पांच साल लग गये… तीन साल में तो खुद की खाई को पाट के बराबर भी नहीं कर पाया था.
जैसा कि आप सबको बता चुका हूं कि मैं एक प्लांट (प्राईवेट सेक्टर) में जनरल मैनेजर हूं. तनख्वाह बहुत बंपर नहीं तो खराब भी नहीं है, ठीक-ठाक ही है.
जनरल मैनेजर आज से 5 साल पहले भी था. पिछले छः महिने से बनारस में एक रेस्त्रां भी चला रहा हूं और एक महिने पहले से Ice Cream Parlour भी चलाने लगा.
आप सोच रहे होंगे कि ये बताने कि क्या जरूरत कि 5 साल पहले भी जनरल मैनेजर ही था… तो सुनिए.
पांच साल पहले भी बनारस में एक रेस्त्रां शुरू किया था जो बंद करना पड़ा था. बहुत लंबा नुकसान लगा था उस काम में.
इसी क्रम में एक और काम शुरू किया था प्लांट लगाने का. राउरकेला, ओडिशा में एक आर्डर भी मिला 30 लाख का और काम भी किया, पर उसके बाद वो भी काम आगे नहीं बढ़ पाया. नुकसान वहाँ भी हुआ.
दोनों काम में लगभग 15 लाख का नुकसान झेलना पड़ा. कुछ पैसा बाज़ार से भी लिए थे. रेस्त्रां का काम चल ही रहा था कि राउरकेला का ऑर्डर मिला था तो जॉब छोड़ कर अपना दोनों काम करने लगे. नहीं चलना था, सो नहीं चला और हम एकदम से सड़क पर आ गए थे.
नौकरी का ऐसा है कि आप एक बार ऊपर उठ गए तो उससे नीचे की नौकरी आपसे होगी नहीं. मेरे साथ यही हुआ था, पैसा था नहीं और नौकरी जनरल मैनेजर की मिल नहीं रही थी. 6 महिना बैठना पड़ गया दुबारा उसी स्टैण्डर्ड की जॉब को पाने में. एक-एक रूपये के लिए मोहताज हो गया था.
खैर अब नौकरी थी तो फिर से खुद को खड़ा करने का प्रयास चालू हुआ. तनख्वाह में से खुद और परिवार के खर्च को देखना था और साथ-साथ बाज़ार का कर्जा भी चुकाना था.
एक तो जैसे ही नौकरी मिली, तगादा वाले एकदम से सक्रिय हो गए. खैर देना था, सो एक सिस्टम बना के देना शुरू किया. जीवन बीमा की पालिसी का प्रीमियम तक जाना बंद हो गया था. केवल जीवन बीमा को ही तीन साल में नियमित कर पाया. कर्ज मुक्त हुआ साढ़े 3 साल में.
अपना काम का सपना था, सो फिर से एक बार उसको लेकर सोचने लगा और उस पर काम करने लगा. खाई भरने के बाद डेढ़ साल लग गए फिर से एक बार अपना काम (रेस्त्रां) शुरू करने में (केवल काम शुरू करने में, वहां से कमाने में नहीं) जो 6 महिने पहले शुरू किया.
अभी तो उसमें लगा ही रहा हूं, कमाया तो कुछ नहीं. हां एक उम्मीद है कि आने वाले साल में दो पैसा वहाँ से आने लगेगा. अब जब आने लगेगा तो ये पता है कि जो लगाया है, उसको निकालने में एक साल लग जाएगा और उसके बाद वहाँ के पैसे से कुछ अलग कर सकता हूं, परिवार के साथ-साथ किसी और के लिए कुछ कर सकता हूं.
कहने का मतलब है… मेरे छोटे से जीवन में मुझे गिर कर उठने में अगर 6-7 साल लग गए तो इतने बड़े देश को तो समय लगेगा. साढ़े 3 साल तो लग गए छोटा सा कर्ज चुका के खाई को भरने में जबकि वेतन ठीक-ठाक है.
पांच-साढ़े पांच साल तो लग गए फिर से एक नया काम करने में. पिछला काम बड़ा था, अभी तो बहुत छोड़ा सा रेस्त्रां खोला है क्योंकि वो ताकत जो पहले थी, वो नहीं बना पाया पांच-साढ़े पांच साल में.
कर के देखो तब समझ में आता है, गिर कर उठो तब समझ में आता है, वैसे बकवास करना हो तो कोई कुछ भी कर दो.
तीन साल में क्या हुआ? इस प्रश्न को ऊठाने वाला शायद सोने का चम्मच लेकर पैदा हुआ होगा या पैदा होते ही उसके हाथ में किसी ने सोने का चम्मच थमा दिया होगा.
सौ में से 5 लोग ही ऐसे होते हैं जो गिर कर दुबारा से उठ कर दौड़ने लगते हैं, 95 लोग बिस्तर पकड़ लेते हैं. ये 5 लोग भी एकदम से उठ कर दौड़ने नहीं लगते, it takes time… 3 साल में तो देश केवल खड़ा हुआ है, जैसा आपको चाहिए उसके लिए… सात साल इंतजार कीजिए, आपका भारत आपके सामने होगा.
जल्दबाजी है तो फिर से एक बार NDA की जगह UPA (कांग्रेस एण्ड कम्पनी) को ले आओ, देश तो छोड़ो आपको बेच खाएंगे.