बाहुबली : देश विरोधी ताकतों को परास्त करने का स्वर्णिम अवसर

बाहुबली ने बॉक्स ऑफिस कलेक्शन के अब तक के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए. क्या इसको लेकर कोई शोर हुआ? नहीं. किसी फिल्म के सौ करोड़ पार करने मात्र से उछलकूद मचाने वाले एक हजार करोड़ का आकड़ा पहली बार पार करने पर भी चुप है.

आश्चर्य होता है, घोर आश्चर्य. और तो और बाहुबली की ऐतिहासिक सफलता के बीच में अचानक दंगल के कलेक्शन की चर्चा की गई. इसमें मजेदार बात यह थी की दंगल के करोड़ो का कलेक्शन चीन में दिखाया गया. मानो चीन के खिलाड़ी आमिर खान से प्रेरित होकर अगले ओलिम्पिक में अपना पहला पदक जीतेंगे.

सब कुछ कितना हास्यासपद है. मगर भारत की जनता इन खबरों को पढ़ने के लिए मजबूर है. लेकिन इन बातों के पीछे के कारणों को नजरअंदाज कर देना ही हमारी सबसे बड़ी मूर्खता है. मीडिया में एक मिनट का स्लॉट या एक कॉलम की खबर के कितने पैसे लगते हैं, इसका हमें शायद अंदाज नहीं मगर प्रेस्टीट्यूट के नाम से बदनाम खबरवाली ने ये खबर मुफ्त में चलाई होगी, ऐसा हो नहीं सकता, उलटा बाहुबली की खबर ना बनने देने के भी उसने अलग से पैसे लिए होंगे.

और अगर पैसे नहीं लिए होंगे तो नेटवर्क का इस्तेमाल किया गया होगा. कोई पूछ सकता है की आखिरकार ये सब क्यों और किसलिए? क्योंकि भारत में मीडिया को पढ़ने-सुनने वालो में एक वर्ग सदा ही ऐसा होता है जो हर खबर को सच मानता है. ये खबरें आप के मन मस्तिष्क पर गहरे तक प्रभाव डालती है और धीरे धीर आपको नियंत्रित करने लगती हैं. ऐसी खबर निरंतर दिखाते रहने से खबर प्रभावित लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है. इस संख्या को बढ़ाना ही उद्देश्य है, उन लोगों का जो भारत के खिलाफ एक परसेप्शन बनाने का खेल बड़ी चतुराई से खेल रहे हैं.

यह परसेप्शन की लड़ाई, दशकों से लड़ी जा रही है. इसका सबसे खतरकनाक पहलू यह है कि हम-आम लोगों को इसका पता ही नहीं कि हम पर निरंतर आक्रमण हो रहा है, जिसमें हर पल हमारा बहुत कुछ तबाह किया जा रहा है.

यूं तो यह खेल उस समय से चल रहा है जब देश गुलाम हुआ था. मगर आजादी के बाद विशेषकर 1965 और `971 के युद्ध के बाद यह व्यवस्थित ढंग से रचा गया. इस खेल को खेलने में वामपंथियों का जिस तरह इस्तेमाल हुआ उस पर एक पूरी महाभारत लिखी जा सकती है.

स्कूल कॉलेज विश्वविद्यालय में इस विचारधारा के द्वारा हमारी समृद्ध संस्कृति को भ्रमित किया गया जिससे हम अपनी ही सभ्यता की नींव को कमजोर करें. जेएनयू से लेकर जाधवपुर यूनिवर्सिटी में भारत के टुकड़े के नारे यूं ही नहीं लगते. यह उसी षड्यंत्र का अंतिम लक्ष्य है जो इन गिरोह के सदस्यों के मुख से चीख चीख कर बोलता है.

हमारे अधिकांश प्रोफ़ेसर और लेखक मास्को के चक्कर लगाते रहे हैं. यह पब्लिक डोमेन में नहीं आता. क्या कोई इनसे पूछे कि मास्को में कला-साहित्य के नाम पर ऐसा क्या विशेष है? रूस को अपना दोस्त मानने वालों की अज्ञानता पर हँसी भी नहीं आती क्योंकि वे अपने प्रिय शास्त्री जी की संदिग्ध मौत तक को कितनी आसानी से भुला देते हैं.

आज भारत विरोधी षड्यंत्र का एक मुख्य केंद्र चीन बन चुका है. जो विश्वशक्ति बनने के अपने सपने पर तेजी से काम कर रहा है. पाकिस्तान को तो वो अपने कब्जे में पूरी तरह ले चुका है. एकमात्र हिन्दू राष्ट्र नेपाल को इस ड्रेगन ने निगल लिया और हम देखते रहे. मगर यह ना सोचे कि हम बचे हुए हैं. हमारे उपभोग का हर दूसरा सामान अब चीन से आ रहा है. हमारी अर्थव्यवस्था पर नियंत्रण के साथ साथ अब वो भारत के परसेप्शन की लड़ाई में भी अपनी सक्रियता बड़ा रहा है. जिसमें उसका साथ दे रहा है हमारा स्थाई पड़ोसी और उसका ए बी सी डी गैंग.

इनके कई स्लीपर सेल हमारे देश में अनेक मुखौटा लगा कर उनके काम को बखूबी अंजाम दे रहे हैं. ये राजनीति से लेकर धर्म कला साहित्य और बॉलीवुड में भी प्लांट किये गए हैं. और ये सब मिल कर देश के भीतर- बाहर से एक खतरनाक खेल खेल रहे हैं. ये दंगल की चीन में अचानक 500 करोड़ की कमाई उसी खेल का एक छोटा सा हिस्सा है. क्योंकि परसेप्शन की लड़ाई में वे नहीं चाहते कि 1000 करोड़ का आंकड़ा पार करने वाली एकमात्र भारतीय फिल्म वो हो जिसमें भारत के गौरवशाली इतिहास का प्रस्तुतिकरण हो. इसलिए दंगल को भी 1000  का आंकड़ा पार करवाया गया और उसकी चर्चा अधिक की गयी. उसमें भी दंगल से अधिक आमिर का परसेप्शन बनाये रखा गया जो उनका ब्रांड एम्बेसडर बन कर आगे भी उनके काम आता रहेगा.

बाहुबली में हिन्दुस्तान की अनेक सांस्कृतिक व परम्पराओं का भव्य प्रदर्शन किया गया है, जिसे हमारा दुश्मन कभी बर्दाश्त नहीं कर सकता. वो कभी नहीं चाहेगा कि देश की जनता की निगाह में कोई ऐसी फिल्म बसी रहे जो उन के आत्मविश्वास और जोश को बढ़ाये और भारत की सभ्यता की जड़ें मजबूत हो.

हमारे नैतिक और सांस्कृतिक मूल्यों पर बॉलीवुड ने कैसे धीरे से प्रहार कर नुकसान किया है, यह हम कम ही समझ पाते हैं. तीन बौने खानों का कद लार्जर देन लाइफ बना देना कोई उनकी मात्र योग्यता के कारण नहीं हुआ, ना ही यह कोई महज संयोग है. फिल्म पीके के द्वारा हिन्दुओं की कुरीतियों की बात करने वाले तथाकथित मिस्टर परफेक्शनिस्ट अगर ट्रिपल तलाक और हलाला पर चुप है, फिर भी आप इस दोगले कागजी समाजसुधारक को समझ नहीं पाते हैं तो आप मूर्ख हैं. और मूर्ख की चिंता करना उससे बड़ी मूर्खता है.

अब तक पीके ही सबसे सफल फिल्म के शिखर पर विराजमान कर रखी गई थी अर्थात शिव को दूध पिलाने वाले की हँसी उड़ाने वाला आप के मन मष्तिष्क पर राज कर रहा था, अब उसकी जगह कोई शिव की पूजा करने वाला बाहुबली ले ले, यह उन षड्यंत्रकारी लोगों को कैसे मंजूर हो सकता है. उनका दशकों से जमाया गया सारा खेल ही मिनटों में खत्म हो जाए वो यह कैसे बर्दाश्त कर सकते हैं.

ऐसे में जब आज अब पीके को तो फिर से पिक्चर हॉल में चलाया नहीं जा सकता तो उन्होंने दंगल को चला दिया, वो भी चीन में, क्योंकि भारत के सिनेमा घरों से दंगल को उतरे हुए भी महीनों हो गए थे. और आननफानन में चीन में उसके 500 करोड़ के कलेक्शन की चर्चा करा दी गई.

जिसका परिणाम यह हुआ कि अब बाहुबली अकेले 1000 करोड़ की फिल्म नहीं रही. अब क्या आप चीन के बॉक्स ऑफिस में कलेक्शन गिनने जाएंगे? नहीं. जिस देश से कोई सामान्य खबर भी बाहर नहीं आ पाती वहाँ हमारे एक फिल्म के कलेक्शन की खबर तुरंत आ जाती है, क्या मजेदार खेल है, वाह. वो तो इस गिरोह का बस नहीं चल रहा वरना आज ये दंगल को बाहुबली से अधिल कलेक्शन दिखा कर नंबर एक कर दें.

दो चार हजार रूपये का कलेक्शन दिखाना इनके लिए बाएं हाथ का मैल है. अब इनकी भी मजबूरी है क्योंकि जमीनी हकीकत कुछ और बयान कर रही है और बाहुबली भारत में ही नहीं विश्व के अनेक देशों में तीसरे सप्ताह भी फुल चल रही है. ऐसे में इन्होंने कुछ समय के लिए चुप रहना ही ठीक समझा और बाहुबली की चर्चा ना होने देना ही अपनी रणनीति का हिस्सा बनाया. अब वे सही समय का इंतज़ार करेंगे.

ऐसे में कोई पूछ सकता है कि एक आम आदमी क्या करे? और क्यों? अब इस क्यों का जवाब तो संक्षिप्त में सिर्फ इतना कहा जा सकता है कि अरे भाई आप की लड़ाई कोई और लड़ेगा क्या? वैसे भी आपको अगर अपनी सांस्कृतिक विरासत और पारम्परिक स्वतंत्रता से प्यार है, अपनी मिट्टी की सुगंध में ही जीना-मरना चाहते हो तो तो आप को उसके लिए सतत संघर्ष करना होगा. वरना आप जल्द ही एक कट्टर विचारधारा, क्रूर शासन व्यवस्था या कबीली धर्म के आतंक में जीने के लिए तैयार रहें.

अब सवाल उठता है कि इस परसेप्शन की लड़ाई आखिर एक आम आदमी कैसे लड़े? इस युद्ध में लड़ने के लिए सीमा पर जाने की जरूरत नहीं ,बन्दूक चलाने बम फोड़ने या सीने पर गोली खाने की भी जरूरत नहीं, बस दुश्मन को उसी के खेल में उसी के अस्त्र शस्त्र से मारना होगा. तो क्यों ना जिन्होंने बाहुबली अब तक नहीं देखी है वो सपरिवार देखें, और जिन्होंने पहले ही देख रखी है वो दूसरी तीसरी चौथी बार देखें. और इस परसेप्शन के युद्ध में अपनी सक्रिय भूमिका निभाएं.

बाहुबली को उस ऊंचाई तक पहुंचा दें कि कोई रईस या सुलतान चाहे जितना पीके भी दंगल करे उस तक ना पहुंच पाए. वैसे भी लगता है कि बाहुबली अगर 2000 करोड़ का आंकड़ा पार कर जाये तो कोई आश्चर्य नहीं होगा.

हमें ऐसा होने देने में मदद करनी चाहिए, क्योंकि अभी कोई और नहीं है जो वहां तक जल्द पहुंच सके. यह हमारे परसेप्शन की लड़ाई की पहली जीत होगी, जिसकी गूँज कई दिनों तक बॉलीवुड के कुछ रहस्यमयी परदों को चीर कर परदे के पीछे बैठे शैतान के कानों में बजती रहेगी.

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