पिछले महीने कश्मीर से एक फोटो बड़ी चर्चा में आयी थी. इसमें सेना ने उपद्रवी भीड़ के बीच बच कर निकलने के लिए एक कश्मीरी पत्थरबाज को बांध कर गाड़ी के बोनट पर बैठाया था. उसी को आगे कर के, उसे एक ह्यूमन शील्ड बना कर वे लोग सकुशल निकल पाए थे.
जब यह फोटो आयी तो पूरे देश के सेक्युलरों को बड़ा आघात लगा था और कश्मीरी आतंकवादियों, राजनैतिज्ञों और अलगाववादियों के स्वर में स्वर मिला कर भारत की सेना और सरकार पर कड़ा प्रहार किया था.
इन लोगों ने एक पत्थरबाज उपद्रवी को न सिर्फ नायक बना दिया बल्कि आतंकवादियों को मानवाधिकार की परिधि में रखने की खुले आम वकालत करने की घृष्टता भी की थी. जहाँ यह तमाम सेक्युलर और मीडिया विरोध कर रही थी वहीं भारत की सरकार व सेना स्पष्ट रूप से इस घटना के समर्थन में खड़ी थी.
खैर मीडिया और इन सेक्युलरों के रुदन का यह असर हुआ कि जम्मू कश्मीर की पुलिस को पत्थरबाज कश्मीरी उपद्रवी को बोनट पर बैठाने का आदेश देने वाले मेजर गगोई पर एफआईआर दर्ज कर दी, जिसका सोशल मिडिया के माध्यम से पुरे देश में विरोध हुआ था.
पुलिस के द्वारा एफआईआर किये जाने के कारण सेना को भी मेजर गगोई के खिलाफ कोर्ट ऑफ़ इन्क्वायरी बैठानी पड़ी ताकि तूल पकड़ते मामले की तह तक पहुंचा जा सके.
इन्क्वायरी के दौरान यह खुलासा हुआ कि यह घटना श्रीनगर में हुए उपचुनाव में मतदान वाले दिन की है, जहाँ कश्मीरी पत्थरबाजों के झुण्ड ने पोलिंग बूथ को घेर लिया था.
भीड़ हिंसक थी और उस वक्त वहां 12 चुनाव अधिकारी, 9 इंडो तिब्बत बॉर्डर फ़ोर्स के जवान व 2 जम्मू कश्मीर के पुलिस वाले भी थे जिनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी 53 राष्ट्रीय राइफल्स के मेजर गगोई की थी.
मेजर ने सबकी जान और माल की रक्षा के लिए एक पकड़े गए पत्थरबाज को बोनट पर बैठाया था और अपनी टीम को 5 वाहनों सहित, सकुशल भीड़ के बीच से निकाल लाये थे.
अब खबर लगी है कि कोर्ट ऑफ़ इन्क्वायरी पूरी हो गयी है और उन्होंने मेजर गगोई को न सिर्फ निर्दोष घोषित किया है बल्कि उनके नेतृत्व करने की क्षमता और सूझबूझ की प्रशंसा की है.
यह निर्णय निसंदेह सेक्युलरों और कश्मीरी उत्पातियों को रास नहीं आएगा लेकिन इससे सेना का साहसिक जमीनी निर्णय लेने के लिए मनोबल अवश्य बढ़ेगा.