कल अंतर्राष्ट्रीय कोर्ट द्वारा दिए गए अंतरिम फैसले पर जहाँ कुलभूषण जाधव की फांसी पर रोक लगी है, वहीं पर भारत सरकार की पाकिस्तान पर कूटनीतिक जीत हुयी है. मेरा अपना मानना है कि हेग में चल रहा मुकदमा सिर्फ कुलभूषण जाधव के सकुशल भारत वापस ले आने का मामला नहीं है बल्कि भारत के इर्द गिर्द तेजी से बदलते सामरिक समीकरणों व वैश्विक जगत में उभरे नए शक्ति संतुलन में अपनी जगह खोजने का मामला है.
कुलभूषण जाधव अपने में महत्वपूर्ण नहीं है लेकिन वह एक ऐसे काल में, भूगोल के उस भाग से उभर कर आये है जहाँ से नए इतिहास को लिखा जा रहा है. आज से एक वर्ष पूर्व जब पाकिस्तान ने विश्व के सामने कुलभूष्ण जाधव को पेश किया था तब वह एक तथाकथित भारत का रॉ के एजेंट थे लेकिन आज कुलभूषण जाधव के आगे से, रॉ शब्द ही गायब हो गया है.
इसको यदि वैश्विक कूटनीति के चश्मे देखा जाय तो यह भारत की बहुत बड़ी जीत है. आज पाकिस्तान के इस दावे का भी कोई महत्व नहीं रहा कि उसने कुलभूषण को ईरान बलूचिस्तान की सीमा पर पकड़ा है और कुलभूषण जाधव, बलूची विद्रोहियों को धन दे रहे थे. आज सिर्फ इस बात का महत्व है कि कुलभूषण जाधव के साथ पाकिस्तान ने क्या किया है और भविष्य में वह क्या करेगा?
आज कुलभूषण जाधव, पाकिस्तान की सत्ता के सबसे महत्वपूर्ण स्तंभ ‘सेना’ के लिए एक ऐसा कौर बन गए है जिसको खाने से, पाकिस्तान पर पड़ने वाले भारत प्रयोजित अंतर्राष्ट्रीय प्रतिप्रभाव का अन्दाज़ा पाकिस्तान को नहीं है क्योंकि इसका समावेश पाकिस्तान की सेना के परिकलन में कभी नहीं था.
यदि पाकिस्तानी सेना की कोर्ट इस कौर को नहीं खाती है और हेग की अंतराष्ट्रीय कोर्ट के निर्देशों को मान लेती है तो पाकिस्तानी सेना की पाकिस्तानी जनता के सामने भद्द पिटेगी. जिसका परिणाम यह होगा कि पाकिस्तान का राजनैतिक संवर्ग, सत्ता से सेना की गिरफ्त को कमजोर करने के लिए सेना पर हावी होने का प्रयास करेगा. जिसे पाकिस्तान की सेना कभी भी स्वीकार नहीं करेगी क्योंकि यह स्वयं सेना के जरनलों के अस्तित्व के लिए खतरा होगा.
कुलभूषण जाधव के प्रकरण को तटस्थ हो कर समझने के लिए वैसे तो बहुत कुछ इस पर लिखा जा सकता है लेकिन फ़िलहाल आज के वक्त सिर्फ पाकिस्तान पर नजरे गड़ाये रखनी है क्योंकि जाने अनजाने में कुलभूषण जाधव एक कैदी से, ‘भारत-पाकिस्तान-बलूचिस्तान-चीन-ईरान-अफगानिस्तान’ की रक्तरंजित शतरंजी बिसात पर शह देने वाले भारतीय मोहरे बन चुके है.