पिछले वर्ष मैं 6 जून को मकाऊ (चीन) में था पर्यटन के लिए. वहाँ हमने एक अद्भुत लाइव शो देखा जिसका शब्दो मे वर्णन संभव नहीं है. उस शो को देखकर ज्यादातर लोगों ने अपने पेशेवर कैमरे और मोबाइल स्वतः बंद कर लिये और उस शो के कलाकारों की कला के आगे नत हो गए.
मैंने भी अपने परिवार को जीवन में वह शो साक्षात दिखाने का प्रण लिया और एक पिक्चर तक उसका परिवार के किसी सदस्य को नहीं दिखाया.
इसे कहते है कलाकार द्वारा हृदय जीत लेना. लंबी यात्रा की थकान से चूर नेत्र पूरे शो के दौरान हिल तक ना पाये.
यही कुछ आज बाहुबली के विषय मे देख रहा हूँ जब लोग उस रहस्य को और पूरी मूवी को सिनेमा हॉल में जाकर देखने को प्रेरित कर रहे हैं. यही वह सम्मान है जो एक सच्चे कलाकार को प्रशंसक द्वारा दिया जाता है.
शायद आपको मेरा लेख अतिशयोक्ति पूर्ण लगे लेकिन मैं आपसे स्पष्ट कह देना चाहता हूँ कि यह हमारे सनातन मनोविज्ञान के लिए एक संजीवनी है.
यह फ़िल्म नहीं एक सांस्कृतिक उत्सव है.
श्रेष्ठ, सुविकसित, स्वर्णिम इतिहास का
साहित्यिक उत्कृष्टता का
उन्नत सभ्यता का
आध्यात्मिक समृद्धि का
योद्धिक पुरुषार्थ का
समग्र सनातन जीवन के अर्थ का
संस्कृत के उत्कर्ष का
विजय के चिर स्वभाव का
हाँ हिन्दू भाइयों यह एक उत्सव है, इसे उत्सव के रुप में पूर्ण हर्षोल्लास से मनाइए, इस स्वर्णावसर को सिद्ध करके इतिहास में दर्ज हो जाइए.
गर्व कीजिये कि यह मूवी
विनायक को विघ्नहर्ता मानती है
हल्दी की वर्षा को सुखकर्ता मानती है
राम को नमन करती है
कृष्ण का वंदन करती है
शिव का अभिषेक करती है
शक्ति का सत्कार करती है
धर्म की विजय को स्वीकार करती है
रामायण पर विचार करती है
महाभारत को तदाकार करती है
रावण का दहन करती है
स्त्री को सौभाग्य सम चयन करती है
मत विचार कीजिये कि वे आपसे क्या प्राप्त कर रहे है बल्कि यह सोचिये कि आपको यह उत्सव क्या दे रहा है?
उत्सव है तो अर्थ का उपभोग मांगेगा ही, उल्लास के साथ इसका वरण करें, एक बार देखें, दो बार देखें और सक्षम है तो बार बार देखें.
यह सनातन के उत्कर्ष के दिवास्वप्न की गाथा है, इसकी अलौकिकता का सेवन अवश्य करें.
देखिये कि वस्तुतः स्त्री उत्थान एवं सशक्तिकरण किसे कहते हैं और कैसे यह सनातन अवधारणों से सहज रूप से प्राप्य है.
देखिये कि निर्भया के अपराधियों को क्या दंड मिलना चाहिए और कैसे मिलना चाहिए.
देखिये कि हमारा राजा कैसा होना चाहिए, उसे क्या करना और क्या नहीं करना चाहिए.
कमियां निकालने वालों ने तो ईश्वर को भी नहीं छोड़ा तो यह तो एक चलचित्र मात्र है, आप उन्हें नकारकर अपना सच स्वयं प्रकट करें.
एक श्लोक है
“केतकी कुसुमं भृंग: पिड्य मानो अपि सेव्यते,
दोषाम किम नाम कुर्वन्ति गुणा: अपह्नत चेतसाम ।।
केवड़े के पुष्प को भंवरा उसके अंदर लगे कांटो की पीड़ा को सहते हुए भी उसका रसपान करता रहता है, जिसके गुणों ने चित को हर लिया हो उसके दोष क्या देखने?
तो है सनातन भारतवासियों इस अद्भुत महोत्सव का आनंद लो और अपने सनातन होने का अभिमान करो.
जय भारत ।।
जय सनातन ।।
जय महिष्मति ।।
(इस महोत्सव का निमित्त बने सभी सनातन भाइयों का हार्दिक अभिनंदन एवं वंदन)