भगवान बदरी नाथ जी सचमुच अद्भुत अख्यायित हैं. उनके रूप सौंदर्य और प्रभा मंडल का वर्णन करना किसी के वश में नहीं है. यह भूमि इतनी पवित्र और आध्यात्म तथा प्रेरणा दायक है कि वेद व्यास जी के यहीं माणा जिसे मणि भद्र पुर कहा जाता है.
पुराणों की रचना की शक्ति मिली. उन्होंने ने अपने श्री मुख से “श्रीमद भागवद कथा पुराण” यहीं पर रचित किया. और उसे गणेश जी ने लिखा. आज भी व्यास गुफा और इस पर बनी पुस्तक आकृति इसकी साक्षी है.
भगवान का विग्रह है अद्भुत
भगवान बदरी विशाल की स्वयं भू विग्रह मूर्ति की अदभुत विशेषता है. भगवान “श्री हरि” पर बौद्धिष्ठ उनमें अपने आराध्य भगवान बुद्ध की छवि देखते हैं जैनी भगवान आदिनाथ की. जब भगवान का निर्वाण रुप दिखता है तो पद्मासन में बैठे प्रभु शान्त तप रुप, जनेऊ पहने और दाहिनी ओर जटा रुप दिखता है.
राहुल सांकृत्यायन अपनी रचना मेरी हिमालय यात्रा में भगवान की इस दिव्य मूर्ति में बुद्ध का रुप देखने की बात करते हैं. पर मूल और निर्विवाद रुप से यह भगवान “हरि विष्णु हैं. आदि गुरु शंकराचार्य जी ने नारद कुंड से भगवान के इस विग्रह को यहाँ पर प्रतिष्ठापित किया.
शंख नहीं बजता बदरी नाथ में
भगवान “श्री हरि” को शंख, चक्र और पदम कमल प्रिय है. पर बदरी नाथ में कभी शंख नहीं बजता, न पूजा, न अभिषेक न आरती में. इसकी वजह अलग अलग बताई जाती है.
चंदन, तुलसी, चना है प्रभु को प्रिय
ऊन की चोली और फाफर की पोली है कपाट बंद रहने की अवधि में पहनावा और भोजन. कपाट खुलने पर दिव्य वस्त्रों का श्रृंगार और केशर भात है प्रिय
अनुशासन के प्रिय हैं प्रभु
यूं तो भगवान बदरी विशाल भाव, भावना और श्रद्धा भक्ति के प्रिय हैं पर अनुशासन के भी. भगवान का दर्शन स्नान आदि के बाद करना सभ्यता में हैं. नागा साधु भी यदि प्रभु के दर्शन करते हैं तो कोपिन पहन कर ही भगवान के दर्शन करते हैं शरीर का अंग वस्त्र विहीन नहीं रहना चाहिए. वे विश्व के राजा भी हैं और दयालु भी.
बदरी नाथ पर शेष फिर यदि बदरी विशाल की आज्ञा हुयी तो…
– वासुदेव कालरा
बदरी सदृश्यं भूतो न भविष्यति – 1
बदरी सदृश्यं भूतो न भविष्यति – 2