सुबह सुबह रीमा लागू की मृत्यु का समाचार सुनते ही अधिकतर लोगों के मन में उनकी की जो तस्वीर उभरी वो सूरज बड़जात्या कैम्प की फिल्मों में सलमान खान की माँ की थी.
निरूपा रॉय जिस तरह से अमिताभ बच्चन की माँ के रूप में सिनेमा जगत में जानी जाती थी वैसे ही रीमा लागू सलमान खान की माँ के रूप में जानी जाने लगी थीं.
लेकिन उनकी मृत्यु की खबर सुनकर जो मेरे मन में उनकी छवि उभरी वो “हम आपके हैं कौन” फिल्म की उस समधन की थी, जिसके सामने समधी बने आलोक नाथ गाना गाते हैं “आज हमारे दिल में अजब ये उलझन है, गाने बैठे गाना सामने समधन है”
हमारे समाज में समधी के सामने समधन की भूमिका सम्माननीय होने के साथ दूल्हे की माँ होने के गौरव के साथ देखा जाता है. पहली बार इस फिल्म में सूरज बडजात्या ने विवाह के माहौल में जीजा-साली, या देवर-भाभी की छेड़छाड़ के साथ समधी के मन में समधन के लिए उपजे सहज आकर्षण को बहुत सुन्दर रूप में प्रस्तुत किया.
और सबसे बड़ी बात यह होती है कि डायरेक्टर के मन के भाव को जब कलाकार हूबहू उतारने में सफल हो जाता है तो परदे पर उस सीन से उपजी भावना सीधे दर्शकों के दिल में उतरती है. ऐसा ही जादू रीमा लागू ने उस गीत में अपने अभिनय से जगाया था.
उनके चेहरे की प्राकृतिक सौम्यता के साथ जब समधी के मन का भाव जुड़ा तो वो मुझे उस फिल्म की अभिनेत्रियों माधुरी दीक्षित और रेणुका शहाणे से कहीं … कहीं अधिक सुन्दर, आकर्षक और यदि इसे अन्यथा न समझा जाये तो किसी हद तक कामुक भी लगी थीं.
बाकी उन्होंने कई फिल्मों और टीवी सीरियल में भी काम किया जिसमें उन्होंने कुछ कॉमेडियन टाइप की भूमिका भी निभाई लेकिन सलमान खान से मात्र सात वर्ष बड़ी रीमा जब फिल्म “हम साथ साथ है” में उनकी माँ बनी तो सच में माँ ही लगी. फिल्म में सलमान का किरदार जिस शर्मीले युवक का था वो उस फिल्म में उनकी माँ बनी रीमा से ही मिला हो ऐसा अनुभव हुआ.
फिल्म को रामायण की तर्ज़ पर राम लक्षमण के वनवास की कहानी के रूप में प्रस्तुत किया गया था, जिसमें सलमान को भरत की भूमिका दी गयी थी. राम की अनुपस्थिति में जैसे भरत कभी उनके सिंहासन पर नहीं बैठे वैसे ही सलमान ऑफिस में, अपने बड़े भाई (मोहनीश बहल) की कुर्सी पर नहीं बैठते.
भाई के लिए ऐसे समर्पण से, माँ बनी रीमा लागू के मन में उपजे अंतर्द्वंद्व को पूरी जीवन्तता के साथ जीने वाली अभिनेत्री का इतनी जल्दी इस संसार से चले जाना वास्तव में दुखद है.
विनोद खन्ना के बाद रीमा लागू की मृत्यु वास्तव में बॉलीवुड के लिए उस नींव का कमज़ोर होना है जिस पर हमारा सिनेमा जगत खड़ा है. क्योंकि आने वाले समय में अभिनेता तो बहुत जन्मेंगे लेकिन अभिनय से वास्तविकता को जन्म देने वाले कलाकार नहीं.