हमारा प्यार तो सच्चा था ना मियां? बोलो ना मियां, बोलो, बोलो!

मज़ेदार फिल्मों में से एक है मकबूल, जो कि शेक्सपियर वाले नाटक ‘मैकबेथ’ पर आधारित है. मोटे तौर पर कहानी कुछ यूँ है कि अब्बा जी नाम का एक बड़ा माफिया डॉन था, जो किसी जमाने में अपने उस्ताद और एक पुलिसवाले का हुक्म बजाने वाला छुटभैया हुआ करता था.

एक दिन उसने किसी तरह पुलिसवाले को अपने गुरु का क़त्ल करने को राजी किया, जैसे ही उसने डॉन को मारा, अब्बा जी ने उसे गोली मार दी और खुद डॉन बन गया. कई साल बाद उसकी रखैल उसी पर ये नुस्खा आजमाती है. बूढ़े अब्बा जी के बदले उसे चेला मकबूल पसंद था.

एक दिन रखैल अब्बा जी को गोली मार देती है, दौड़कर देखने आये बॉडीगार्ड को भी क़त्ल करती है और अब्बा जी के क़त्ल का इल्जाम मरे हुए बॉडीगार्ड पर डाल देती है.

अब मकबूल डॉन हो जाता है और अब्बा जी की रखैल यानि फिल्म में तब्बू और मकबूल यानि इरफान खान साथ-साथ रहने लगते हैं.

मकबूल ऐसी हरकत करने का नतीजा देख चुका था. उसे मालूम था अब्बा जी कैसे डॉन हुए, और इस हरकत का बिलकुल वैसा ही नतीजा कैसे भुगतना पड़ा. वो तब्बू के साथ पड़ा-पड़ा सोचता रहता कि किस दिन चुकाना होगा.

गिरोह के बाकी साथियों से खींच तान और अब्बा जी के होने वाले दामाद से झगड़े में मकबूल की हालत कुछ ही दिन में बिगड़ जाती है. इस कर्मफल टाइप सिचुएशन को ‘मकबूल’ में बड़ी ख़ूबसूरती से फिल्माया गया है.

जब सब मारे जाने लगते हैं तो एक रात तब्बू मकबूल से पूछ रही होती है, “लेकिन हमारा प्यार तो सच्चा था ना मियां ? बोलो ना मियां, बोलो, बोलो ?”

अब बिहार की हालिया राजनीति को देखेंगे तो मकबूल का ये दृश्य फिर से दिख जाएगा.

कई साल पहले जब लालू के पास ‘समाजवादी’ सीटें कम थी तो वो भागे-भागे संघ के बड़े नेताओं के पास दंडवत हुए थे. तब कहीं जा कर एकत्तीस सीटों के भाजपा समर्थन के कारण चंद्रशेखर के प्रिय रघुनाथ झा और वी.पी. सिंह के समर्थन वाले भूतपूर्व मुख्यमंत्री रामसुंदर दास दोबारा मुख्यमंत्री नहीं बने.

बाद में लालू यादव पलट गए, शक्तिसंपन्न होते ही भाजपा को ख़त्म करने की बातें करने लगे.

कई साल बाद उनके समर्थन से नितीश बाबू मुख्यमंत्री बने, और धीरे-धीरे शक्तिशाली हो गए.

ये जो एक-दो फ़ोन की रिकॉर्डिंग होती है वो लालू-शहाबुद्दीन से नाराज कोई भी दे सकता है. पंद्रह बीस फ़ोन निकालने के लिए फ़ोन टेप करना होता है जो मिनिमम गृहमंत्री/ मुख्यमंत्री के आदेश पर होता है. नितीश बाबू की मर्जी के बिना रिपब्लिक के पास इतने फोन की रिकॉर्डिंग नहीं आ सकती.

बाकी नितीश बाबू को अगर लालू नए पार्टनर की मुबारकबाद देते हैं तो कोई गलत नहीं करते. इतने बकलोल थोड़ी हैं लालू? नितीश जी से पूछना ही चाहिए, हमारा प्यार तो सच्चा था ना मियां? बोलो ना मियां, बोलो, बोलो!

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