यहाँ एक शब्द खूब प्रयोग होता है – टीम. खेल में नहीं, डॉक्टरी में भी. शायद सभी कॉर्पोरेट बोलचाल में होता होगा, मुझे अनुभव नहीं है, पर हस्पताल में खूब होता है.
आप किसी मरीज को फलाँ और फलाँ बड़े वाले डॉक्टर को रेफर नहीं करते, मरीज को यह या वह स्पेशलिस्ट, सुपरस्पेशलिस्ट कंसलटेंट नहीं देखता… एंडोक्राइन टीम को रेफर करते हैं, न्यूरोसर्जरी टीम से डिसकस करते हैं, ऑन्कोलॉजी टीम रिव्यु करती है…
खैर, इस पोस्ट का विषय कुछ और है. पिछले सप्ताह हमारी डे ऑन कॉल टीम जिस नाईट ऑन कॉल टीम को हैंडओवर कर रही थी, यह उसके बारे में है.
वह टीम निश्चित रूप से हमारी टीम से अच्छी थी, ज्यादा एफिशिएंट थी. दिन में हम पाँच लोग मिलकर जितने मरीज़ नहीं देखते थे, रात में वे तीन लोग उससे ज्यादा देख देते थे.
तो आखिरी दिन मैंने इस बात को स्वीकार किया… कहा, तुम लोगों ने तो जो स्टैण्डर्ड सेट किया है, उससे पार पाना मुश्किल हो रहा है…
उस टीम में एक और खास बात थी. तीनों डॉक्टर दक्षिण भारतीय थे… दक्षिण भारतीय मने दो भारतीय और एक श्रीलंकन तमिल. जो श्रीलंकन लड़की थी उसने हंसते हुए आंख मारी… देखो, हम तमिल लोग स्मार्ट हैं…
मैंने सहज भाव से सहमति जताई… वो तो हो. और यह मज़ाक भी नहीं है, सीरियसली सच है. भारत में कोई भी नेशनल लेवल का कम्पटीशन होता है, उसमें भी टॉप 10-20 तो चश्मे वाले चिन्नास्वामी, रामास्वामियों से भरा होता है… और मुझे इस बात पर गर्व है…
उसने थोड़े आश्चर्य से प्रश्नसूचक दृष्टि से पूछा – तुम्हें कैसे गर्व है?
मैंने कहा – क्योंकि मैं अपने आपको उस महान परंपरा से मानता हूँ जहां से तुम्हें अपनी यह खासियत मिली है… अगर तुम इंटेलीजेंट हो तो इसे सिर्फ अपना इंटेलिजेंस मत समझो… यह उस हज़ारों वर्षों की संस्कृति का संचित इंटेलिजेंस है तुम सिर्फ जिसकी वाहक हो, कन्टिनुइटी हो…
उसने कहा… हाँ, यह जेनेटिक है…
मैंने पूछा – क्या, सिर्फ जेनेटिक है? या इसमें परंपरा का भी कुछ योगदान है? हिंदुओं में ज्ञान की एक परंपरा है जिसकी वजह से मेरे पिताजी ने जिंदगी भर टूटी चप्पल पहन कर, पुरानी साईकल चला कर भी अपने पाँच बच्चों को स्कूल और यूनिवर्सिटी भेजा, जिसका परिणाम मैं हूँ… तुम भी उसी परंपरा का परिणाम हो.
मेरा बेटा मैथमेटिक्स में अच्छा है… मैं उसे कहता हूँ… यह मत सोचना कि तुम मैथ्स में इंटेलीजेंट हो, यह याद रखना कि तुम आर्यभट्ट और रामानुजन के वंशज हो…
अगर कंट्रोल स्टडी देखनी हो तो याद करो – जो आज अफगानिस्तान है, तीन-चार हज़ार साल पहले वहाँ दुनिया की सबसे पुरानी तक्षशिला यूनिवर्सिटी थी… जहाँ दुनिया भर के बच्चे पढ़ने आते थे… उस क्षेत्र में जो लोग आज रहते हैं, क्या उनमें अपनी पुरानी एक भी जीन नहीं बची?
तो ऐसा क्या बदल गया कि आज वहाँ बच्चे कटे इंसानी सरों से फुटबॉल खेल रहे हैं? जो खो गया वह है धर्म और परंपरा… वह मेरी और तुम्हारी समान है… इसलिए मुझे तुम्हारे इंटेलिजेंस पर गर्व है…
खैर, शिफ्ट बिजी थी, कॉल आ रहे थे, ब्लीप बज रही थी… और उस लड़की को तक्षशिला के बारे में पता भी नहीं था. पर वह अपनी तारीफ पर खुश थी और थोड़ी भ्रमित भी. वह अपनी खुश-खुश मुस्कराहट के साथ कॉल का जवाब देने चली गयी.
पर मैं उसके भ्रमित होने पर भ्रमित था… ऐसा क्या है कि बेचारी सिंधु को एक कार्तिकेयन से उनमें क्या कॉमन है यह तो समझ में आया, पर एक राजीव मिश्रा नाम के नार्थ इंडियन से भी कुछ कॉमन है यह नहीं समझ आया…
उसे यह भी पता नहीं होगा कि उसके नाम की सिंधु नदी कहाँ बहती है और वह देश, वह सिंध की धरती अब क्यों हमें पराई हो गई…