आत्मा के खोये हुये टुकड़े की तलाश

उर्वारुकमिव बंधनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात

इंसान अपनी सारी जिंदगी बहुत कुछ करता है, लड़ता है, भागता है, भटकता है. अपने अस्तित्व की पूर्णता की खोज में, किसी की तलाश में ……शायद अपनी “आत्मा के खोये हुये टुकड़े” की तलाश में …और फिर भटकते – भटकते जब थक जाता है और ‘सांझ’ आ खड़ी होती है तब उसे एहसास होता है कि उसके जीवन की कहानी कुछ चंद ‘शब्दों’ में सिमटकर रह गयी है. वे ‘शब्द’ जिनके चारों ओर नियति ने उसकी जिंदगी का ताना – बाना बुना था जिन्हें वह कभी पहचान ही नहीं सका.

नेपोलियन …महान नेपोलियन बोनापार्ट जिसकी यशोगाथा पर हजारों पन्ने लिखे गये उसके इतने महान जीवन की कहानी मात्र तीन शब्दों में सिमट गयी जो उसकी आखिरी सांसों के साथ उसके मुँह से निकले ……
“जोसेफीन”, “सेना”, “फ्रांस”

महाद्वीपों, राष्ट्रों और राज्यों की सीमाओं को अपनी तलवार से उलटते पलटते इस महान योद्धा और विचारक का पूरा जीवन वास्तव में इन्हीं तीन शब्दों के इर्दगिर्द घूमता रहा और जब सेंट हेलेना पर उसने अपनी अंतिम साँस ली तब उसके पास मात्र इन्हीं “तीन शब्दों” की संपत्ति थी.

मुझे भी तलाश है उस ‘शब्द’ की जिसमें अपने जीवन की सार्थकता पा सकूँ, पर मुझे लगता है कि नियति ने मुझे एक ऐसे पथ का राही बनाया है जिसकी कोई मंजिल ही नहीं. मेरी यात्रा उस पथिक की यात्रा है जिसकी सांझ होने को आयी पर उसकी तलाश खत्म ही नहीं हो रही. उस ‘शब्द’, उस ‘नाम’ की तलाश …. ‘आत्मा के उस अधूरे टुकड़े’ की तलाश जिसके बिना मेरी मुक्ति संभव नहीं… इस जन्म में या जन्म-जन्मांतरों में….

अपनी इसी खोज की अनंत यात्रा में वर्तमान शरीर की इस वर्षगाँठ पर अब बस इतनी सी कामना भर शेष है कि जीवन के प्रति असीम अनुराग से भावोद्वेलित आर्य ऋषियों की भावाभिव्यक्ति …यह महामृत्यंजय मंत्र मेरे जीवन में पूरा पूरा उतरे और जब मैं अंतिम सांस लूँ तो ‘मेरा कृष्ण’ मेरी आँखों के सामने हो और उसे निहारते हुए मैं इस जीवन से उसी तरह अलग हो जाऊँ जैसे एक फूल अपनी डाल से अलग हो जाता है.

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