यहाँ दीवारों पर लिखी जाती है
दोस्ती की दास्तानें…..
पसंद करवाई जाती है
और बांटी जाती है
दीवार दर दीवार ………….
कोई आता है
छोटे से झरोखे से
और पकड़ा जाता है छुपी संवेदनाओं की पुड़िया …..
सच्ची संवेदनाएं जिसे कोई ठिकाना नहीं मिलता
तो बना लेती है झूठमूठ के घर
और विचरती रहती है आभासी दीवारों पर
एक सच्चे स्पर्श की तलाश में…..
ये संवेदनाएं नहीं जानती
कि आभासी दीवारों पर स्पर्श नहीं मिलते
मिलती है फेक आई डी
मिलते हैं असहमतियों और अफवाहों के सरों से झड़ते बाल
फैले रहते है बेतरतीब से दीवारों पर
चुभते रहते हैं आँखों में
या जैसे कभी खाते समय थाली में दिख जाए
तो घिन्न आने लगती है …
और निकल जाती है मुंह से गलीज़ भाषा …
तभी अचानक कहीं से हवा का झोंका आता है
और उड़ा ले जाता है अफवाहों को…..
थोड़ी शान्ति सी दिखाई तो देती है
थोड़ा सा कोई अपनी दीवारों को
रंग जाता है प्रेम प्रतीक्षा और परमात्मा के रंग से……
तब लगता है चलो अब भी बाकी है थोड़ी सी गैरत
थोड़ा सा सब्र और सुकून और थोड़ा सा प्रेम…
तभी पता चलता है
रात के अँधेरे में
दीवार के नए गीले रंग पर
चिपका गया है कोई वही घिनौने बाल
जिसको निकालना अब किसी के बस का नहीं …
हर जगह से विरोध की आवाज़ उठती है…
और पता चलता है उस दीवार को ब्लॉक कर दिया गया है
आश्चर्य होता है…
दीवारें भी कैद होने लगी है दीवारों से ….
फिर किसी का रूठ कर चले जाना
ठीक भी लगता है कभी…
चलो इतनी भी आभासी नहीं है ये दुनिया
संवेदनाएं अब भी बाकी है…
और बाकी है उम्मीद
कि अनफ्रेंड कर देने का मतलब
ये नहीं कि रिश्ता ख़त्म हो गया…
ऊंगली में फंसी अंगूठी के निकल जाने पर भी
जैसे फंसा रह जाता है रिश्ता ऊंगली में ही
दीवारें चाहे सूनी हो गयी हो…
छोटे झरोखे अब भी बंद नहीं हुए हैं…
उन्हें मिल गया है एक नया आकाश…….
वहीं से सीढ़ी लगाकर फिर से कोई कूद पड़ा है दीवार पर
दोस्ती की नई दास्तानें लिखने के लिए
पसंद करवाने के लिए
और बांटने के लिए
दीवार दर दीवार ………….
- माँ जीवन शैफाली