किसी बहुत पुरानी फ़िल्म में एक गाना है. लता जी ने गाया है.
महलों का राजा मिला, कि रानी बेटी राज करे..
ख़ुशी ख़ुशी कर दो बिदा, कि रानी बेटी राज करे..
ये गाना हमारे यहां पूर्वांचल में शादियों में ladies संगीत में भी खूब गाया जाता है.
महलों का राजा मिला के रानी बेटी राज करै
हाली बेकन कइ दा बियाह कि रानी
बेटी राज करै ……..
यूँ भी हिन्दुस्तानी शादियों में दूल्हे का रंग रूप पहनावा शेरवानी, पगड़ी, घोड़ी, तलवार, आव भगत, खातिरदारी… एक दो दिन के लिए कुछ ऐसा ट्रीटमेंट ऐसा फील दिया जाता है मानो दूल्हे राजा, सचमुच के राजा हों.
रानी जी को बियाह के ले जाएंगे और रानी जी वहाँ राज करेंगी. ये नहीं मालूम कि कल तक उसको कभी कायदे से चटनी भात नसीब न हुआ और ये जो रानी साहिबा आज बियाह के जा रही हैं इनको जहां दो बच्चे हुए तो पहले इनका हीमोग्लोबिन डाउन हो के 6.4 होगा और फिर 4 साल में TB हो जायेगी….
फिर भी… फिर भी… कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो अपनी शादी में, दो चार दिन के लिए ही सही अपने ससुर द्वारा तिलक में चढ़ाये गए पैसों से ही सही, सचमुच खुद को राजा, राजकुमार समझ लेते हैं.
वो ये भूल जाते हैं कि ये जो आव भगत हो रही है न ये बस एक दो दिन की है. उसके बाद तो वही रोना है. वही सूखे भात के साथ चटनी के लाले पड़ने वाले हैं. पर फिर भी मुझे ताज्जुब होता है, क्या वाकई लोग मान लेते हैं? या लडकियां वाकई ये ख्वाब ले के पलती हैं, महलों का राजा मिलेगा, रानी बेटी राज करेगी.
इसे कहते हैं ख़्वाबों की एक Utopian दुनिया में जीना. जहां एक अलादीन का जिन्न होगा. जो
दीपक को पत्थर पे रगड़ते ही प्रकट होगा और कहेगा क्या हुक्म है मेरे आका?
जाओ अच्छे दिन ले के आओ, अभी लाया मेरे हुज़ूर… सिर्फ 3 साल में अच्छे दिन.
अच्छे दिन ठेले पे बिकते हैं क्या बे?
भैया ज़रा दो दर्जन अच्छे दिन देना, देखो छाँट के देना, कहीं बीच में खराब दिन मत डाल देना?
आपको 3 साल में अच्छे दिन चाहिए. बेटा अच्छे दिन लाने के लिए लोग बाग़ 10 -20 साल दिन रात मेहनत करते हैं. रात रात भर जाग के पढ़ते हैं. सीखते हैं. खून पसीना बहाते हैं. पीढियां गल जाती हैं. चोटी के पसीने से एड़ी भीग जाती है. 100 – 100 बार गिरता पड़ता है ठोकरें खाता है, असफल होता है, उन ठोकरों से सीखता है और हार न मानते हुए फिर जूझ जाता है. लहू जब आँख से टपकता है तब आते हैं अच्छे दिन.
मोदी जी मैंने आपको वोट दिया 3 साल हो गए. लाइए मेरे अच्छे दिन. करना धरना कुछ नहीं, अच्छे दिन आने वाले हैं.
सुनो ये सरकार लूटपाट तो नहीं कर रही है न, देश का अहित तो नहीं कर रही न, फिर ये रोना क्यों? जो आहिस्ता चलते हैं वो दूर तक चलते हैं, तेज भागने वाले अक्सर आधे रास्ते में ही गिर पड़ते हैं.
अपनी एक मित्र की बात दोहरा रहा हूँ कि वैसे भी मैने कांग्रेस मुक्त भारत देखने के लिये मोदी को वोट किया था और करता रहूंगा.