उत्तर प्रदेश के संविदा शिक्षामित्रों की पूर्णकालिक अध्यापक के पद पर नियुक्ति (समायोजन शब्द फर्जी है यहां) के मामले में अगर सुप्रीम कोर्ट कोई खिलाफ फैसला देता है… इनकी नियुक्ति को असंवैधानिक घोषित करते हुए रद्द करता है, फिर से संविदाकर्मी बनाता है.
तो ऐसा कोई खिलाफ फैसला आने पर जो भी शिक्षामित्र… दुर्भाग्यपूर्ण दुखद आत्महत्या करें… या वे सभी जो पहले दौर के फैसले के बाद से अब तक अपनी जान दे चुके हैं…
…उन सभी की हत्या का मुकदमा उत्तर प्रदेश शासन के तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, तत्कालीन बेसिक शिक्षा मंत्री, प्रमुख सचिव बेसिक सहित समाजवादी पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष और अब मार्गदर्शक श्री मुलायम सिंह यादव के खिलाफ दर्ज किया जाना चाहिए.
शासन स्तर पर यह सुनियोजित सामूहिक हत्या का षड्यंत्र है जो पिछली समाजवादी सरकार ने किया. मास किलिंग है यह.
सुप्रीम कोर्ट में पैरवी कर रहे सभी वकील भी जानते हैं कि विधिक आधार पर वे केस हार रहे हैं. इसका प्रमाण है वकीलों का अंतिम सुनवाइयों के दौरान ‘मर्सी’… दया आदि जैसे शब्दों का उपयोग करते हुए कोर्ट से फैसला सुनाने की प्रार्थना करना.
तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार और नौकरशाह अच्छी तरह जानते थे कि यह समायोजन उर्फ नियुक्ति असंवैधानिक है. शिक्षा के अधिकार कानून के मूल प्रोविजन्स के खिलाफ है.
– यह कोई समायोजन हो ही नहीं सकता था किसी आधार पर, इसलिए नियुक्ति की जगह समायोजन शब्द का खेल ही गलत. नियुक्ति शब्द इस लिए नहीं दे सकते थे क्योंकि उसके किये क्वालीफाई नहीं करते थे वे लोग जिन्हें फर्जी खेल में उलझाना था.
– सबसे बड़ा संवैधानिक लोचा : इन 1 लाख 72 हजार नियुक्तियों में किसी भी तरह के आरक्षण नियम का पालन नहीं किया गया.
कहां गयी जातिगत राजनीति की दूकान चलाने वाले आरक्षण समर्थनबाजों की असली नीयत? लगभग 2 लाख सरकारी नौकरियां बिना आरक्षण के? किसने किया अवसर में समानता के संवैधानिक अधिकार का हनन?
आरक्षण के खात्मे की शुरुआत किसने की देश में? मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी की सत्ता ने. अखिलेश यादव की सत्ता ने.
पूर्व की दुखद मौतों पर दुख के साथ शिक्षामित्रों से यह अपील करना चाहूंगा कि मरना कोई निदान नहीं है. आप के साथ दो स्तरों पर धोखा हुआ है.
– आपके संवर्ग के नेताओं ने आप सभी को लगातार भ्रम में रखा और खुद का कैरियर उच्चतम बना ले गए. देखना हो तो कभी राजधानी आकर अपने यूनियन के नेताओं के घर चाय पी जाइये, क्योंकि वे तमाम रुपये और उपलब्धियां आपके ही चंदे हैं.
– तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार ने केवल वोट के लिए जानबूझ कर असंवैधानिक नियुक्ति कर आपकी गर्दन में मौत का फंदा डाला है. तत्कालीन नौकरशाहों ने इसमें सहयोग किया है.
सवाल ऐसे बहुत से हैं याद दिलाने को इसी विषय पर, लेकिन अब समय आगे बढ़ने का है. संतोष है कि यूपी बीजेपी ने अपने चुनावी संकल्प पत्र के पेज संख्या 10 पर, शिक्षामित्रों की समस्या हेडिंग के तहत वादा किया : “सरकार बनने के तीन महीनों के भीतर सभी शिक्षामित्रों के रोजगार समस्या को न्यायोचित तरीके से सुलझाया जाएगा”.
वर्तमान सरकार ने कोर्ट से अंतिम निर्णय की प्रतीक्षा के बीच शिक्षामित्रों के मानदेय को साढ़े तीन हजार से बढ़ा कर 10 हजार रुपये कर दिया है. कोर्ट के अंतिम फैसले की घड़ी के बीच तीन महीने के वादे की समय सीमा के भीतर ही इसका निपटारा दिख भी रहा है.
कोर्ट का फैसला आने को है. इस बार दिल मजबूत करियेगा और खिलाफ फैसला आने की सूरत में भी हारियेगा मत. इस 10 हजार रुपयों के मानदेय से फिर लड़ने और इस मानदेय को एक अच्छे गुजारा-खर्च लायक कराने की मांग करियेगा सरकार से.
संवैधानिक मान्यताओं और कानूनों के पालन के साथ मानवीय भावना से काम करती यह सरकार और इसके मुखिया जरूर आपकी मदद को आगे आएंगे. इस सकारात्मक पहल के बाद आपको इसका भरोसा होना ही चाहिए.
हां…. यदि आप वर्तमान सरकार से खुद के लिए किसी असंवैधानिक पहल की उम्मीद करेंगे तो आपको निराशा होगी.
इस सरकार ने एक संवैधानिक व्यवस्था का पालन कराते हुए अवैध बूचड़खानों की बंदी से उन तमाम का भोजन बंद करा दिया… जो अवैध तरीके से खाना हासिल करते थे : वह सरकार किसी का कमाना…. असंवैधानिक और अवैध तरीके से जारी नहीं रख सकती, न ही कोई मदद करेगी. न ही उसे करना चाहिए.
बेहतर है अपना दिल मजबूत करिये, धोखों-छल-प्रपंचों को याद करिये और अपने हत्यारों को उनकी वाजिब सजा तक पहुंचाने की मुहिम में लगिये.
मरिये नहीं… हर एक ऐसी दुखद मौत पर… आपको इस हाल तक ला खड़ा करने वालों पर हत्या के मुकदमे की आवाज़ उठाइये.