दीप से दीप जलाते चलो…

Essel Group की 90वीं वर्षगांठ पर आयोजित कार्यक्रम में बोलते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बताया कि Essel group ने 5000 करोड़ रूपए का एक फण्ड startup India के तहत नये उद्यमियों के लिए बनाया है.

इसमें नए युवा उद्यमी नए उद्योग धंधे खोलने के लिए लोन ले सकते हैं, उद्यमी को लोन कंपनी को वापस नहीं करना होगा बल्कि जब उद्यमी अपने उद्यम में सफल हो जाएं. अगले 10-20 साल में कभी भी लोन चुकाने की स्थिति में आ जाएं तो स्वविवेक से किसी युवा उद्यमी को वही पैसा दे के कोई नया उद्यम लगाने में मदद करें.

हर सफल उद्यमी एक नया उद्यमी बनाएं.

1990 में मैंने अपने परिवार के साथ मिल के अपने गांव में बच्चों को पढ़ाने के लिए एक विद्यालय प्रारंभ किया, बिना किसी पूंजी के, ग्रामीण माहौल में, जो भी थोड़े बहुत संसाधन जुट सके, उसी में बच्चों को पढ़ाने लगे…

5-6 कक्षाएं तो पेड़ के नीचे बैठ के पढ़ती थीं और बाकी 5-6 कक्षाएं फूस के छप्पर-मड़ई में… स्कूल की फ़ीस थी कुल जमा 20 रूपए… साल भर में हमारे विद्यालय में 300 से ज़्यादा छात्र हो गए थे और 10-12 टीचर्स थे.

हमारा विद्यालय जिले का एकमात्र अंग्रेज़ी माध्यम स्कूल था जहां NCERT का पाठ्यक्रम पढ़ाया जाता था. किसी विभाग की कोई लाल फीता शाही तो थी नही, न कोई ऐसी व्यापारिक मजबूरियां, कोई बाज़ार की शक्तियां थीं जो हमें अपने मिशन से डिगा पाती.

आज मुझे ये बताते हुए गर्व होता है कि उस विद्यालय का पहला छात्र आज भारतीय सेना में मेजर है और कश्मीर में तैनात है. इसके अलावा सैकड़ों हज़ारों ऐसे बच्चे हैं जो बेहद सफल हैं.

पहले बैच में एक लड़की हुआ करती थी, बेहद शर्मीली… गुमसुम गुमनाम सी. जब आयी तो सामान्य से भी कम स्तर की छात्रा थी. हाल ही में मुझे बताया गया है कि वो इस समय सिटी बैंक में ऑस्ट्रेलिया में कहीं काम करती है, फेसबुक पर भी है शायद.

कुछ सालों में हमारा विद्यालय पूरे क्षेत्र में बेहद लोकप्रिय हो गया. अगले 10 सालों में हमसे प्रेरणा ले के मेरे संपर्क में आये 10 से ज़्यादा युवाओं ने अपने-अपने गांव में ऐसे ही स्कूल खोले.

मुझे याद है कि हर साल ही कोई न कोई नया स्कूल खुलता था. एक समय ऐसा भी आया जब हमसे सम्बद्ध स्कूलों में 5000 से ज़्यादा बच्चे पढ़ते थे जो अगल बगल के 3-4 जिलों में फैले हुए थे.

मुझे एक वाकया याद आता है, अपने गांव से जब हम सैदपुर जाते तो ककरहीं गांव में सड़क के किनारे एक बगीचे में 3 युवा उसी तरह पेड़ों के नीचे बच्चों को पढ़ाते थे.

सड़क से देखने पर पूरी क्लास के अनुशासन को देख के ही लगता था कि लड़के बड़ी मेहनत, बड़ी लगन से पढ़ा रहे हैं…

एक दिन यूँ ही हमने स्कूटर रोक लिया, धर्मपत्नी साथ थीं, हम उनके पास गए, जानकारी ली, तीनों गांव के ही बेरोज़गार युवक थे.

मैंने पूछा क्या कमा लेते हो, उन दिनों शायद 2000 रूपए प्रति व्यक्ति, लगभग 100 छात्र थे… 2000 से 2005 के बीच उस पूरे क्षेत्र में एक भी ऐसा गांव नहीं था जिसमें ऐसे स्कूल न चल रहे हों.

उन दिनों अखबारों में ऐसे स्कूलों की आलोचना होती थी… लिखा जाता था कि कुकुरमुत्ते की तरह उग रही शिक्षा की दुकानें जिनमें 12वीं पास लोग पढ़ा रहे हैं.

काश हमारे समाज मे कोई एक एजेंसी होती जो 1990 से ले के 2010 तक ऐसे पेड़ और फूस की झोपड़ी में पढ़ने वाले बच्चों का सर्वे करती कि वो बच्चे आज कहां हैं, किस दशा-दिशा में हैं.

जहां तक मेरे पढ़ाये हुए बच्चे हैं उनमें सैकड़ों आज इंजिनियर, डॉक्टर, दंत चिकित्सक, बैंक मैनेजर और उद्यमी हैं, बहुत से फेसबुक पर भी हैं, मेरी फ्रेंड लिस्ट में भी हैं.

मूल विषय पर लौटते हैं. आज मोदी जी ने जो आह्वान किया कि हर सफल उद्यमी एक नया उद्यमी बनाये, उसे पूंजी से, और यथासंभव अन्य सहयोग दे के, नैतिक सहयोग दे के खड़ा करे.

हर सफल उद्यमी अपना एक डुप्लीकेट तैयार करे, उसी तरह शिक्षा में भी Each one Teach One… हर एक पढ़ाये एक… हर शिक्षित और सफल व्यक्ति एक वंचित बच्चे को पढ़ाये.

जोत से जोत, दीप से दीप जलाते चलो…

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