इस्लाम की किताबों के अंदर क़यामत से पूर्व यानि दुनिया खत्म होने से पहले के हालात को लेकर कई पेशीनगोईयां (भविष्यवाणियाँ) की गयीं हैं. कुछ तो बड़े मशहूर हैं और कुछ उनके अपनी चर्चाओं तक सीमित रखने के चलते आम लोगों के जानकारी में नहीं है.
यहाँ तीन बड़ी पेशीनगोईयों को लेकर हम बात करेंगे. सबसे पहले बीस के दशक में उस्मानी तुर्कों की पराजय ने इनको क़यामत के नज़दीक होने का एहसास करा दिया था क्योंकि हदीसों में था कि क़यामत से पहले उम्मते-मुहम्मदिया यहूद और नसारा की पैरवी करेगी.
अरब में वहाबी के उद्भव में ईसाइयों का रोल बड़ा अहम था, उस्मानी तुर्कों के साथ हुई जंग में ब्रिटेन की फौजों ने अरब के वहाबियों का साथ दिया था.
अब प्रयोग के लिये पहली बारी हिन्द की थी. गजवा-ए-हिन्द की भविष्यवाणी के पहले भाग के सत्य होने की आहट आई तो इन्होनें सोचा कि ये मुल्क को लूटा-खसोटा जायेगा इसलिये बेहतर है कि अपने लोगों को यहाँ से अलग कर लो ताकि मरदूद मूर्तिपूजक को रौंदने में कोई दिक्कत न आये.
इसलिये पाकिस्तान वजूद में आया पर दुर्भाग्य से अपने साथ वो सारे मुस्लिमों को यहाँ से न ले जा सके. इसके बाद एक पेशीनगोई इज़रायल को लेकर थी.
कुरान के सूरह बनी इसराईल नाम के अध्याय की एक आयत में इजरायल और यहूदियों को लेकर एक भविष्यवाणी की गई है, उसमें कहा गया है कि जब क़यामत का वक़्त नजदीक आ जाएगा तो अल्लाह सारे यहूदियों को दुनिया भर से समेत कर एक स्थान पर ला इकठ्ठा करेगा.
1948 में इजरायल के गठन के बाद जब ऐसा हुआ तो क़यामत की निशानदेहियों पर नज़र रखने वाले मुस्लिम लहालोट हो गये.
वो खुलेआम अपने जलसे और तकरीरों में कहने लगे कि देखो, अल्लाह ने इन यहूदियों को एक स्थान पर सिर्फ इसलिए ला इकठ्ठा किया है ताकि इन मरदूदों को एक हाथ अजाब में डाल कर हलाक़ किया जा सके.
मदरसों और मुस्लिम शिक्षण संस्थानों के पाठ्यक्रमों में यहूदियों के लिये घृणा से भरी तालीम और भी शिद्दत से ठूंसी जाने लगी.
ईसा के आसमान से उतरने की प्रतीक्षा शुरू हो गयी ताकि वो आयें और यहूदियों को हलाक करें. कहा गया कि ईसा की आँखों से ऐसी लेजर किरणें निकलेंगी कि जहाँ तक उनकी नज़र जायेगी यहूदी पिघल जाएगा.
यहूदी इतने जलील और असहाय हो जायेंगे कि अगर वो किसी पेड़ या पत्थर के नीचे छिपेंगे तो वो पेड़ और पत्थर चीख-चीख के कहेगा, ऐ मुसलमानों, इधर आओ, देखो, मेरे नीचे एक खबीस यहूदी छिपा है आओ और इसे कत्ल कर दो.
ईसा सिर्फ यहूदियों पर ही कहर बनके नहीं टूटेंगे बल्कि ईसाई भी उनकी जद में होंगे. उनकी कियादत में निकली इस्लामी फौजें ईसाई हुकूमतों को रौंद के रख देगी, सलीब और गिरजे ढहा दिए जायेंगे.
इन सब घटनाक्रमों के बीच 2013 में उनकी नज़र भारत की ओर भी गई जहाँ संघ का एक प्रचारक देश के नेतृत्व करने की ओर बड़ी तेज़ी से बढ़ रहा था.
ऐसे में इनकी बांछे खिल गई क्योंकि अब गजवा-हिन्द की हदीस के उस भाग के सत्य होने के आसार दिख रहे थे जिसमें ये कहा गया था कि भारत के हिन्दू राजा को जंजीरों में बाँध कर घसीटते हुए इमाम मेहदी के चरणों में लाया जायेगा.
अप्रैल, 2013 में आईएसआईएस या दाइश का गठन हो गया. 26 मई, 2014 को इधर नरेंद्र मोदी ने शपथ ली, उधर चंद रोज बाद ही 29 जून 2014 को एक नये खिलाफत की स्थापना के साथ अबूबक्र अल-बगदादी ने खुद को इस्लामिक स्टेट का खलीफा घोषित कर दिया और कहा कि उसके इस्लामिक साम्राज्य की जद में हिन्द भी है.
हदीसों में इन्हीं दिनों के बारे में है कि खुरासान के पास काले झंडे निकलेंगे. दाइश के झंडों का रंग देखिये, आपको सब कुछ समझ में आ जायेगा.
कुरान में है कि ईमान वाले शत्रुता में सबसे बढ़ कर यहूदियों और मुशरिकों को पायेंगे (मुशरिक यानि हिन्दू), यानि उन्हें ये पक्का पता है कि कम से कम इन दोनों से सुलह हो नहीं सकती, जंग ही होनी है.
क़यामत के करीब होने की पेशीनगोईयों में एक ये भी था कि इस्लाम 73 फिरकों में बंट जायेगा जो हो चुका है, तुर्की और इजरायल वाली भविष्यवाणी भी पूरी हो चुकी है, ख़ुरासान से निकलने वाले काले झन्डे सारी दुनिया में दिख ही रहे हैं और अब इनके अनुसार एक हिन्दू राजा हिन्द की गद्दी पर भी बैठा है.
दाइश के कुत्तों को शायद क़यामत की गंध मिल चुकी है उनके अनुसार फसल पक भी चुकी है, काटना कब है इसका गुणा-भाग भी लगाया जा रहा है और इधर वो कथित हिन्दू राजा और हम लोग शुतुरमुर्ग की तरह “ऑल इज़ वेल” की टेबलेट लेकर स्वस्थ और दीर्घजीवी होने की कामना कर रहे हैं.