जब हजरत इब्राहीम ने अपनी बीबी/ लौंडी हाजरा को मक्का में छोड़ दिया तो उनके जाने के बाद हाजरा के पास बचा सारा पानी खत्म हो गया और उनका दूध-पीता बच्चा इस्माईल प्यास से तड़पने लगा.
माँ उठ खड़ी हुई, चारों ओर देखा. कहीं से भी पानी मिलने की गुंजाइश न देख कर वो पास के एक पहाड़ सफा पर चढ़ गईं पर वहां पानी न मिला तो वो एक वादी में उतर गईं और भागती हुई वहां से एक दूसरी पहाड़ी मरवा पर चढ़ गई ताकि वहां कोई पानी का सोता मिल सके मगर पानी वहां भी न था.
इस क्रम में उन्होंने सात बार दोनों पहाड़ी के दरम्यान चक्कर लगा लिये. (आज भी जब मुस्लिम हज करने जाते हैं तो हाजरा के इन्हीं चक्करों की याद में सात दफ़ा सफा और मरवा पहाड़ी के बीच चक्कर लगाते हैं)
मुस्लिम कथाएं कहतीं हैं कि बुरी तरह थक के जब हाजरा मरवा पहाड़ी से उतर रहीं थीं तो उन्हें अपने बेटे के पैरों के पास पानी का एक चश्मा बहता नज़र आया जिसे एक फ़रिश्ते जिब्रील ने अपने परों (पंखों) से खोदा था. ये पानी ही आज आबे-जमजम (Aab E Zam Zam) नाम से मशहूर है. हर हाजी इसका सेवन जरूर करता है.
पानी मिला तो फिर दोनों माँ-बेटे वहीं आबाद हो गये. इसी क्रम में यमन से निकला जुरहम नाम का एक कबीला पानी की तलाश में भटक रहा था. जब ये कबीला मक्के के पास पहुँचा तो उन्होंनें वहां कुछ पक्षी उड़ते देखे.
रेगिस्तानी इलाकों में पक्षियों के उड़ने का अर्थ है कि आसपास कहीं पानी मौजूद है. वो लोग बड़े अचम्भित हुए कि इन इलाकों में तो कभी कोई जल-स्रोत नहीं था फिर अचानक ये परिंदे यहाँ कैसे उड़ रहे हैं.
फिर वो उन पक्षियों की निशानदेही करते हुए उस जगह तक पहुँच गये जहाँ जमजम का कुआँ जाहिर हुआ था. वहां पहुँचे तो देखा कि वहां एक बूढी महिला अपने एक बेटे के साथ हैं.
वो वहां आये और आकर हाजरा से कहा कि हमारा ये कबीला यमन से चला है, कई महीनों से पानी की तलाश में निकला हुआ है. अब हमारी हालत पस्त है इसलिये अगर आप हमें अनुमति दें तो हम यहाँ आबाद हो जायें.
हाजरा ने उनको ये कहते हुए जमजम के पास आबाद होने की इजाजत दी कि पानी पर मिल्कियत आप लोगों की नहीं बल्कि मेरी, मेरे बेटे की और हमारी आने वाली नस्ल की होगा और पानी इस्तेमाल करने के एवज में आप हमें कुछ मुआवजा भी देंगे.
जो लोग इस्लाम पूर्व अरब को जाहिल कहते हैं, उपरोक्त घटना उनके झूठे दावों का मुंहतोड़ जवाब है.
[अरब का वो इतिहास जिसे हम सबको जानना चाहिये]
जुरहम कबीले में सैकड़ों लोग रहे होंगे और इधर एक अकेली बूढी औरत अपने छोटे बेटे के साथ थी. जुरहम कबीले वाले चाहते तो उन्हें वहां से मारकर भगा देते और पानी पर कब्ज़ा कर लेते पर इसके विपरीत उन्होंने जो सभ्य आचरण प्रदर्शित किया उसकी मिसाल अन्यत्र मिलनी मुश्किल है.
खैर, जुरहम कबीला वहां आबाद हुआ फिर उसी कबीले के एक लड़की के साथ इस्माइल का विवाह हुआ. बाद में इस्माइल ने जब दूसरा विवाह किया तो उसके लिये भी उन्होंने जुरहम कबीले से ही लड़की ली. यानि इस्माइल की दोनों ही पत्नियाँ यमन के कबीले जुरहम से थी.
इस्लामिक इतिहासकार तबरी ने अपने इतिहास ग्रन्थ तारीखे-तबरी में बताया है कि इस्माइल की दूसरी पत्नी जुरहम कबीले के सरदार मजाज़-बिन-अम्र की बेटी थी जिससे उन्हें 12 बेटे हुए थी.
इन्हीं के बारह बेटों से जो खानदान आगे बढ़ा वो मुस्तारेबा-अरब कहलाये. इसी वंश में पैगम्बरे-इस्लाम मुहम्मद साहब भी पैदा हुये. यानि आप इस्माइल वंशी होने के चलते मुस्तारेबा-अरब थे. मुस्तारेबा का अर्थ है कि वो लोग जो मूल अरब नहीं थे और जिन्होंने दूसरों के संसर्ग से अरबी सीखी.
नोट- उपरोक्त तथ्य हम हिन्दुस्तान के लोगों के लिये इसलिये तवज्जो-तलब है क्योंकि यहाँ हम हिन्दुओं के पूर्वजों के बारे में बड़ा शोर बरपा किया जाता है कि तुम लोग तो भारत के मूल निवासी हो ही नहीं क्योंकि तेरे पूर्वज तो कहीं कैस्पियन सागर या मध्य-पूर्व से आने वाले प्रवासी थे जिन्होंने यहाँ कब्ज़ा कर लिया था. आर्य-द्रविड़ मिथक का पर्दाफ़ाश करने वाले लोग इस जानकारी का समुचित उपयोग कर सकते हैं.
क्रमशः