पिछले वर्ष भी ऐसा ही कुछ लिखा था वैसा ही आज 16 मई 2017 को लिखूंगा क्यूंकि मैं उससे बेहतर अपने उद्गारों को व्यक्त नही कर सकता हूँ.
मैंने अपने से दो पीढ़ियों को अपने साथ जिस सपने को देखा था उसकी आज तीसरी वर्षगांठ है. मैं और मेरे आगे की पीढ़ी भाग्यशाली है कि उसने एक बदलते हुए समय को अपनी आँखों से देखा है. यह काल ऐतिहासिक है. इस काल को भविष्य भारत के पुनरुत्थान के काल के रूप में देखेगा.
मैं तीन वर्ष पूर्व के दिन की याद करता हूँ तो मेरी आँखों से अश्रु छलक जाते है. मैं अकेला नही हूँ, मेरे जैसे बहुतेरे है जिन्होंने उस दिन भावनाओं को इसी तरह व्यक्त होने दिया होगा.
यह अश्रु जहाँ हमे उस दिन का आह्लाद याद हैं वही हमको चेतावनी देते हुए हमारी कहानी भी बताते हैं.
इन अश्रुओं का यह संकल्प है कि यह हमारे साथ ही रहेंगे, लेकिन वह हर्ष-उल्लास के साथ हमारी आँखों को भरेंगे या फिर पिछले 1000 वर्षो की गुलामी की ज़लालत का संताप लिए आँख भरेंगे, अश्रुओं ने इसका चुनाव हम पर छोड़ दिया है.
अश्रु निर्मोही होते हैं.
इन 3 वर्षो में इस एक शख्स ने जहाँ तमाम जलालतों, ईर्ष्याओं और आरोपों के बीच, बिना संयम खोये अपने सपने के भारत की परिकल्पना के लिए, कर्मो का अश्वमेघ छोड़ा है, वहीं इस शख्स के समर्थको ने भी अश्वगति से इन्ही सब विशिष्टताओं का परित्याग भी किया है.
इन तीन वर्षो में, जहाँ विपक्ष अपने निकृष्टम स्तर पर पहुंचा है वहीं उसके समर्थको ने अहंकार वश, जातिगत हीनता, खानपान की शुद्धता, बौद्धिकता की हेकड़ी और आलोचना की बाध्यता को कुछ इस तरह अपने अन्तःकरण में उतारा है कि उन्होंने राष्ट्रवादिता और सनातनी धर्म को पदच्युत कर, बहुत वाहियात बातों को, युवाओं, बुजर्गो, पढ़े लिखे और विशेष पढ़े लोगो ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का पर्यायवाची बना डाला है.
मेरा स्वप्न उस शख्स का स्वप्न है जिसका शीश लोकसभा की सीढ़ियों पर झुका था. यह वही शख्स है जिसके स्वप्न कभी आपके भी थे लेकिन आप शायद अपने स्वप्नों के प्रति उदासीन हो गये हैं.
उसका कारण शायद यह है कि लोग स्वप्नों को यथार्थ की भूमि में न तौल कर अपनी खुद की मानसिकता से तौलने की भूल कर बैठे है. हमें इस गिरवी रही मानसिकता से निकल के आगे बढ़ना है क्योंकि यही राष्ट्रवाद है और यही सनातन के अवशेष बचा पायेगा.
जिस तरह हमारी सारी उंगलियां बराबर नहीं होती हैं उसी तरह हम सभी के कष्टों और प्रसन्नता की सीमा भी एक नही होती है.
जिस तरह सब काल एक सा नहीं रहता है वैसे ही सब सम्बंध भी एक से नहीं रहते हैं, इसलिए इस बात के तुलनात्मक अध्ययन में अपने को व्यर्थ मत उलझाइये कि उस शख्स के सपनों से आपकी मानसिकता कितना जुदा है.
आप तुलना मत कीजिये, आगे बढ़िए. आपने जो सपने देखे थे, उनको देखते रहिये क्योंकि उसके साथ ही आपका उत्थान जुड़ा हुआ है.
मेरा सभी राष्ट्रवादी विचारधारा के समर्थकों से यही निवेदन है कि मैं, आप हीं हो सकता हूँ और आप मैं नहीं हो सकते हैं इसलिए उजाले में अँधेरा करके मुझे और मेरे एजेंडे को ढूंढने की कोशिश मत कीजिये क्योंकि वहां देखेंगे तो आप को सिर्फ अंधकार मिलेगा.
आप मुझे छोड़िये, क्योंकि न आपको मेरी आवश्यकता है और न मुझे आपकी है, आप को तो बस, सिर्फ इस शख्स को ही पकड़े रहना है क्योंकि यही महत्वपूर्ण है. यही हमारी और आपकी आगामी पीढ़ी के लिए, उसकी गुलामी और आज़ादी के बीच की लकीर है.