शनि जयंती : न्याय के देवता, जो कभी नहीं होने देते अन्याय

हमारे आधुनिक समाज के लिए शनि सूर्य के आसपास चक्कर लगाने वाला एक ग्रह मात्र है, जो पृथ्वी की तुलना में सूर्य से काफी दूर है.

सनातन धर्म के अनुसार उसे सूर्य का पुत्र कहा गया है. मान्यता है कि सूर्य की पत्नी संज्ञा जब उनका तेज सहन नहीं कर सकी थी तो अपनी छाया को उनके पास छोड़कर चली गयी थी. शनि को छाया का पुत्र माना जाता है, जिसकी वहज से उनके रंग को काला माना गया है.

हमारे ग्रंथों में ब्रह्माण्डीय घटनाओं को भी कथाओं के रूप में प्रस्तुत किया गया है, ताकि हम पर उनके प्रभावों की हम उपेक्षा न करें. हम जानते ही हैं कि जब पृथ्वी के उपग्रह चन्द्रमा के घटने बढ़ने से जब हमारी मानसिक स्थिति पर प्रभाव पड़ सकता है तो फिर यह तो उपग्रह नहीं मुख्य ग्रह है.

तो हम संज्ञा, छाया और सूर्य पुत्र शनि की कहानी पर शोध करेंगे तो उसका भी कोई न कोई वैज्ञानिक कारण पता कर ही लेंगे. लेकिन ग्रहों की स्थितियों का पता भर लग जाने से उनके प्रभाव कम नहीं हो जाते.

हमारे ऋषियों ने तो ग्रहों की स्थिति का अध्ययन कर पूरा ज्योतिष शास्त्र और खगोलीय शास्त्र लिख डाला है तो, आप कोई छोटी मोटी Scientific Theory खोज भी लाते हैं तो कोई आश्चर्य नहीं है.

मुख्य मुद्दा इन ग्रहों का आपके जीवन पर प्रभाव का है, जिसकी वजह से हम कभी शनि महाराज को सरसों का तेल चढ़ाते हैं, तो कभी काली उड़द. कभी शनि चालीसा पढ़कर उन्हें प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं, तो कभी शनि की साढ़े साती के प्रभावों को कम करने का. और तो और शनि के प्रभावों पर चर्चा करने के बजाय कभी कभी हम शनि मंदिर में महिला के प्रवेश पर भी बहस कर रहे होते हैं.

खैर आज शनि जयंती है, आज वट सावित्री अमावस्या भी है और आज से ही रोहिणी नक्षत्र भी लगा है, और आज ही से नौतपा प्रारम्भ हुआ है. गौरतलब है कि 16 वर्ष बाद यह संयोग बना है जब शनि जयंती रोहिणी नक्षत्र में पड़ी है.

कहते हैं चन्द्र के रोहिणी नक्षत्र में सूर्य के प्रवेश से नौतपा प्रारंभ होता है. नौतपा की इस अवधि में गरमी का प्रकोप चरम पर होता है. और जिस समय में सूर्य रोहिणी नक्षत्र में होते हैं उस समय चन्द्र नौ नक्षत्रों में भ्रमण करते हैं.

अब कथा का एक पहलू यह भी देखिये कि यूं तो रोहिणी नक्षत्र को चन्द्र की पत्नी माना जाता है. और माना यह भी जाता है कि सूर्य की गर्मी और रोहिणी के जल तत्व के कारण मॉनसून गर्भ में आ जाता है. और नौतपा को मानसून का गर्भकाल माना जाता है. इसलिए गर्भकाल में बारिश का होना ठीक नहीं होता.

हम आम लोगों को भले इनके प्रभावों का विशेष ज्ञान नहीं, लेकिन सोलह वर्ष बाद शनि जयंती का रोहिणी नक्षत्र में पड़ना यकीनन विशेष प्रभाव उत्पन्न करेगा. ज्योतिषियों के लिए यह विशेष समय होता है जब वो ग्रहों की चाल और नक्षत्रों के प्रभावों से मनुष्य जीवन ही नहीं देश की चेतना पर भी परिवर्तन की गणना कर रहे होते हैं..

और हम आम मनुष्य जहाँ शनि को सरसों का तेल, काली उड़द चढ़ाकर मानसिक शांति के लिए प्रयास कर रहे होते हैं, वहीं ब्रह्माण्डीय योजनाओं में विशेष चेतनाओं पर विशेष अनुष्ठान किये जा रहे होते हैं. क्योंकि जिन बातों का पूरा ज्ञान न हो वहां आस्था का एक दीपक भी अपना काम कर जाता है.

इसलिए ब्रह्माण्डीय स्तर पर क्या हो रहा है क्या नहीं इसकी अधिक चिंता न करते हुए बस इतना याद रखिये कि न्याय के देवता माने जाने वाले शनि आपके कर्मों का हिसाब किताब भी देखते हैं, मतलब  आपके कर्मों पर शनि ग्रह का प्रभाव तो होता ही है. इसलिये अपने कर्मों को सद्कर्मों में बदलने का प्रयास कीजिये तो न्याय के देवता आपके साथ कभी अन्याय नहीं होने देंगे.

अपना पहला वाक्य दुबारा दोहराते हुए यही कहूंगी हमारे आधुनिक समाज के लिए शनि सूर्य के आसपास चक्कर लगाने वाला एक ग्रह मात्र है, जो पृथ्वी की तुलना में सूर्य से काफी दूर है. लेकिन यह याद रखिये वह पृथ्वी से ज्यादा दूर नहीं.

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