार्नर लेने की कोशिश करता है.

पेनाल्टी बॉक्स के अन्दर गुलाटियाँ खाते हुए चोट लगने का ड्रामा करता है और पेनाल्टी मांगते हुए रेफरी को घेर लेता है…

आखिर में गोल होने का कोई चांस नहीं होते हुए भी गोल की तरफ एक शॉट जरूर मारता है…

तो देशद्रोहियों की टीम ने इतने साल प्लानिंग की है, रणनीति बनाई है, हिन्दू समाज को जातियों में बांट कर लड़ाया है…

हमारे स्कूल की किताबों में जहर घोला है, यूनिवर्सिटीज़ में आग लगाई है… जिहादियों की फौज तैयार की है, चर्चों ने समाज में जहर फैलाया है, मीडिया के लाइंसमैन और रेफरी को मिलाया है…

पर आज पूरा देश डिफेंस में खड़ा है. देशद्रोही एक्सपोज़ हो गए हैं. गेंद उनके हाथ से छिन रही है. वे फाउल-फाउल चिल्ला रहे हैं.

वो कुख्यात टीवी एंकर पेनाल्टी बॉक्स में गुलाटियाँ मारता हुआ पेनाल्टी मांग रहा है, वे दादरी और रोहित वेमुला पर फ्री किक मांग रहे हैं.

मीडिया के रेफरी उनकी टीम में हैं, सीटियाँ बजा रहे हैं जिसे सुनने को देश तैयार नहीं है. मैच उनके हाथ से निकल रहा है…

पर याद रहे, उनका गोल है भारत की बर्बादी, भारत में गृहयुद्ध… तो वे एक शॉट तो वे गोलपोस्ट की तरफ मारेंगे ही… गोलकीपर तैयार हैं ना?

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