हिमवन के राजा सुरथ बड़े दयावान और कोमल स्वभाव के थे. उनका मन बड़ा भावुक था. एक बार उन्होंने एक अपराधी को दंड दिया. उसे दंड पाते देख उनका मन विक्षुब्ध हो उठा.
वे सोचने लगे कि राज्य का संचालन करूंगा तो प्रतिदिन दंड देना ही पड़ेगा. इस स्थिति से बचने के लिये वे वन की ओर निकल पड़े. उन्होंने वन में अपनी एक कुटिया बनाई और वे वन में योगी के रूप में रहने लगे. वे रात दिन तप में लीन रहते.
एक दिन एक घटना उनके सामने घटी. एक बाज अपने पंजे मे दबाकर अपने भोजन के लिये एक तोते के बच्चे को लेकर जा रहा था. उन्होंने दयावश उस बच्चे को बचाने के लिये पत्थर फेंका.
इससे तोते का बच्चा तो बच गया पर वो बाज पत्थर लगने से मर गया. अपने हाथों से जीवहत्या देखकर उनका मन बड़ा भारी विचलित हो गया. वे शोक में डूब गये. उसी समय महामुनि मांडव्य वहां से निकल रहे थे. उन्होंने राजा की मनोव्यथा को भांप लिया.
वे राजा से बोले कि यदि न्याय नहीं किया जाये, कठोरता न बरती जाये तो दुष्ट लोग सज्जनों पर अत्याचार करने लगते है. धर्म नष्ट होने लगता है और अधर्मियों की संख्या बढ़ने लगती है. इसलिये दंड के भय को निकाल कर तुम प्रजा की सेवा करो.
तुम दंड किसी को व्यक्तिगत बैर की वजह से नहीं उसके अपराध की वजह से दे रहे हो, इसलिये वह हिंसा नहीं राजधर्म है. उस दंड से तो सुशासन स्थापित होता है और राजा होने के नाते सुशासन स्थापित करना तुम्हारा नैतिक और वैधानिक कर्तव्य है.
आज यूपी, मप्र, महाराष्ट्र में भी कुछ ऐसे ही हालात बनते जा रहे. यूपी के सहारनपुर से लेकर मप्र के मंदसौर तक तीनो राज्यो में निर्दोष किसानों दलितों के नाम पर अराजक तत्व खुलेआम उपद्रव मचा रहे हैं.
संयोगवश यूपी की कमान भी आज एक “योगी” के हाथ मे ही है बस अंतर इतना है कि ‘सुरथ’ पहले शासक थे बाद मे योगी बने और ये पहले योगी थे अब शासक बने है.
मप्र, महाराष्ट्र में भी कोमल ह्रदय वाले मुख्यमंत्री बैठे हुए हैं. चारों ओर हिंसा का नंगा नाच हो रहा है, सार्वजनिक सम्पत्ति जलाई जा रही है. शासक वोटबैंक के डर से भयभीत बैठा है, स्थिति नियंत्रण के बाहर होती जा रही है. जबकि ये समय कठोर निर्णय लेने का है न कि चिंतन मनन करने का.
चिंतन मनन छोड़कर अपने मन का भय निकालिये, दंड दीजिये… इससे पहले कि स्थिति और नियंत्रण के बाहर हो जाये…
प्लेटो के अनुसार
“दोषियों को दिया जाने वाला दंड उन पर ठीक वैसे ही काम करता है जैसे रोगी पर औषधि काम करती है.”