बदरी सदृश्यं भूतो न भविष्यति – 1

पृथ्वी पर “साक्षात भू वैकुंठ” समझे जाने वाले और न सिर्फ मानव ही बल्कि देवता भी जिनकी अर्चना वन्दना के लिए लालायित रहते हैं ऐसे “श्री हरि भगवान बदरी विशाल” के कपाट 6 मई को ब्रह्म मुहुर्त पर 4.15 पर खुलेंगे.

शीतकाल में 6 माह तक कपाट बंद रहते हैं. मान्यता कि उस अवधि में देवता गण भगवान के दर्शन वन्दन करते हैं और देव श्रृषि भगवान बदरी विशाल के प्रधान पुजारी के रुप में होते हैं.

कपाट खुलने पर मानव भगवान के दर्शन वन्दन अर्चन करते हैं. और दक्षिण भारत केरल प्रांत के नम्बूरी ब्राह्मण भगवान के प्रधान पुजारी के रूप में श्री बदरी विशाल की पूजा अर्चना करते हैं. इन्हें रावल जी महाराज कहा जाता है. भगवान के श्री विग्रह को स्पर्श करने, उन्हें श्रृंगारित करने, स्नान, स्नात करने का अधिकार मात्र रावल जी को ही रहता है.

राष्ट्रीय एकता और समन्वय के प्रतीक भी हैं “श्री बदरी विशाल”

श्री बदरी विशाल राष्ट्र एकता और समन्वय के भी प्रतीक हैं. 11 हजार फिट की हिमालयी ऊंचाई पर स्थित भगवान बदरी विशाल में बहुत कुछ अदभुत है. हिमालय का धाम, पुजारी दक्षिण से, श्रृंगार के लिए केशर कश्मीर से, चंदन कर्नाटक से, सफेद गाढ़े का कपड़ा उत्तर पूर्व से. प्रसाद और भोग का चना गुजरात से.

हर युग में पूजे जाते हैं भगवान बदरी विशाल

त्रेता युग में अलग नाम से, द्वापर में “विशाला” नाम से कलियुग में “श्री बदरी नाथ” के नाम से पूजित भगवान के विगृह का सौन्दर्य भी अद्भुत है.

प्रायः “श्री हरि विष्णु की छवि या तो शंख चक्र पदम सहित खड़े विग्रह के रूप में दिखती है या क्षीर सागर में लेटे हुये “शांता कारम भुजग शयनम” … के रुप में. मगर दुनिया में केवल बदरी नाथ ही ऐसा दिव्य धाम है जहां भगवान पद्मासन में हैं. इस हिमालय में भगवान पद्मासन में तप रत मुद्रा में हैं और लोक कल्याण के लिए साधना में हैं.

भगवान बदरी विशाल के बारे में, यहाँ के तीर्थ, स्थल, परम्परा, मान्यता, लोक जीवन में कैसे समाये हैं प्रभु, इन बिन्दुओं पर यदि भगवान की आज्ञा और कृपा होगी तो छोटे छोटे टुकड़े में जानकारी प्रेषित करने की यथा योग्य यथा सम्भव प्रयास करुंगा, लगातार.

खुल गये श्री हरि बदरी नाथ के कपाट

साक्षात भू बैकुंठ श्री बदरीनाथ के कपाट शनिवार 6 मई को ब्रह्म मुहुर्त पर 4.15 पर वेद श्रृचाओं की स्वर लहरियों के साथ खुले. भारत गणराज्य के महामहिम राष्ट्रपति प्रवण मुखर्जी समेत लगभग 20 हजारों ने भगवान के कपाट खुलने पर प्रथम दर्शन किये. राष्ट्रपति प्रवण मुखर्जी ऐसे पहले राष्ट्रपति है जिन्होंने भगवान बदरी विशाल के कपाट खुलने के दर्शन किये.

हालांकि वे पांचवे राष्ट्रपति हैं जिन्होंने भगवान बदरी विशाल के दर्शन किये हैं अब तक पूर्व राष्ट्रपति डा राजेन्द्र प्रसाद, नीलम संजीव रेडडी, आर वेंकट रमण  व प्रतिभा पाटिल भी भगवान बदरी विशाल के दर्शन कर चुकी हैं.

कपाट खुलने की प्रक्रिया

कपाट प्रात: 4.15 पर खुले. उससे पहले रात्रि 12 बजे से ही श्रद्धालु भगवान के दर्शन के लिए लाइन में लग गये थे. भगवन के कपाट खुलने की प्रतीक्षा की खुशी में सिंह द्वार के बाहर सेना के बैंड की मधुर ध्वनि बजने लगी माणा और बामणी गांव की महिलाओं समेत देश विदेश से आये भक्त झूमने लगे.

सिंहद्वार की सीढि़यों के दोनों ओर सस्वर संस्कृत महा विध्यायक के छात्र स्वति बाचन और शान्ति पाठ कर रहे थे. प्रकाश का सौन्दर्य भी अलौकिक था. सबसे पहले मुख्य द्वार की पूजा हुयी. मंत्र पढ़े गये. फिर गर्भ ग्रह के कपाट खुले.

सबसे पहले मुख्य रावल जी ने मंदिर के अन्दर प्रवेश किया. भगवान के दिव्य विग्रह को साष्टांग प्रणाम किया. उसके बाद शीतकाल में अब तक जिस कम्बल में भगवन की मूर्ति को रखा गया था धीरे धीरे उस वस्त्र को उतारा गया और भगवान का “श्री विग्रह” प्रकट हुआ जिसे देखने के लिए आंखे तरसती हैं.

भगवान का यह दिव्य श्री विग्रह देखते ही सबके कंठ से “जय बदरी विशाल” उदघोष गूंज उठा धर्मधिकारियों ने पवित्र मंत्र पढ़े. और उसके बाद सभी भक्तों ने भगवान के दर्शन किये मंदिर के अंदर जल रही अखंड ज्योति के दर्शन किये.

जब भगवान के कपाट खुले तो सबसे पहले मां लक्ष्मी जी का विग्रह जो शीतकाल में कपट बंद होने पर भगवान के सानिध्य में था उसे आदर पूर्वक लक्ष्मी मंदिर में लाया गया. फिर मंदिर में उद्धव जी और फिर कुबेर जी को विग्रह गर्भ में विराजित किया. हजारों भक्तों ने भगवान के दर्शन किये-

राष्ट्रपति का आगमन

राष्ट्रपति प्रवण मुखर्जी सेना के विशेष विमान से 8.25 पर माणा मे़ बने सेना के हैली पैड पर उतरे उनके साथ राज्य पाल के के पाल मुख्य मंत्री त्रिवेन्द्र रावत भी थे हैलीपैड पर सभी का स्वागत किया गया वहाँ से कारों कू काफिले के साथ महामहिम साकेत चौराहे तक आये. यहाँ से पैदल ही मन्दिर के लिए निकले हालांकि उनके लिए पालकी की व्यवस्था थी. पर उन्होंने पैदल ही मन्दिर जाने का निर्णय लिया.

8.32 पर मन्दिर में प्रवेश किया 35 मिनट तक पूजा अर्चना की. 9.2 पर मंदिर से बाहर आये सिहद्वार पर मंदिर समिति ने उन्हें बदरी केदार कलेऊ और सोविनियर भेंट किया. रावल जी ने प्रसाद दिया. इसके उपरांत वे अतिथि ग्रह में आये वहाँ पर नाश्ता किया. मुख्य मंत्री राज्यपाल पर्यटन मंत्री मन्दिर अधिकारियों विधायक गणों से जानकारी ली. फिर बाहर आकर सिंह द्वार पर फोटो सेशन हुआ. उसके बाद पैदल ही वापस साकेत तिराहे तक आये यहाँ से कारों के काफिले के साथ सेना के हैली पैड पहुंचे और सेना के उसी विशेष विमान से वापस निकले उनके वापस जाने के बाद फिर हजारों भक्तों ने भगवान के दर्शन किये.

– वासुदेव कालरा

Comments

comments

LEAVE A REPLY