भीषण दोपहर में भटकते अघोरी को किसी ने विदेशी शीतल पेय पीने को दिया. देश की भीषण समस्याओं के उहापोह में पड़े अघोरी ने जैसे ही पहली घूंट ली, पेड़ से उतरकर एक प्रेत ने इसकी ग्रीवा जकड़ ली.
एक कथा सुनो अघोरी- हमारे आसपास की चीजों में ही सभी समस्याओं का समाधान है, उसका संधान करने हेतु विचार शक्ति होनी चाहिए. आज की कथा यही सिखाने हेतु है.
पश्चिम में एक बड़ा विद्वान वैज्ञानिक हुआ जिसका नाम हेबरलैंड था. उसने विचार किया कि सभी जीवों का जीवन एक ही कोशिका से शुरू होता है. प्रकृति में जीवन का आरम्भ भी अमीबा जैसी एक कोशिका से ही हुआ, अतः तार्किक रूप से यह निष्कर्ष निकल सकता है कि यदि एक युग्मकोष (Zygote) से हमारा सम्पूर्ण शरीर बना है तो हमारी किसी भी कोशिका से ऐसा ही एक पूर्ण शरीर बनाया जा सकता है.
दुनियाभर के विज्ञानियों में इसकी प्रायोगिक सत्यता को परखने की होड़ लग गई. सभी ने अपने अनुसार पौधे और जैव कोशिकाओं को लेकर पोषकद्रव्य (कल्चर मीडियम) में उगाने का प्रयास किया, अनेक तरह से ग्लूकोज, नमक तथा जैवउत्प्रेरक (एंजाइम व् हॉर्मोन) लेकर लोगों ने प्रयोग किए पर कोई भी सफल नहीं हो सका.
कोशिकाएं एक सीमा तक विकसित होकर नष्ट हो जाती थी अथवा उनमें संक्रमण हो जाता था. हमारे शास्त्रों में कहा है कि प्रकृति ने आह्वान किया- एकोहम् बहुस्यामः. मैं एक से अनेक होना चाहता हूँ, और जीवन का विस्तार होने लगा, पर यहां यह प्रयोग अपने प्रारंभ में ही मृत हो रहा था.
इन्हीं वैज्ञानिकों में एक स्टीवर्ड था. वह जानता था कि उद्भव के क्षण में भारतीय कलश स्थापना करते हैं और उसमें नारियल रखते हैं. शुभकार्य में नारियल फोड़ते हैं, उसने भी कल्चर मीडियम में रासायनिक पोषक के स्थान पर नारियल पानी का उपयोग किया और गाजर के एक सूक्ष्म टुकड़े से पूरा गाजर का पौधा बनाया.
नारियल जल में सभी पोषक तत्व और उत्प्रेरक इस मात्रा में हैं कि किसी भी प्रकार की कोशिका उसमें पूर्णतया विकसित हो सके.
तो हे अघोरी, इस शीतल पेय को फेको और शुद्ध जीवनी शक्ति का नारियल पानी पियो. बड़ी से बड़ी समस्या का समाधान हमारे आसपास बिखरा है, जैसे स्टीवर्ड को मार्ग मिला उसी प्रकार तुम्हें भी सभी समस्याओं का समाधान मिलेगा. मूल की ओर लौटो.
– विष्णु कुमार